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मातृ दिवस पर 9 मार्मिक कविताएं : मां तो मां है

हमें फॉलो करें मातृ दिवस पर 9 मार्मिक कविताएं : मां तो मां है
मां तो मां है
 
मां तो मां है
परवान चढ़ी की
बली का नाम है मां
प्रेम सुहाग के संस्कार में
जीवित है मां
कौन जाने कितने अरमान है
क़ैद अपने दरक्ख में
फिर दादी-नानी की हमजोली में
बिफ़री है मां अपनी झोली में
-आशा शर्मा
 
मां, न जाने कहां चली गई
 
कभी अपना दाहिनी हाथ कहने वाली
हर ख़्वाहिशों को पूरा करने वाली
मां, न जाने कहां चली गई
मगर आज भी जब कभी मैं दुःखी होती हूं
चली आती है सपने में मुझे राह दिखाने
और कहने
अभी तो तुम्हें बहुत कुछ करना है
बढ़ो, आगे बढ़ो और मुझमें
जैसे एक अचूक सी शक्ति का
संचार हो जाता है।
-अरुणा पांडेय
 
 
मां, जैसा कोई नहीं
 
मां बिना ज़िंदगी वीरान होती है
तन्हा सफ़र में हर राह मानसून होती है
मां का होना ज़रूरी है क्योंकि
मां की दुआओं से हर
मुश्किल आसान होती है
मां का महत्व दुनिया में
कम हो नहीं सकता
और मां जैसा दुनिया में
कुछ हो नहीं सकता।
-नीरा शाह
 
संस्कारों की पाठशाला
 
कभी समंदर की तरह गहरी
कभी झरने सी निश्छल
परिवार की धूरी हो तुम
तुम बिन अकल्पनीय है जग
संस्कारों की पाठशाला
जिसने मकान को हमारे बनाया घर
मां विश्व का सबसे बड़ा शब्दकोष
चंद पंक्तियों में कैसे हो वर्णन !!!
-रश्मि प्रणय वागले
 
 
मां ओ मां...
 
सुना था
मां तो मायके में रहती है
ससुराल में सासूँ मां
पर मैं जान न पाई
दोनों रिश्तों में अंतर
क्योंकि ‘तुम‘ ‘आप’ नहीं थीं
तुम वहां भी थीं, और यहां भी
केवल एक ही रिश्ता जान पड़ा
मेरा-तुम्हारा
मां-बेटी का...
मां... ओ मां....।
-वसुधा गाडगिल
 
 
सुरक्षा  कवच
 
‘सब ठीक होगा‘
के विश्वास का
ऐसा कवच पहनाया मां ने
कि मजबूर है हर तूफ़ां
वापस लौट जाने के लिए....
-मंजूषा मेहता
 
 
मेरी सखी सहेली मां
 
मां होती थी, सब होता था
सारा जग अपना होता था
जेठ दुपहरी भी शीतल थी
जब मां का आंचल होता था
शिशिर काल की ठिठुरन में भी
मध्यम धूप सरीखी मां थी
युवा काल की हर उलझन में
मेरी सीख-सहेली मां थी
-इंदु पाराशर
 
मां है तो घर है
 
मां, जीवन की प्रेरणा है
शक्ति स्वरूप है
आयु के अंतिम पड़ाव तक
ज्ञान देने वाली ज्ञान पुंज है
मां है तो बचपन है
आयु की संख्या से दूर
बच्चे होने का आश्वासन है।
मां है तो घर है
जो कभी भुला न सके
ऐसा मायका है
मां तो मां है.. अवर्णनीय है।
-मंजुला जोशी
 
 
जीवन की धुरी मां
 
मां जीवन धुरी होती है
वो न साधे,
ज़िंदगी उलझी-उलझी होती है
मौक़ा हो भले ग़म का,
चाहे ख़ुशी का
मां की समझाइश ज़रूरी होती है।
-रूपाली पाटनी
 
साभार- मेरे पास मां है 
 

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