प्रेग्नेंसी और योगाभ्यास
- सविता बिरला
मां बनने का अर्थ है जीवन में नई जिम्मेदारियों से रूबरू होना। एक स्त्री, जो मां बनने वाली है, उसे अपने आपको मानसिक व शारीरिक तौर पर तैयार करना बहुत जरूरी है और यह मानसिक व शारीरिक विकास हमें योगाभ्यास से प्राप्त होता है।
अक्सर हम महिलाएं घरेलू काम को ही व्यायाम समझ लेती हैं, पर यह पूरी तरह सही नहीं है। योगाभ्यास भी गर्भ संस्कार का हिस्सा है। जो स्त्री गर्भकाल में योगाभ्यास करती है, वह स्वस्थ शिशु को जन्म देती है। योगाभ्यास न केवल मां की प्रसव पीड़ा को कम करता है, बल्कि ऐसी कई बीमारियों जैसे बीपी, मधुमेह, पीठ में दर्द, पैरों में वैरीकोज वेन्स की स्थिति, अजीर्ण आदि बीमारियों को नियंत्रण में रखता है। योगाभ्यास रक्त संचार को सही रखने में सहायता करता है।
मां का काम सिर्फ शिशु को जन्म देना नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ी को तैयार करना है इसलिए यह जरूरी है कि शिशु का मानसिक व शारीरिक विकास हो और यह योगाभ्यास से संभव है।
महाभारत में सुभद्रा ने गर्भकाल में ही अभिमन्यु को चक्रव्यूह भेदने की शिक्षा दे दी थी। आज के युग में देवसेना ने बाहुबली जैसे पुत्र को जन्म दिया। वैसे कोई भी स्त्री एक महान व्यक्तित्व को जन्म दे सकती है इसलिए स्त्री के गर्भ में शिशु के शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी जरूरी है। गर्भवती महिला अपने संस्कार उसे गर्भ में ही दे सकती है।
रिसर्च से तो यह भी पता चला है कि जो महिला जिस तरह का संगीत गर्भकाल में सुनती है, वैसा ही गीत और संगीत बच्चे को सुनना अच्छा लगता है और उसे वहीं संगीत गर्भकाल से याद हो जाता है।
गर्भवती महिला को सभी तरह के आसन करने की सलाह नहीं दी जाती, एक योग शिक्षक के निर्देशन में योगाभ्यास करना चाहिए। गर्भकाल में योगाभ्यास में आसन, मंत्र, मेडिटेशन, गर्भ संस्कार व कई तरह की प्राणक्रिया व मुद्रा का अभ्यास कराया जाता है। ये क्रियाएं गर्भ में पल रहे शिशु के हर महीने के विकास को समझकर करवाई जाती हैं।
योगाभ्यास से शिशु के जन्म के बाद मां की शारीरिक क्षमता जल्दी वापस आ जाती है। समाज में आज भी योगाभ्यास को स्वास्थ्य व बीमारियों से बचाने के लिए समझते हैं। हमें यह गलतफहमी को दूर करना होगा तथा सभी को सहजा करना होगा। नियमित योगाभ्यास से एक खुशहाल और स्वस्थ गर्भावस्था का आनंद ले सकते हैं व एक नई पीढ़ी के निर्माण में सहयोग दे सकते हैं।