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वसंत तुमसे अलग नहीं है
पंकज सुबीर की कविता
वसंत तुमसे सचमुच अलग नहीं है।दूर कहीं कुहुक रही है कोयल,मुझे ऐसा लग रहा है तुम आंगन में खड़ीं अपनी मीठी आवाज में मुझे पुकार रही हो।फाल्गुनी हवाएं मुझे छूकर जा रही हैं ठीक वैसे ही,जैसे तुम प्यार से मुझे छूकर दूर कर देती हो,युगों की थकान। आम्र वृक्ष मंजरियों से लदे हैं,तुम भी तो ऐसी ही हो ,प्रेम और स्नेह से लदी हुईहमेशा।खेतों में फूल रही है सरसोंचटख़ पीली,या कि तुमने फैलाई है अपनी हरे बूटों वाली पीली साड़ी धोकर सुखाने के लिए।धरती अपनी संपूर्ण उर्वरा शक्ति समर्पित कर रही है,खेतों में खड़ी फ़सलों के पोषण के लिए, तुम भी तो ऐसा ही करती हो। वसंत तुमसे अलग नहीं है'
मां' वसंत तुमसे सचमुच अलग नहीं है।