आत्महत्या के विचार आते हों तो क्या करें? गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर भी चर्चा करने में संकोच नहीं करना चाहिए
आत्महत्या की प्रवृत्ति, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा एक गंभीर विषय है। लोग अक्सर अवसाद या अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में बात नहीं करते हैं। जैसे लोग मधुमेह जैसी शारीरिक बीमारियों के बारे में खुलकर बात करते हैं, उसी तरह से मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर भी चर्चा करने में संकोच नहीं करना चाहिए। हमें लोगों को उनके मानसिक स्वास्थ्य के विषय में बात करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
हमें अपनी युवा पीढ़ी को यह भरोसा दिलाना होगा कि वे अकेले नहीं हैं। समाज में मानवीय मूल्य और मानवता की कोई कमी नहीं है और उनकी सहायता के लिए बहुत से लोग हैं। यह भरोसा सिर्फ युवाओं के लिए ही नहीं है; बल्कि दिन भर घर में काम करते हुए एकाकी जीवन जीने वाली गृहणियों सहित समाज के अन्य सभी वर्गों के लिए है। इसके अलावा, भले ही दूसरे लोग अपनी समस्याओं के विषय में बात न करें, फिर भी हम इस विषय में सतर्क रहकर बदलाव ला सकते हैं। जब आप किसी को उदास देखें, तो बस यूं ही उनके बगल से न गुजर जाएं। रुकें और उनसे पूछें, 'अरे, क्या बात है? क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूं?' लोगों से जुड़ना और उनकी सहायता करना बहुत जरूरी है। ऐसा करके हम कई लोगों के दिल और दिमाग को हल्का कर सकते हैं।
कुछ साल पहले 2014 में, हमने एक 'हैप्पीनेस सर्वे' शुरू किया था। हमारे स्वयंसेवक घर-घर गए और उन्होनें लोगों से उनकी खुशी और उनकी समस्याओं के बारे में कुछ सवाल पूछे। जब हमारे स्वयंसेवक, दूसरे लोगों से यह प्रश्न पूछते थे, तो लोगों को बहुत राहत महसूस होती थी।
एक महिला ने हैप्पीनेस सर्वे की प्रतिक्रिया में बताया कि पहली बार किसी ने उससे पूछा कि 'क्या वह खुश है और क्या उसे किसी चीज़ की जरूरत है।' दरअसल बातचीत करने के पहले वह बहुत भावुक और दुखी महसूस कर रही थी। तो यह कुछ ऐसा है जिसके लिए पूरे समाज को तत्पर रहना चाहिए और एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए।
हमने यह देखा है कि जब लोग इस तरह के अवसाद या आत्महत्या जैसे मनोभाव से गुजर रहे होते हैं, उस समय हमारे प्राणशक्ति के स्तर में वृद्धि बहुत सहायता करती है। जब लोग उदास महसूस करते हैं, तो उनकी प्राण ऊर्जा अक्सर समाप्त हो जाती है, जिससे उनमें अवसाद और आत्महत्या के विचार आ सकते हैं। ऐसी परिस्थितियों में व्यायाम का अभ्यास कुछ हद तक मदद कर सकता है लेकिन यह थकान भी पैदा कर सकता है। इसलिए जिन लोगों को व्यायाम करना कठिन या उबाऊ लगता है, उनके लिए योग और ध्यान, बिना थकाए प्राण स्तर को बढ़ाने में कारगर हैं। प्राणस्तर को बढ़ाने में संगीत भी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब हमारे भीतर प्राणशक्ति अधिक होती है, तब नकारात्मक विचार आने की संभावना कम हो जाती है।
खुशी अक्सर विस्तार की भावना से जुड़ी होती है। जब हमारी प्रशंसा होती है, तो हमारे भीतर विस्तार की भावना होती है। इसके विपरीत, अपमान हमें संकुचित महसूस कराता है। योग विज्ञान के अनुसार, चेतना में विस्तार और संकुचन की इस अनुभूति को समझना महत्वपूर्ण है। संगीत, खुशमिजाज लोगों या बच्चों के साथ समय बिताना, नृत्य और ध्यान जैसी गतिविधियों में शामिल होना, ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने में मदद कर सकता है।
इसके अतिरिक्त, योग और ध्यान जैसी क्रियाएं व्यक्ति की मानसिक स्थिति, ऊर्जा के स्तर और जीवन की समग्र गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार कर सकती हैं। ये अभ्यास कम ऊर्जा और अरुचि की भावनाओं को दूर करने में मदद करते हैं, जो हमें एक बेहतर और जीवंत जीवन की ओर अग्रसर करता है।
जब भी किसी के मन में कोई नकारात्मक विचार आए या मन भारी लगे तो उन्हें चाहिए कि बाहर निकलें और ज़रूरतमंद लोगों से बात करें और उनसे पूछें कि 'वे उन ज़रूरतमंद लोगों के लिए क्या कर सकते हैं।' केवल इस बात की सजगता कि वे यहां कई दूसरे लोगों की मदद करने के लिए आए हैं, उन्हें तुरंत सकारात्मक विचारों से भर देगी। इसलिए ऐसे लोगों को किसी न किसी सेवा परियोजना में भाग लेना चाहिए। फिर वे देखेंगे कि उनके पास ऐसे नकारात्मक विचारों के लिए समय ही नहीं है। तो सुबह उठें और दिन भर ज़रूरतमंद लोगों की सेवा में व्यस्त रहें। इस तरह से वे रात तक थक जाएंगे और जब वे फिर बिस्तर पर जायेंगे और अच्छी गहरी नींद ले सकेंगे।
जब आप खाली हों, तो ध्यान करें। यदि आपको बार-बार ऐसे विचार आ रहे हैं, तो इसका अर्थ है कि आप पर्याप्त व्यायाम नहीं कर रहे हैं; आपको जॉगिंग करनी चाहिए। इससे आपके शरीर में बेहतर रक्त संचार होगा।
इसके अलावा, ज्ञानवर्धक किताबें पढ़ें। भगवद गीता, उपनिषद या कोई प्रेरणादायी नोटबुक हर दिन पढ़ें, चाहे सिर्फ़ एक पेज ही क्यों न हो। अगर आप खुद को ज्ञान, संगीत और सेवा में व्यस्त रखेंगे, तो ये विचार बार-बार नहीं आएंगे।