कई बार ऐसा होता है कि हमारे जीवन में अवसर आते हैं लेकिन हम उसे चूक जाते हैं और कई बार ऐसा भी होता है कि हम थोड़ीसी मेहनत से ही कुछ हासिल कर सकते हैं परंतु हमारे भीतर का आलस्य हमें खा जाता है। ऐसा भी होता कि हम कोई कार्य करना चाहें और फिर सोंचते हैं कि कल कर लेंगे आज तो आराम कर लेते हैं। ऐसे ही लोगों के लिए एक प्रेरक कहानी।
एक बार की बात है कि एक आश्रम में एक शिष्य अपने गुरु का बहुत आदर और सम्मान करता था परंतु पढ़ने और काम करने में बहुत आलसी था। हालांकि वह कार्य करता जरूर था परंतु दीर्घसूत्री था। दीर्घसूत्री अर्थात जब कोई कार्य करना चाहिए तब नहीं बाद में करने की सोचता था। उसके गुरु उसके इस स्वभाव से बड़े चिंतित रहते थे कि कहीं यह अपने जीवन में असफल होकर संघर्ष में ना फंस जाए। यह ऐसा व्यक्ति है जो बगैर परिश्रम के ही फल पाना चाहता है। हमेशा सुअवसार की तलाश में रहता और भाग्य के भरोसे ही जीवित है। ऐसे में गुरुजी ने उसका उद्धार करने की सोची।
उन्होंने शिष्य को सूर्योदय के समय अपने पास बुलाया और सफेद पत्थर का एक टुकड़ा देकर बोले कि यह एक जादुई पत्थर है। मैं अभी दूसरे गांव जा रहा हूं तब तक तुम इसे रख लो। इस पत्थर को जिस भी लोहे की वस्तु से स्पर्श कराओगे वह स्वर्ण में बदल जाएगा लेकिन दूसरे दिन में सूर्यास्त के बाद लौटूंगा तो इसे तुम्हें लौटाना होगा। बस कल सूर्यास्त तक का ही समय है तुम्हारे पास।....वह पत्थर देकर गुरुजी चले गए।
यह सुन और देखकर शिष्य तो बड़ा ही खुश हो गया। परंतु आलसी व्यक्ति की सोच भी बड़ी आलसी होती है। उसने आज का दिन कल्पना करने में ही बिता दिया कि मेरे पास इतना सारा स्वर्ण होगा तो मैं क्या-क्या करूंगा। मैं हर तरह से सुखी, समृद्ध और संतुष्ट रहूंगा। मेरे आसपास कई नौकर चाकर होंगे। ऐसा होगा, वैसा होगा। बस इसी कल्पना में उसने पूरा दिन गुजार दिया।
फिर दूसरे दिन जब वह प्रातःकाल उठा तो उसने सोचा कि आज तो स्वर्ण बनाने का अंतिम दिन है। सूर्यास्त के समय तो गुरुजी लौट आएंगे। आज तो इस पत्थर का उपयोग करना बहुत जरूरी है। हालांकि अभी तो पूरा दिन पड़ा है। घर में तो बहुत कम लोहा है इन्हें तो बाद में देखेंगे पहले तो मैं बाजार से लोहे के बड़े-बड़े सामान खरीद कर ले आता हूं। लेकिन कौन से सामान खरीदूं? ऐसा सामान खरीदना होगा जिसमें भारी लोहा हो। लोहे के खंबे तो कहीं ना कहीं मिलते होंगे? नहीं खंबों को तो घर पर लाना मुश्किल होगा। खैर ठीक है यह तो कर ही लेंगे पहले खाना खा लेते हैं।
फिर भोजन करने के चक्कर में दोपहर हो जाती है। भोजन करने के बाद आलस्य छा जाता है तो वह सोचता है कि अभी तो सूर्यास्त में बहुत समय है। बाजार का काम तो एक घंटे में निपटा लेंगे, पहले थोड़ा सो लेते हैं 4 बजे उठकर बाजार जाएंगे और एक झटके में सभी लोहे के सामान खरीदकर घर ले आएंगे और बस फिर हो जाएगा काम स्वर्ण बानाने का।...ऐसा सोचकर वह सो जाता है।
आसली व्यक्ति को कुछ ज्यादा ही गहरी नींद आती है। वह नींद की गहराइयों में खो गया और जब नींद खुली तो देखा की बस अब तो सूर्यास्त होने ही वाला है। अब वह जल्दी-जल्दी बाजार की तरफ भागने लगा। आधे रास्ते में सोचने लगा कि अरे, वह पतथर भी साथ ले आता तो अच्छा होता, क्योंकि लौटने से पहले ही सूर्यास्त हो जाएगा और गुरुजी आ गए तो। तभी रास्ते में उसे गुरुजी मिल जाते हैं। उन्हें देखकर वह घबरा जाता है और उनके चरणों में गिरकर कहता है। क्षमा करना गुरुजी उस जादुई पत्थर को एक दिन और मेरे पास रखने दीजिये।
लेकिन गुरुजी कहते हैं कि नहीं, यह नहीं हो सकता। अब तुम अवसर चुक गए। गुरुजी के मना करने के बाद शिष्य का धनी होने का सपना चूर-चूर हो गया।
महाभारत में भीष्म पितामह ने कहा था युधिष्ठिर से कि दीर्घसूत्रा मनुष्य का जीवन नष्ट ही समझो। अकर्मण्य, आलसी और भाग्य के भरोसे रहने वाला मनुष्य जीवन में कभी कुछ नहीं कर पाता है। इसीलिए कहते हैं कि काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब।