आशो रजनीश ने तीन भिक्षुओं की बड़ी ही मजेदार कहानी सुनाई थी। इस कहानी को सुनकर हंसी भी आती है और प्रेरणा भी मिलती है। संभवत: यह कोई जेन कथा है जो उन्होंने सुनाई थी। आइये आप भी जानिए कि आखिर यह कथा कैसी है और आप ही तय करें कि आपने इससे क्या सीखा।
तीन बौद्ध भिक्षु थे जो मौन रहकर किसी गुफा में ध्यान करते रहते थे। तीनों एक दूसरे से बोलते नहीं थे। जब से भिक्षु बने थे तो उन्होंने तय किया था कि अब कभी बोलेंगे नहीं क्योंकि बोलना व्यर्थ है। इससे ध्यान साधना में बाधा भी उत्पन्न होती है और विवाद भी होता है। जीवन के लिए जरूरी नहीं है बोलना। ऐसा तय करके वे जंगल में एक गुफा में ध्यान करते थे और मौन रहकर ही अपनी दिनचर्या पूर्ण करते थे।
कुछ वर्षों बाद एक बार जब वे गुफा के द्वार पर ध्यान कर रहे थे तो वहां से एक शेर निकला जिसे तीनों ने देखा। परंतु तीनों यह नहीं समझ पाए कि यह शेर था या कोई और। तीनों यह भी नहीं समझ पाए कि क्या यह तीनों ने एक साथ ही देखा है। तीनों यह सोच रहे थे कि शायद मैंने अकेले ने ही देखा है।
शेर देखे जाने की इस घटना के एक वर्ष बाद एक भिक्षु ने कहा, 'तुम जानते हो कि उस दिन एक शेर निकला था क्या तुम दोनों ने भी वह देखा था?' दोनों भिक्षुओं ने कोई जवाब नहीं दिया। तीनों फिर मौन हो गए।
दो वर्ष बाद एक दूसरे भिक्षु ने कहा, 'वह शेर नहीं था। वह तो तेंदुआ था। तुमने ध्यान से नहीं देखा होगा।' यह सुनकर दूसरे दो भिक्षु मौन रह गए किसी ने कोई जवाब नहीं दिया।
अंत में तीन वर्ष बाद उस तीसरे भिक्षु ने कहा, 'यार! तुम दोनों बोलते बहुत हो, शेर था या तेंदुआ। हमें इससे क्या मतलब। यहां जंगल में तो ऐसी घटना घटती ही रहती है। तुमने मेरे 6 वर्ष खराब कर दिए। तब से मैं खुद को दबा रहा था कि बोलूं या नहीं बोलूं।''...यह सुनकर सभी मौन रह गए।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हम जीवन में किसी दूसरों के कारण इसी तरह व्यर्थ की बातों पर समय बर्बाद कर देते हैं और हासिल कुछ भी नहीं होता है।