जरूर देखें हिमालय की पहाड़ियां
हिमालय की पहाड़ियों में बसा बोमडिला
अस्सी हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले अरुणाचल प्रदेश का सत्तर हजार वर्ग किलोमीटर इलाका हिमालय की गोद में अवस्थित है। यह इलाके पैंतीस सौ मीटर की ऊंचाई से लेकर सत्रह सौ मीटर तक फैले हैं। सबसे ऊंची चोटी कांग्टे, सात हजार नब्बे मीटर है। उसके बाद गोरीचाम, पैंसठ सौ चौंतीस मीटर पर फैला हुआ है।
पूरे अरुणाचल प्रदेश में हिमालय की पहाड़ियों की श्रृंखलाएं हैं। चीन की सीमा से सटा तवांग जिले का गुमला पास तो वर्ष भर बर्फ से आच्छादित रहता है। यहां की जलवायु और प्राकृतिक छटा पर्यटकों को आकर्षित करती है।
शरद काल में एक सौ बावन मीटर की ऊंचाई के बाद से ही वर्षा के साथ बर्फ पड़ने लगती है इसलिए अरुणाचल प्रदेश में लगभग रोज वर्षा होती है और साल में औसतन साढ़े तीन सौ मिमी वर्षा होती है।
हिमालय से निकलने वाली मुख्य नदियां- कामेंग, सियांग, सुबनसिरी, खुरु, रंगा, कामला, सिइउम, लोहित, दिबांग, डिगारु, ना-दिहिंग, तिराप अरुणाचल प्रदेश को हरित प्रदेश बनाने में अहम भूमिका का निर्वाह करती हैं। पहाड़ी नालों, झरनों और उप-नदियों का तो जाल बिछा है, जिससे साल भर पानी उतर कर असम के मैदानों तक पहुंचता है।
अरुणाचल प्रदेश के दो जिले - तिराप और चांगलांग को छोड़ पूरा राज्य हिमालय की गोद में बसा है। हिमालय वाला इलाका तिब्बत से सटा है। यही वजह है कि तिब्बत से आकर बसे बौद्ध इन इलाकों में ज्यादा हैं। उनके लिए परिवेश और वातावरण बिल्कुल एक जैसा है। बर्फीला मौसम और पहाड़ उनके लिए चिर-परिचित हैं।बोमडिला के निकट बौद्ध धार्मिक गीतों के संकलन और उसे नया रूप देने में जुटे है। ग्राहम लामा बताते हैं कि भौगोलिक सीमा भले ही हिमालय को बांटती हो लेकिन हमारे लिए हिमालय एक ही है। सीमा के इस पार हो या उस पार। परिवेश बिलकुल समान है इसलिए हमारे पूर्वजों को इधर आकर बसने में कोई परेशानी नहीं हुई। यही वजह है कि तिब्बत के बाद बौद्ध भिक्षुओं ने अरुणाचल के सीमावर्ती इलाके की तरफ रुख किया और तवांग में मोनेस्टरी स्थापित की। तवांग से वे लोग नीचे की तरफ बोमडिला की तरफ बढ़े और बढ़ते हुए पश्चिमी कामेंग जिले को पार कर भूटान तक बढ़े। अरुणाचल मामलों के विशेषज्ञ के अनुसार बौद्ध धर्म का प्रभाव वहां सत्रहवीं सदी से अठारहवीं सदी के बीच आरंभ हुआ। आठ हजार फुट से भी अधिक की ऊंचाई पर बनी एशिया की सबसे पुरानी व विशाल तवांग मोनेस्टरी का निर्माण काल सत्रहवीं सदी माना जाता है। वहां के विशाल पुस्तकालय में पुराने धर्मग्रंथों के करीब साढ़े आठ सौ बंडल सुरक्षित हैं। बौद्ध धर्म के अध्ययन के लिए यह महत्वपूर्ण है। यह स्थल महायान बौद्धों का केंद्र है। अरुणाचल प्रदेश में बुनियादी सुविधाओं का विकास पिछले कुछ वर्षों में काफी तेजी से हुआ है फिर भी प्रदेश के अधिकांश गांव सड़क संपर्क से कटे हैं। जिला मुख्यालय के लिए सड़कें तो बन गई हैं लेकिन परिवहन व्यवस्था आज भी चुस्त-दुरुस्त नहीं है। यही कारण है कि लोग निजी वाहनों पर ज्यादा निर्भर करते हैं। तेजपुर से तवांग के लिए बस के साथ ही छोटे सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग बढ़ा है। अब राज्य सरकार पर्यटन के माध्यम से राजस्व कमाने का प्रयास कर रही है। यहां की जलवायु और खूबसूरत प्राकृतिक छटा पर्यटकों को आकर्षित करती है। यही वजह है कि अब राज्य सरकार जगह-जगह टूरिस्ट लॉजों के निर्माण के साथ-साथ यातायात की व्यवस्था को बेहतर बनाने में जुटी हुई है। सरकार के इन प्रयासों से देशी-विदेशी पर्यटकों की संख्या अरुणाचल में काफी बढ़ी है।