सावन के आते ही मौसम खुशनुमा हो जाता है। एक तरफ धर्म और दूसरी तरफ रोमांस। यह मौसम जहाँ बरसात के भीगे-भीगे समाँ के कारण मन और भावनाओं को नशीला बना देता है वहीं इन दिनों धर्म का पवित्र वातावरण पूजा-पाठ के लिए प्रेरित करता है। दोनों ही दो अलग तरह की प्रवृत्तियाँ है लेकिन मौसम एक ही है। सावन भोलेनाथ को प्रसन्न करने का महीना है जबकि मौसम की ठंडक दो दिलों में प्यार घोलने का काम करती है।
यही वह मौसम है जब भाई-बहन का स्नेह भी आलोड़ित होता है रक्षाबंधन के रूप में, देशभक्ति का रस बरसता है 15 अगस्त के रूप में, नागपंचमी के रूप में जीव-जन्तुओं के प्रति संवेदनशीलता जगाता है यह मौसम,वहीं रमजान के पावन दिन भी इसी मौसम में पड़ते हैं। बहरहाल हम बात कर रहे थे धर्म और रोमांस की। यूँ तो सीधे-सीधे इन दोनों को एक दूजे का विरोधी माना जाता है लेकिन सवाल महज नजरिए का है। इसे एक अलग दृष्टिकोण से देखा जाए तो धर्म और रोमांस एक दूजे के पूरक सिद्ध हो सकते हैं। अगर धर्म को बुरा लगता है तो 'रोमांस' शब्द को हम प्रेम, प्यार, मोहब्बत जैसे पाकीज़ा संबोधन दे सकते हैं। वास्तव में धर्म की क्रूरता की हद तक जिद, प्यार जैसे शब्द के स्पर्श मात्र से पिघल सकती है और प्यार जैसे शब्द के नाम पर उच्छ्रंखलता को अपनाने वाले अगर धर्म की मर्यादा, पवित्रता, शालीनता और सिद्धांतों को अपना लें तो प्यार की खोई सात्विकता लौट सकती है।
धर्म ने समय-समय पर जहाँ प्यार को गंभीरता दी है वहीं प्यार ने धर्म को कोमल और उल्लासमय बनाने में अपना 'शिष्ट' सहयोग दिया है। धर्म है क्या? धर्म साथ जीने, रहने और आगे बढ़ने के ऐसे अघोषित सिद्धांत हैं जिन्हें हम स्वेच्छा से अपनाते हैं। ऐसे सिद्धांत जिन्हें हम परंपरागत रूप से आत्मसात करते हैं। दुनिया का कोई धर्म मारकाट, हिंसा, बदला, हत्या (इज्जत के नाम पर) जैसी बातों का समर्थन नहीं करता। फिर प्यार जैसे नाजुक नर्म लफ्ज के नाम पर हो रही 'ऑनर किलिंग' को धर्म कैसे माना जा सकता है?
मित्रों, सावन के पवित्र महीने में हम पूजा-पाठ, अनुष्ठान, विधि-विधान, दान- पुण्य, व्रत-उपवास सब करें। उम्र के नए साथी प्रेम-मोहब्बत की कसमें खाएँ। भीगे नशीले मौसम का जमकर मजा लें लेकिन एक वादा,सिर्फ एक वादा अपने आपसे करें कि जब धर्म करें तो किसी प्रेमी की हत्या का अधर्म ना करें और जो प्रेम करें वे अपनी भावनाओं को वासनाओं में परिवर्तित करने का अधर्म ना करें। सावन का खूबसूरत मौसम है, बस यही कहना है कि धर्म की पवित्रता और रिश्तों की सुंदरता के साथ सावन को आने दो, झूम कर आने दो। यह हम सबके लिए जरूरी है।