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अरविंद केजरीवाल का संघ प्रमुख से प्रश्न

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अवधेश कुमार

, शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024 (16:06 IST)
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने जंतर-मंतर पर जनता की अदालत लगाई लेकिन उसमें उन्होंने प्रश्न राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत से पूछा। बाद में इन पर पत्र लिख दिया। 
 
उन्होंने पांच प्रश्न पूछे। 
 
* एक, जिस तरह से भाजपा देश भर में लालच देकर डराकर या ईडी सीबीआई की धमकी देकर दूसरी राजनीतिक पार्टी और उनके नेताओं को तोड़ रही है, गैर भाजपा सरकारों को गिरा रही है क्या यह देश के लिए सही है? क्या आप नहीं मानते कि यह भारतीय जनतंत्र के लिए हानिकारक है? 
 
* दो, सबसे भ्रष्ट नेताओं को भाजपा ने अपनी पार्टी में शामिल किया है। जिन नेताओं को पहले भाजपा के नेताओं ने खुद सबसे भ्रष्टाचारी बोला था कुछ दिन बाद उनको बीजेपी में शामिल कर लिया गया। क्या इस प्रकार की राजनीति से आप सहमत हैं क्या ऐसी बीजेपी की कल्पना की थी? 
 
* तीन, भाजपा आरएसएस की कोख से पैदा हुई है। कहा जाता है कि यह देखना संघ की जिम्मेदारी है कि भाजपा पदभ्रष्ट न हो। मैं पूछना चाहता हूं कि क्या आप आज की भाजपा के इन कदमों से सहमत हैं? क्या आपने कभी बीजेपी को यह सब करने से रोकने की कोशिश की उनसे इस बारे में सवाल पूछे? 
 
* चार, जेपी नड्डा ने लोकसभा चुनाव के दौरान कहा था कि भाजपा को संघ की जरूरत नहीं है। जब नड्डा ने यह कहा तो आपके दिल पर क्या गुजरी? आपको दुख नहीं हुआ? आरएसएस बीजेपी के लिए मां सम्मान है। क्या बेटा इतना बड़ा हो गया कि वह पलटकर मातृ तुल्य संस्था को आंखें दिखा रहा है? 
 
* पांच, आप लोगों ने मिलकर कानून बनाया था कि पार्टी में 75 साल से ऊपर के नेता रिटायर होंगे। लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे कई नेताओं को रिटायर कर दिया गया। अब अमित शाह कह रहे हैं कि यह नियम मोदी पर लागू नहीं होगा। क्या आप इससे सहमत हैं?
 
आप देखेंगे की हाल के वर्षों में विरोधी पार्टियां, नेता, एक्टिविस्ट और सोशल मीडिया पर सक्रिय नैरेटिव सेटर्स सभी भाजपा और नरेंद्र मोदी सरकार का विरोध करते हुए, हमले करते हुए संघ को निशाना बनाते हैं और कुछ तो भाजपा से ज्यादा संघ को ही हमले का शिकार बनाते रहते हैं। राहुल गांधी उनमें शीर्ष पर हैं जिनका कोई भाषण और वक्तव्य संघ पर हमले के बिना नहीं संपन्न होता। किंतु राजनीतिक नेताओं में अरविंद केजरीवाल की तरह प्रश्न इससे पहले कभी किसी ने पूछा नहीं था। 
 
अरविंद केजरीवाल ने नेताओं को डराने-धमकाने या ईडी सीबीआई आदि का डर दिखाने या फिर 75 वर्ष की उम्र आदि को लेकर जो कहा यह उनका अपना दृष्टिकोण है। इन प्रश्नों और वक्तव्यों की मूल बात दूसरी है। जेल से बाहर आने के बाद जब उन्होंने इस्तीफा की घोषणा की तो यही कहा कि वह जनता के बीच जाएंगे और जनता उन्हें निर्दोष साबित कर देगी तो फिर वह मुख्यमंत्री बन जाएंगे।

इस तरह जंतर मंतर पर जनता की अदालत उनके उसी अभियान की शुरुआत थी। स्वाभाविक ही ऐसे अभियान में हुए बहुत सोच समझकर साधे हुए अंदाज में और अपनी चतुर और चालक राजनीति के तहत ही कोई विषय उठाएंगे। इसलिए कम से कम अरविंद केजरीवाल और आपकी दृष्टि से संघ प्रमुख के पूछे गए इन प्रश्नों को आप यूं ही खारिज नहीं कर सकते।
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य प्रणाली में कभी भी राजनीतिक प्रश्न तो छोड़िए नियमित होने वाली निंदा आलोचना या हमले के उत्तर देने या किसी भी प्रश्न पर स्पष्टीकरण देने का चरित्र नहीं है। संघ पर गहरी दृष्टि रखने वाले जानते हैं कि इन सबसे अप्रभावित रहते हुए अपने उद्देश्यों के लिए निर्धारित कार्यों और आयोजनों में लगे रहते हैं। यही नहीं वह मीडिया या अन्य क्षेत्रों में सार्वजनिक रूप से सक्रिय लोगों से भी निवेदन करते हैं कि संघ की आलोचना या होने वाले हमले के उत्तर में अपना उत्तर में समय ना लगे। 
 
संघ के किसी जिम्मेदार अधिकारी से बात करिए तो उनका उत्तर यही होता है कि यह सब हमें अपने लक्ष्य और उद्देश्यों में बाधा डालने वाली होती है इसलिए इन सबसे अप्रभावित होकर चरैवेति चरैवेति के सिद्धांत पर केवल काम करते रहना है। हमारा काम ही सबसे बड़ा उत्तर होता है। इसलिए हमारे स्वयंसेवक प्रतिबद्ध समर्थक कभी इन सब से प्रभावित होकर विचलित नहीं होते। कारण, उनका हमारा सच पता है और वह स्वयं इस सच के साथ एकाकार होते हैं।
 
वैसे अरविंद केजरीवाल के राजस्व अधिकारी के समय एनजीओ और सूचना अधिकार कार्यकर्ता फिर भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना अभियान और अंततः आम आदमी पार्टी की अब तक की गतिविधियों पर ध्यान रखने वाले बिना किसी हिचक के बोल सकते हैं कि किसी सकारात्मक उद्देश्य से उन्होंने ये पांचों प्रश्न नहीं पूछे होंगे। 
 
यह सच है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद सत्ता और राजनीति के स्तर पर हिंदुत्व और हिंदुत्व अभिप्रेरित राष्ट्रवाद पर फोकस कर विचारधारा पर ऐसे-ऐसे ऐतिहासिक निर्णय और कार्य हुए जिनकी पहले कल्पना नहीं की गई थी। नरेंद्र मोदी के भाषणों, वक्तव्यों, नीतियों और व्यवहारों से हिंदुत्व विचारधारा वाले केवल संघ संगठन परिवार ही नहीं बाहर के संगठनों समूहों के अंदर भी उत्साह और आशा का संचार हुआ। इसके साथ यह भी सच है कि पिछले कुछ समय से मोदी सरकार और भाजपा के संदर्भ में निराशा, चिंता कुछ हद तक विरोध और कार्यकर्ताओं समर्थकों के अंदर निष्क्रियता का व्यवहार देखा गया है। 
 
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के समाचार पत्र के साक्षात्कार में भाजपा अब बड़ा संगठन हो गया और उसे संघ की उस रूप में आवश्यकता नहीं है जैसे आसपास और अचंभित करने वाले वक्तव्य ने पूरे संगठन परिवार और प्रतिबद्ध समर्थकों के मन में वैचारिक उथल-पुथल पैदा किया। इस पर भाजपा ने कभी स्पष्टीकरण नहीं दिया और संघ की ओर से कोई सार्वजनिक वक्तव्य आने का कारण नहीं था। इसलिए इसे लेकर पैदा हुआ संभ्रम किसी न किसी रूप में अभी भी कायम है। 
 
हालांकि विरोधियों द्वारा सनातन हिंदुत्व भारत की एकता अखंडता या जाति संप्रदाय क्षेत्र भाषा आदि के आधार पर दिए गए वक्तव्य के विरुद्ध प्रतिक्रियाएं हैं और इसका काम या ज्यादा लाभ राजनीति में भाजपा को मिलेगा। बावजूद अरविंद केजरीवाल और उनके जैसे लोगों को अच्छी तरह पता है कि लोगों के अंतर मन में ऐसे प्रश्न है और अगर कुछ प्रतिशत के भीतर भी या भाव पैदा करने में सफल रहे की भाई प्रश्न तो उन्होंने सही पूछा है तो फिर उनकी राजनीति की दृष्टि से या लाभकारी होगा। 
 
दिल्ली प्रदेश में खासकर विधानसभा चुनाव में भाजपा 2015 से आज तक अरविंद केजरीवाल के समक्ष किसी तरह की चुनौती नहीं पेश कर सकी और उनके लिए की राजनीति के लिए भले वह जेल में रहे हो या बाहर एक प्रकार से खुला मैदान रहा है। यहां सॉन्ग पुराने जनसंघ और दूसरे संगठनों से जुड़े लोगों की बड़ी संख्या है और उनमें एक बड़ा वर्ग आम आदमी पार्टी के साथ भी आया। अनेक विधायक आपको पूर्व में भाजपा से प्रत्यक्ष परोक्ष जुड़े हुए रहे। 
 
भ्रष्टाचार के आरोप के बाद स्वयं आम आदमी पार्टी के अंदर या भाव पैदा हुआ कि भ्रष्टाचार तो हुआ है और हमारे नेताओं ने अनैतिक और भ्रष्ट आचरण किया है। इसमें बड़ी संख्या में लोगों के मुड़कर दूसरी ओर यानी भाजपा की ओर जाने की संभावना का खतरा भी बड़ा हुआ है।

राजनीतिक परिस्थितियों में भाजपा ने बाहर से आए अनेक नेताओं को वह स्थान दिया जिनके आचरण की पहले आलोचना की जाती थी और चीन के विरुद्ध नेताओं कार्यकर्ताओं और संगठन परिवार के लोगों ने संघर्ष किया। लोगों के अंतर्मन में इसे लेकर नाराजगी और नायरस्य का भाव है जिसे ना करना केवल सच की अनदेखी करना होगा। 
 
भाजपा की ओर से अरविंद केजरीवाल के प्रश्न पर मुख्य उत्तर यही है कि पहले वह बताएं कि अन्ना हजारे के बारे में उनकी क्या राय है या उन्होंने उन्हें धोखा क्यों दिया? वे अपने भ्रष्टाचार के बारे में स्पष्टीकरण दें। हमारी राजनीति में प्रश्न का सीधा उत्तर देने की परंपरा समाप्त है और इसके और प्रतिक्रिया में केवल ऐसे प्रश्न किए जाते हैं जो दूसरे के लिए और सुविधा उत्पन्न करें। 
 
इस मामले में एक हफ्ता केजरीवाल किया रणनीतिक सफलता है क्योंकि संघ के बारे में और स्वयं भाजपा पर उठाए गए उनके प्रश्नों का उत्तर भाजपा की ओर से नहीं मिल सकता। निश्चय ही वह इसके आगे की रणनीति बना चुके होंगे और भाजपा के साथ संघ को भी कटघरे में खड़ा करेंगे। किंतु यहां सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अरविंद केजरीवाल का वक्तव्य इस बात का स्वयं प्रमाण है कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आज भी एक नैतिक आदर्श और सुचित्रा से भरा हुआ संगठन मानते हैं और तभी उन्होंने इस तरह के प्रश्न किया है। 
 
केजरीवाल को भी स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर संघ के बारे में उनकी सोच क्या है। कारण राहुल गांधी और दूसरे नेता संघ को हमेशा अपनी राजनीति साधने और मुसलमानों सहित एक बड़े वर्ग का वोट पाने के लक्ष्य से संघ को एक फासिस्ट हिंसक दूसरे समुदायों से नफरत करने वाला अनैतिक संगठन घोषित करते रहते हैं।

भले अपनी राजनीतिक हित की दृष्टि से ही केजरीवाल ने इसके विपरीत संघ को तत्काल वर्तमान झूठ अनैतिक और भट्ट की हुई राजनीति तथा सार्वजनिक जीवन में ऐसा संगठन माना है जिसके अपने चरित्र में नैतिक अतः शक्ति विद्यमान है। या बात अलग है कि अन्ना हजारे अभियान के समय जब सॉन्ग ने कहा की राष्ट्र हित का ध्यान रखते हुए संघ के स्वयंसेवक अपने आप उसमें सहयोग के लिए लगे थे तो उन्होंने इसका खंडन कर दिया था। तब उनका बयान संघ प्रमुख के विरुद्ध अनदर वाला था। 
 
सच यह है कि अरविंद केजरीवाल ही नहीं उनके जैसे सक्रीय ज्यादातर एक्टिविस्टों का संघ के स्वयंसेवकों के साथ व्यक्तिगत और कार्यगत संबंध होते हैं क्योंकि वह देखते हैं कि उनके कार्यक्रमों अभियानों में किस तरह ही है स्वार्थ रहित और अनुशासित होकर सक्रिय रहते हैं। लेकिन राजनीति की दृष्टि से उन्हें समर्थन करना शायद लाभकारी नहीं लगता और फिर व्यक्तिगत संबंध रखते हुए भी सार्वजनिक रूप से अनर्गल बयान बाजी करते रहते हैं। किंतु अरविंद केजरीवाल की राजनीति में भाजपा के विरोध और स्वयं उनके संस्कार के कारण अनेक असत्य अनैतिक सत्यता अनैतिकता आदि होते हुए भी हिंदुत्व भारत राष्ट्रवादके संदर्भ में हमेशा मुखर और अलग स्वर रहे हैं। 
 
जेल से आने के बाद उन्होंने भारत माता की जय और वंदे मातरम का नारा लगाया तथा भाजपा को राष्ट्र विरोधी शक्तियां कहते हुए कहा कि यह विकास में बाधा डालते हैं उनके विरुद्ध संघर्ष करना है। आपके विरोधी नेताओं में कोई भी महाराष्ट्र या सार्वजनिक मन से भारत माता की जय आदि कहते हुए नहीं मिलेगा। तो यह एक मौलिक अंतर अरविंद केजरीवाल और बाकी नेताओं में है। किंतु उनकी राजनीतिक रणनीति जो भी हो एक बार संघ के बारे में उन्होंने अपनी राय जरूर सामने रखनी चाहिए। 
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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