क्रिकेट शर्मसार है। ऐसे देश के खिलाड़िओं ने इसे शर्मसार किया है, जहां उन्हें सबसे ऊंचा दर्ज़ा प्राप्त है। ऐसा लगा जैसे कंगारुओं ने अपने बच्चे को निकालकर जमीन पर पटक दिया है। यह बताने की जरूरत नहीं कि ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़िओं को कंगारू भी कहा जाता है। क्रिकेट को इसके शुरुआती दौर से ही भद्रजनों का खेल कहा जाता रहा है।
इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया इसके शुरुआती प्रतिद्वंद्वी हैं, जिनके बीच सबसे पुरानी एशेज ट्रॉफी के लिए कांटाजोड़ मुकाबला होता है। इन दोनों देशों की सरकारें और राजनीतिज्ञ भी क्रिकेट और इसके खिलाड़िओं को बहुत अहमियत देते हैं। ऑस्ट्रेलिया में तो क्रिकेट को देश से ऊंचा दर्जा दिया जाता है, क्योंकि वहां राजनीतिक सरकार बनने के पहले से क्रिकेट खेला जा रहा है।
इस जानकारी के साथ अपनी टिप्पणी प्रारंभ करने के पीछे मेरा मंतव्य सिर्फ इतना है कि आज जो विवाद क्रिकेट के गलियारों में गूंज रहा है उसके कारणों के पीछे यही ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम है। अपनी लगातार हार की शर्म मिटाने और जीत के लिए इस टीम ने ऐसा षड्यंत्र रचा कि पूरा क्रिकेट वर्ल्ड शर्मसार हो गया। स्वयं ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री को शर्मसार होते हुए अपने देश की ओर से क्षमा मांगनी पड़ी और सख्त कार्रवाई के निर्देश क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया को देना पड़े।
ऑस्ट्रेलिया के साथ इंग्लैंड का जिक्र इसलिए किया क्योंकि जो हरकत ऑस्ट्रेलिया ने अब की, उसका जनक इंग्लैंड ही है, जो क्रिकेट का जनक भी है। गेंद के साथ छेड़छाड़ का पहला मामला 1976 में इंग्लैंड के तेज गेंदबाज जॉन लीवर के खिलाफ भारत दौरे के दौरान बिशन सिंह बेदी ने दर्ज कराया था। कप्तान रिकी पोंटिंग की कप्तानी में ऊंचाई की बुलंदियों को छूने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम वर्तमान में लगातार हार रही है।
शायद यही वजह है कि वर्तमान कप्तान स्टीव स्मिथ और उप कप्तान डेविड वार्नर ने दक्षिण अफ्रीका के वर्तमान दौरे में ड्रेसिंग रूम में टीम के साथ मिलकर गेंद के साथ छेड़छाड़ का षड्यंत्र रचा और इसे अंजाम देने के लिए कैमरन बेनक्राफ्ट को मोहरा बनाया, लेकिन वे भूल गए कि हम तकनीकी सूक्ष्मता के दौर में हैं, जबकि खिलाड़िओं की छोटी से छोटी हरकत भी कैमरे में कैद हो जाती है।
इस मामले में यही हुआ और पूरी की पूरी ऑस्ट्रेलियाई टीम पर आज पूरी दुनिया थू-थू कर रही है। सबसे ज्यादा लानत-मलामत तो उसके ही देशवासी और मीडिया कर रहा है। पहली प्रतिक्रिया ही देश के प्रधानमंत्री की ओर से आना मामले की गंभीरता को साबित करती है। ऐसा भी नहीं है कि गेंद के साथ छेड़छाड़ का यह पहला मामला है। पहले भी अनेक अवसर ऐसे आए हैं, जॉन लीवर से लेकर शाहिद अफरीदी, फॉफ डुप्लेसिस आदि तक अनेक बार इस तरह के आरोप लगे।
कुछ सही पाए गए तो कुछ को नकार दिया गया। इन मामलों में कोई सख्त कदम उठाने की जरूरत महसूस नहीं की गई। लेकिन इस बार मामला बिलकुल अलग और संगीन है। पिछले कई अवसरों पर तो तकनीकी इतनी विकसित नहीं थी इसलिए मामलों को इग्नोर भी किया गया। लेकिन इस बार स्क्रीन पर छेड़छाड़ का पूरा प्रकरण साफ दिखाई दिया। फलस्वरूप ऑस्ट्रेलियाई टीम के कप्तान स्टीव स्मिथ को स्वीकार करना पड़ा कि दक्षिण अफ्रीका से तीसरा टेस्ट जीतने के लिए उन्होंने बॉल टेम्परिंग कराई।
इसके बाद उन्हें और उप कप्तान वार्नर को तुरंत पद से हटा दिया गया। यह पहला अवसर है जबकि किसी टीम के कप्तान और उप कप्तान को मैच के बीच ही पदों से हटाया गया है। क्रिकेट के इतिहास में दक्षिण अफ्रीका के कप्तान हैंसी क्रोनिए द्वारा मैच फिक्सिंग का आरोप स्वीकारने के बाद यह दूसरा अवसर है, जब किसी कप्तान ने इस तरह की स्वीकारोक्ति की है।
जहां तक बात सजा की है तो क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने स्मिथ और वार्नर पर एक-एक साल का और बेनक्राफ्ट पर नौ माह का प्रतिबंध लगाया है, जबकि क्रिकेट की अंतरराष्ट्रीय संस्था आईसीसी ने स्मिथ को सिर्फ एक मैच के लिए निलंबित कर फिर अपनी भेदभावपूर्ण नीति का प्रदर्शन किया। ये तीनों खिलाड़ी अब इस वर्ष आईपीएल में भी नहीं खेल सकेंगे। सजा पर सवाल भी उठे, किसी ने कम तो किसी ने ज्यादा बताया।
स्मिथ और वार्नर ने मीडिया के सामने रोते हुए अपना गुनाह कबूल कर प्रशंसकों की सहानुभूति अर्जित करने की भी कोशिश की, लेकिन मेरी राय में ऐसे मामलों में पर्याप्त सख्ती जरूरी है अन्यथा यह खेल भद्रजनों का नहीं रह जाएगा और खिलाड़ी लचीले नियमों का नाजायज फायदा उठाते रहेंगे। खासतौर से ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी, जो स्लेजिंग (छींटाकसी) के लिए खासे बदनाम हैं, उन्हीं की देखादेखी भारत समेत अन्य देशों के खिलाड़ी भी अब खासी छींटाकसी करते नजर आते हैं और मैदान पर प्रायः विवाद बढ़ जाता है।