आयशा के लिए मोमबत्ती ना जलाएं सिर्फ अपने भीतर आत्मबल की रोशनी जगमगाएं
मेरी अनदेखी हमज़ात आयशा...
पता है ...मैंने कल दिए अपने इंटरव्यू में यह कहा कि स्त्री बहुत ताकतवर होती है। मुझे लैंगिक समानता/असमानता के ऊपर एक प्रश्न पूछा गया था, जिसके जवाब में मैंने यह बात कही। पुरुष शारीरिक संरचना के आधार पर मजबूत माना जाता है और स्त्री कोमल।
लेकिन मेरा मानना है कि स्त्री भीतर से इतनी मजबूत होती है कि पुरुष उसके आगे नहीं टिकता। ऐसा मेरा मानना है.. लेकिन अफसोस....! कि तुमने अपनी जीवन लीला समाप्त करके मुझे गलत साबित किया। तुम्हें यह नहीं करना चाहिए था ..क्योंकि मैं जानती हूं कि सचमुच स्त्री मजबूत होती है। और तुम टूट क्यों गई ...जब तुम्हें इतना प्यार करने वाले अम्मी अब्बू मिले थे। तुमने क्यों नहीं उनके बारे में सोचा।
तुम्हारे शौहर ने यह साबित कर दिया कि तुम कमजोर थी। जानती हूं कह देना आसान है.. जो भुगत रहा होता है, वही जानता है कि उसकी परेशानी क्या है। लेकिन हम स्त्रियां इतनी मजबूत हैं कि किसी भी परेशानी से अपने आत्मबल के बूते बाहर निकल सकती हैं। तुम्हारे अंदर भी तो आत्मबल रहा होगा। मुझे तुम्हारे पहले की परिस्थितियां क्या है....? क्या रही होंगी..? यह नहीं पता। लेकिन वह स्त्री की ताकत ही है जो धारा के विपरीत भी... प्रतिकूल तैरकर भी... अपनी राह बना लेती है।
तुम अपनी ताकत को क्यों नहीं पहचान पाईं..? तुम चली गई हो...अब लोग धरना दे देंगे... मोमबत्तियां जला लेंगे ...और अपराधी तुम्हारे शौहर को सजा भी हो सकती है। लेकिन तुम तो वापस नहीं आओगी ना....! यकीनन तुम अब मुझे नहीं सुन पा रही हो। लेकिन मैं अपने शब्दों के जरिए उन तमाम आयशाओं से यह कहना चाहूंगी कि कोई मोमबत्ती ना जलाएं सिर्फ अपने भीतर की जो आत्मबल की रोशनी है.. उसे जगमगाने दें.... अंधेरों में गुम ना होने दें। तुम्हारे चले जाने से आने वाला महिला दिवस स्याह भले ही हो गया है ....लेकिन बाकी आयशाएं उसे अब स्याह होने से बचाएं और इस बात को झुठला दें कि स्त्री कमज़ोर होती है..।
परलोक यदि होता है..और तुम वहां हो ...तो सुनो...! अगले जन्म में भी बेटी बनकर आना..मजबूत बेटी...और अपनी अम्मी का आंचल समृद्ध करना।