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फिर तेजाब, असफल प्रेम का यह कैसा हिसाब....

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स्मृति आदित्य

बेंगलुरू में शादी से इंकार किए जाने पर एक लड़की लिदिया यशपाल ने अपने प्रेमी पर तेज़ाब डाल दिया है। 32 वर्षीय जयकुमार पुरुषोत्तम के चेहरे पर अपनी प्रेमिका द्वारा तेज़ाब डालने वाली यह खबर खतरनाक है। यह डरावना संकेत है। यह दिल को दहलाता विकराल तेजाबी वर्तमान है। इस तरह की खबरें 'राहत' नहीं देती आहत करती है। यह सच है कि इस खौलती खबर के पीछे ना जाने कितने जलते-सुलगते सवाल और झुलसे चेहरे का तेजाबी इतिहास है।


लेकिन यह हम किस विकृत दौर में जी रहे हैं और जा रहे हैं कि प्रेम ना मिले तो प्रेमी/प्रेमिका को उसकी आत्मा और उसके रूप को ही विनष्ट कर दो। यह सच है कि इतिहास उन घटनाओं के ढेर पर खड़ा है जहां कोमल चेहरे झुलसे रूप में ज्यादा मिलते हैं। जहां प्रेमिका के इंकार किए जाने पर तथाकथित प्रेमी ने उनके रूप को विकृत किया है लेकिन क्या यह घटना उन घटनाओं का प्रतिसाद है? 
 
यह घटना एक वर्ग से दूसरे वर्ग के इंतकाम के रूप में देख ना क्या उचित होगा? नहीं.... क्योंकि तेजाब ने अपना गुणधर्म नहीं बदला है वह पुरुष के चेहरे पर भी उतना ही भयावह और तीखा होता है जितना कि बरसों से किसी महिला के चेहरे पर गिरते हुए दर्द का सैलाब रचता रहा है। लेकिन समझना तो यह है कि प्रेम जैसे सुकोमल और सुंदर शब्द के साथ यह कैसा खिलवाड़ है? प्रेम चाहे स्त्री करें या पुरुष करें उसकी अभिव्यक्ति और परिणति दोनों ही सौजन्यता, कोमलता और नर्म अहसासों को मांगती है। दूसरी तरफ इंतकाम और बदला जैसे लफ्ज युद्ध में भी एक गरिमा और अनुशासन की मांग करते हैं फिर तो यह जीवन है। इसके अपने कुछ कायदे हैं, अपना एक तरीका है। यहां कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता। निदा फाजली क्या रच पाते इस कालजयी रचना को अगर पा लेने वाला स्वार्थी प्यार ही उनके दिल ने भी महसूस किया होता यह पहली बार है कि किसी लड़की ने तेजाबी हमला किया है तो क्या सिर्फ इस दुस्साहस के लिए जश्न मनाया जाए। हो गए हम भी बराबर। तुम हम पर तेजाब फेंक सकते हो, देखो हम भी यही कर सकती हैं...। कहां ले जाएगी यह कुत्सित प्रतिस्पर्धा हमें?  
    
जिस पुरुष पर तेजाब फेंका गया है उसका पक्ष है कि उसका लड़की से चार साल से प्रेम संबंध था और लिदिया उनसे शादी करना चाहती थी। लेकिन धर्म अलग होने के कारण उनके माता-पिता नहीं मान रहे थे। पुरुषोत्तम ने लिदिया से पिछले तीन महीनों से दूरी बना ली थी और लिदिया बहुत गुस्से में थी कि पुरुषोत्तम शादी के लिए दूसरी लड़की की तलाश कर रहा है।
 
इस एक मामले में ही कितने और धागे उलझे हैं, जातिवाद भी,स्त्री पुरुष के समीकरण भी, बदलता सामाजिक स्वरूप भी और प्रेम का निरंतर होता विक्षिप्त रूप भी.... कहां से और कैसे शुरू करें बात को, कहां और किस जगह आकर खत्म करें हालात को.... यह अशुभ ही था कि तेजाब स्त्री के चेहरों को झुलसा रहे थे, पर यह भी अशुभ और अमंगल ही करेगा कि बदले में पुरुषों के चेहरे झुलसने लगे। सवाल यहां प्रेम जैसी गुलाबी भावना को बचाने का ज्यादा है, ना कि यह हैरानी प्रकट करने का कि उफ्फ ...औरतें भी बदला लेने लगी है.... वह भी इस तरह से....बदलाव की भूमि इस तरह तैयार हो इससे पहले कई-कई झुलसे चेहरों को याद कर लेना... कि ना फेंकने वाले को कुछ हासिल हो सका है ना जलने वालों को.... सिवाय एक गहन पश्चाताप के...   कई-कई झुलसते चेहरों से झांकता हुआ इस घटना का 'तेजाबी सच' स्तब्ध कर रहा है... ‍ 

रचनाकार कमल डाबी ने लिखा है ‍:

यह जो तुमने खुद को बदला है,
यह 'बदला' है,
या 'बदला' है !! 


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