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भारतीय होने की वजह से एक नैतिक जिम्‍मेदारी हमारे कंधों पर भी है

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रीमा दीवान चड्ढा

कच्ची उम्र पर सपने बड़े, बहुत दूर तक उड़ने का सोचती, हर उस क्षेत्र में कूद पड़ती जो मुझे अच्छा लगता। गणित मेरा प्रिय विषय था। पिता पुत्र के सवाल चुटकियों में हल कर लेती। आज तक मैंने कैलकुलेटर का इस्तेमाल नही किया।

आयकर विभाग में जब एक लड़की निर्णय के अंकों के जोड़ के लिए कैलकुलेटर देने आई तो मुझे हैरानी हुई। 100 नंबर के जोड़ के लिए कैलकुलेटर? मैं तो किसी दुकान वाले को कैलकुलेटर या मोबाइल पर जोड़ते देखती हूं तो मना कर देती हूं। स्वयं जोड़ती हूं और उसे भी बताती हूं अंकों को किस तरह जोड़ा जाता है।

जीवन भी जोड़ घटाव का समीकरण है। हम सब केवल जोड़ना ही तो चाहते हैं। विडंबना ये है कि जोड़ना क्या है और किस चीज़ को कितना जोड़ा जाए ये हम पर निर्भर करता है। आज पत्रकारिता पर बात करने का मन है। स्कूल कॉलेज के दिनों में पत्रकारिता करने का जुनून था। तब इसके मायने नहीं पता थे। ये भी नही पता था कि ये लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है। लोकतंत्र के तीन स्तंभ इन शब्दों के वज़न को हमारे नेताओं ने बहुत कम कर दिया है, खेद के साथ कहना पड़ता है कि उनका अपना वज़न और उनका बैंक बैलेंस अवश्य बढ़ता ही जा रहा है।  अब बात करें चौथे स्तम्भ की तो इसकी ताकत देखकर ही तो अकबर इलाहाबादी ने कहा होगा-

खींचों न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो

दो पंक्तियां हैं ये केवल पर शायद आप समझते हों इन दो पंक्तियों में कितनी ताकत छुपी हुई है। शायर और कवि शब्दों से खेलते नहीं हैं और जिनकी कलम ताकत रखती है वो बहुत कुछ कह सकते हैं और चाहे तो तख्ता पलट भी सकते हैं। तोप से तुलना जिस अखबार की करी गयी है आज वह अख़बार कहां है?

पेड न्यूज़ का ज़माना है कह कर आप पल्ला झाड़ कर मत उठ जाइए। एक नैतिक ज़िम्मेदारी आपके कंधों पर भी है। देश ने यदि आपको इस धरती पर रहने की जगह दी है। आप यदि अपनी बलिनो कार में घूमते हुए अपने बंगले तक पहुंच कर आराम फरमाते हैं तो वो धन इस अख़बार की कमाई का है। आप अपनी ज़िम्मेदारी से मुकर नहीं सकते। तीनों स्तम्भ यदि चरमरा रहे हैं तो उन्हें मज़बूत करने की ज़िम्मेदारी आपके कंधों पर है। मालिक केवल पैसा कमाना चाहते हैं पर आप जो कलम के सिपाही हैं ताकत और बुद्धि तो आपके पास है।

आप क्यों नहीं दिशा दिखा सकते? मालिकों को कौन समझायेगा कि लोगों से जुड़ने के लिए तंबोला खिलाना और कुकिंग कॉम्पीटिशन कराना महत्वपूर्ण नहीं है। लोगों तक पहुंचने के लिए, अख़बार के विस्तार के लिए अच्छे समाचारों की, अच्छे विचारों की निहायत ज़रूरत है। लोगों की समस्याओं तक पहुंचने का प्रयास करते तो, उनकी उपलब्धियों को जानने की कोशिश तो करिए। कहां हैं आपके रिपोर्टर? मैंने नागपुर शहर के किसी रिपोर्टर को किसी साहित्यिक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग करने के लिए सभा में उपस्थित नहीं देखा। आपको जो समाचार हम स्वयं लिखकर भेजते हैं आप उसको भी बिना किसी तवज्जों और समझ के काट छांट कर चिपका देते हैं।

गडकरी जी का समाचार महत्वपूर्ण है। खासदार महोत्सव महत्वपूर्ण है क्योंकि पूरे पेज का विज्ञापन आपको मिल रहा है। नेताओं और अभिनेताओं को अख़बारों के मुखपृष्ठ पर तवज्जों देने वाले अख़बार वालों एक नैतिक ज़िम्मेदारी आपके कंधों पर है। आज आपके पास धन है, इसलिए आप अख़बार निकाल पा रहे हैं और धन से धन ही उगा रहे हैं? वैचारिक क्रांति की आवश्यकता आपके अख़बारी पन्ने कर सकते हैं। जनता तो सोई हुई है। अश्लीलता और नग्नता ही उसे चारों ओर से परोसी जा रही है।

फिल्मों ने तो बेड़ा गर्क करने की ठान ली है। दीपिका जैसी नायिका ने पूरे कपड़े उतार दिए हैं। शर्म आती है मुझे इस देश पर। हम नग्नता देखने के लिए आंखें चौड़ी कर के पठान फिल्म को करोड़ों की कमाई करवा देते हैं। देशहित के लिए दो लाइन लिखना, आवाज़ उठाना, प्रतिकार करना हम ज़रूरी नहीं समझते। हम भारत के लोग, हम लोकतंत्र में रहने वाले लोग इतना कैसे सोए हुए हैं, मेरी समझ से परे है।

नोट : आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का आलेख में व्‍यक्‍त विचारों से सरोकार नहीं है।

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