बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर समाज में मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए संघर्ष करने वाले विश्व के महानायक हैं। वे भारत भूमि के अनमोल रत्न हैं। उनका महान व्यक्तित्व बहुआयामी है। डॉक्टर अंबेडकर एक शिक्षक, राजनेता, समाज सुधारक, संपादक, प्रेरक विचारक और विधिवेत्ता थे। अपने समय में बाबा साहब ने तत्कालीन भारतीय समाज में व्याप्त अन्याय अत्याचार सामाजिक तौर पर भेदभाव जैसी बुराइयों के खिलाफ एक ऐसी लड़ाई लड़ी जिसकी दास्तान पूरी दुनिया में इतिहास में दर्ज है। सदियों से अमानवीय बर्ताव का शिकार होने वाले वंचित वर्ग के सम्मान के लिए बाबा साहब ने जो संघर्ष किया आज भी वह पूरी दुनिया के लिए प्रेरणादाई है।
बाबा साहब ने सदियों से व्याप्त सामाजिक कुरीतियों और रूढ़ियों की जंजीरों में जकड़े करोड़ों भारतीयों को वास्तविक तौर पर गरिमापूर्ण जीवन जीने की आजादी दी।
समाज में कई पुरातनपंथी विचारों के चलते जिन करोड़ों वंचितों और शोषितों को इनसान तक भी नहीं समझा जाता था उनके भीतर बाबा साहब ने चेतना का जागरण करने का महानतम कार्य किया। डॉ. अंबेडकर ने लोगों के लिए समता की लड़ाई लड़ी। वे सदियों से मूल मानवीय अधिकारों से वंचित लोगों की हक की लड़ाई के पक्ष में खड़े हुए । उन्होंने नामुमकिन से लगने वाले कठिनतम संघर्ष का नेतृत्व किया। भारतीय समाज को एक समतामूलक समाज में बदलने के लिए बाबा साहब ने एक लंबी लड़ाई लड़ी। उन्होंने लगातार अत्याचारी और रूढ़ीवादी ताकतों को चुनौती दी। अगर हम समूचे विश्व इतिहास को देखते हैं तो डॉक्टर अंबेडकर जैसे महापुरुष नहीं देते।
वास्तव में बाबा साहब एक वैश्विक महानायक हैं। पूरी दुनिया में असमानता और अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले शूरवीर योद्धाओं का जब भी प्रसंग आएगा, डॉ. भीमराव अम्बेडकर के संघर्ष और साहस का वर्णन उसमें अवश्य होगा। वे समूचे विश्व में अन्याय के विरोध में कमजोर वर्गों का स्वर बुलंद करने वाले विजेता हैं। उनके जीवन संघर्ष और विचारों का असर पूरी दुनिया में इस कदर व्यापक है कि हाल ही में ब्रिटिश कोलंबिया ने बाबा साहब के जन्मदिन महीने याने 14 अप्रैल को डॉ. बी आर अम्बेडकर इक्वेलिटी डे घोषित कर दिया है। वहां पूरे अप्रैल माह को दलित हिस्ट्री मंथ बतौर घोषित कर दिया गया है। दरअसलर बाबा साहब एक व्यक्तित्व न होकर प्रेरणा स्रोत हैं। उनका हर विचार दुनियाभर के शोषितों और वंचितों के लिए शक्तिपुंज है। उनके विचारों से हमें दुनियाभर के लिए भाईचारे का संदेश मिलता है।
एक ऐसे वक्त में जब दुनियाभर में वैचारिक हिंसा फैल रही है। जब कथित तौर पर दुनिया के सबसे विकसित, अमीर और ताकतवर देश अमेरिका में अश्वेतों के खिलाफ नस्लीय हिंसा की घटनाएं हो रही हैं। जब पिछले कुछ सालों में कथित तौर पर बहुत सभ्य कहलाने वाले यूरोप के अनेक मुल्कों में प्रवासियों के खिलाफ नस्लवादी हिंसा बढ़ी है। तब ये वैचारिक हिंसा और गैर बराबरी की सोच या दूसरों को हीन दिखाने की होड़ चिंता का विषय ही नहीं है बल्कि ये घटनाएं और इनके पीछे का केंद्रीय विचार संपूर्ण मानवता के लिए शर्म का विषय है। दरअसल ऐसी घटनाओं से यह भी ज्ञात होता है कि आज के इस दौर में भी अनेक देशों में शोषण, भेदभाव और अमानवीय बर्ताव की घटनाएं होती हैं।
भारत में भी ऐसी घटनाएं प्रायः होती रहती हैं जिनमें हमें दिखता है कि हमारे भारतीय समाज में आज भी जबरदस्त असामनता फैली हुई है। आये दिन ऐसी अनेक घटनाएं होती हैं जिनसे पता लगता है कि हमारे यहां आज भी छुआछूत, जातिगत भेदभाव आम आदमी के मन में बहुत गहरे बैठा हुआ है। ये घटनाएं सिर्फ ग्रामीण इलाकों में ही नहीं होतीं बल्कि चमचमाते महानगरों में भी इन बुराइयों ने डेरा जमाया हुआ है। हलांकि किसी भी तरह का भेदभाव और खासकर जाति के आधार पर किसी के साथ अभद्रता या शोषण कानूनी तौर पर अपराध है। लेकिन देशभर में ऐसे अपराध की घटनाओं को देखा जाए तो ज्ञात होता है कि हमारे यहां आज भी वंचितों और शोषितों के प्रति समाज का दृष्टिकोण बहुत बेहतर नहीं हुआ है। दो साल पहले मध्यप्रदेश के छतरपुर में दो युवकों ने एक युवक की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी क्योंकि उसने उनका खाना छू लिया था। आज भी कई इलाकों में कमजोर वर्गों के लोगों की शादियों में किसी रास्ते को लेकर उच्च तबका हंगामा कर देता है। कथित निम्न जातियों के दूल्हे को घोड़ी चढ़कर बारात निकालने में आज भी कई इलाकों में भारी समस्यायें होती हैं। दरअसल हमारे यहाँ सामाजिक भेदभाव का जहर समाज में इतना घुला हुआ है कि स्कूली बच्चे और उनके अभिभावक किसी कमजोर जाति की भोजन पकाने वाली महिला के हाथ क बना मिड डे मील खाने पर भी विवाद करते हैं।
कुल मिलाकर कहने का मतलब है कि हमारे भारतीय समाज में जाति और वर्गभेद की असामनता की समस्याएं अभी भी अपनी जड़ें जमाए हुए हैं। शहरों और कस्बों में सामाजिक भेदभाव थोड़ा कम दिख सकता है लेकिन भारत के कस्बाई और ग्रामीण इलाकों में स्थिति अब भी बहुत बेहतर नहीं। कमजोर वर्गों और वंचितों के प्रति हमारे और समाज के नजरिये में अभी भी अपेक्षित परिवर्तनों का आना शेष है। बाबा साहेब ने सामाजिक स्तर पर हर किस्म के भेदभाव की समस्या को समाप्त करने के लिए लंबा और कड़ा संघर्ष किया था। उनके विचारों ने समाज में प्रत्येक विषय पर विमर्श की एक नई धारा को जन्म दिया है। इस दृष्टि से देखें तो वे एक समाज वैज्ञानिक थे। उनकी दृष्टि बहुत ही प्रखर और व्यापक थी। अपने समय में बाबा साहब हजार बरस आगे की दृष्टि रखने वाले महापुरुष थे ।
आज जबकि पूरी दुनिया बाबा साहब ही जयंती मना रही है ऐसे वक्त में हमें उनके विचारों और चिंतन से सीख लेनी चाहिए। वे बंधुत्व और समतायुक्त समाज की स्थापना के लिए संघर्ष करने वाले महामानव थे। वे एक सच्चे मानवातावादी थे। आज, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय के मूल्यों पर आधारित उनके दर्शन को पूरी दुनिया एक आदर्श के रूप में मानती है। बाबा साहब समता के प्रबल पक्षधर थे। स्वामी विवेकानंद की ही भांति उन्होंने समता के विचार को हर समाज के लिए आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि सभी मनुष्य एक ही मिट्टी के बने हुए हैं। इस तरह हम देखते हैं कि डॉ. अम्बेडकर समाज में मानवीय मूल्यों की स्थापना के प्रबल समर्थक थे। हमें इस महान भारतीय विभूति के जन्म दिवस पर शपथ लेनी चाहिए कि हम उनके स्वप्नों को पूरा करने की दिशा में ठोस कदम उठाएं। हम बाबा साहब के विचारों पर आधारित, एक मानवीय मूल्यों से युक्त, समतामूलक और श्रेष्ठ भारतीय समाज का निर्माण करें।