हल्के हाथ से माथे पर छुआ ली गई हो या करीने से सजाई हुई हो, बिंदी लग भर जाए। हर श्रृंगार पर चार चांद लगा देती है।
आज्ञा चक्र और तृतीय नेत्र के गहन गंभीर विश्लेषण तक न भी जाएं तो भी इस छोटी सी बिंदी का कमाल कम नहीं हो जाता। तमिल और मलयालम में आप इसे पोट्टू कहें, तेलुगु में बोट्टू या बंगाली में टीप कहें इसका जलवा पूरी दुनिया में कायम है।
भारतीयता का परचम बनकर, पहचान बनकर छा जाने वाली बिंदी शास्त्रों तक में वर्णित है, पुरातन काल से आज तक न कभी यह "आउट ऑफ फैशन" हुई और न तिल भर भी इसकी महत्ता काम हुई। जबकि तीन हजार साल का तो उसका इतिहास मूर्तियों से ही सिद्ध है।
भारतीयता की शुद्धतम पहचान को लेकर जब वर्ल्ड बिंदी डे बतौर मनाया जाने लगे तो गर्व होना ही चाहिए। स्त्री शक्ति के प्रतीक की तरह, सुंदरता की पूर्णता की छुअन की तरह या पृथ्वी की गोलाई को समेट कर खुद में उतर लेने वाले प्रतीक की तरह बिंदी खुद को कायम रखे।
पुरुषों का तिलक और स्त्रियों की बिंदी संभवतः साथ ही चले होंगे लेकिन आज बिंदी कहीं आगे है, इस गोल दुनिया पर बिंदी की गोलाई....