Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

क्या होम्योपैथी वाली दवाओं की शक्ति समय के साथ घट जाती है?

Advertiesment
हमें फॉलो करें Birth anniversary of Samuel Hahnemann father of homeopathy
webdunia

राम यादव

, गुरुवार, 10 अप्रैल 2025 (07:05 IST)
इस कड़ी का प्रथम भाग 270 वर्ष पूर्व जन्मे और 1796 में होम्योपैथी के जन्मदाता बने जर्मनी के डॉ. ज़ामुएल हानेमन के जीवन-परिचय और एक अहिंसक चिकित्सा पद्धति के रूप में होम्योपैथी की उनकी खोज को समर्पित था। यह दूसरा भाग, परमाणु भौतिकी की भारत की एक ऐसी महिला वैज्ञानिक को समर्पित है, जो मुंबई के 'भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र' में कई वर्षों तक होम्योपैथी की कार्यविधि को समझने के लिए गहन शोध कार्य कर चुकी हैं। 
 
2005 के 10 अप्रैल के दिन दुनियाभर के होम्योपैथी समर्थकों ने इस उपचार विधि के जनक ज़ामुएल हानेमन की 250वीं जन्म जयंती मनाई थी। इस अवसर पर जर्मनी की राजधानी बर्लिन में एक अंतरराष्ट्रीय होम्योपैथी सम्मेलन हुआ था। इस सम्मेलन में मुझे मुंबई की डॉ. अकल्पिता परांजपे मिल गईं। वे मुंबई के ट्रांबे में स्थित भारत सरकार के 'भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र'  में परमाणु भौतिकी की वैज्ञानिक थीं।
webdunia
डॉ. अकल्पिता परांजपे ने मुझे बताया कि वे उस समय क़रीब 25 वर्षों से होम्योपैथी की कार्यविधि को परमाणु विज्ञान की दृष्टि से देखने-समझने के लिए शोधकार्य कर रही थीं। इस बात से दुखी थीं कि होम्योपैथी के जन्म के 200 वर्ष बाद भी पूरी दुनिया में ऐसे डॉक्टरों, शोधकों, विद्वानों, राजनीतिज्ञों और पढ़े-लिखे लोगों की कमी नहीं है, जो होम्योपैथी को झूठ, बकवास, प्लैसेबो (सच लगता झूठ), अवैज्ञानिक और धोखाधड़ी बताते हैं। 
 
आप का विषय तो परमाणु भौतिकी है, फिर होम्योपैथी कैसे? 
होम्योपैथी, भौतिकशास्त्री के लिए बहुत ही दिलचस्प विषय है। हम समझते हैं कि वह एक औषधि प्रणाली है, किंतु मेरे लिए तो वह पदार्थ विज्ञान की ही एक शाखा है। यदि पदार्थ (मैटर) किसी ऐसी सीमा पर पहुंच जाता है कि उसका कोई भी अणु या परमाणु शेष नहीं बचता और वह फिर भी औषधि जैसा काम करता है, तो इसका मतलब है कि उसमें कोई परिवर्तन आए हैं, जो हमारे जैविक तंत्र (Biological system) को प्रभावित कर रहे हैं। इसी कारण इसमें मेरी अभिरुचि भी रही है।
 
क्या इस परिवर्तन को मापा भी जा सकता है?   
विशुद्ध भौतिकशास्त्र वाले प्रयोगों में तो हम इसे देख नहीं पाएंगे। लेकिन सौभाग्य की बात है कि  जैविक तंत्र इस तरह के संकेतों में भेद कर सकता है। उनके बीच चुनाव कर उन्हें अपना बना और बढ़ा सकता है।
 
जैविक तंत्र से आपका क्या मतलब है?  
एक बात हमें याद रखनी चाहिए कि होम्योपैथी की दवाएं पानी या अल्कोहल में किसी औषधीय तत्व को घोलकर और बार-बार हिलाते या घोटते हुए उस घोल के तनूकरण (Dilution) द्वारा यानी उसे यांत्रिक ऊर्जा (Mechanican energy) देकर बनाते हैं। यह दवा अपने गुण रासायनिक तंत्र को भी दे सकती है और जैविक तंत्र को भी। कोई भी जैविक तंत्र हो सकता है- बैक्टीरिया, निचले स्तर के जीवधारी या हम मनुष्य भी।
 
मैंने काफी प्रयोग किए हैं। एक प्रयोग एक्टिनोमाइसेस एसपी (Actinomyses sp) नाम के बैक्टीरिया में अल्कलाइन फ़ॉस्फ़टेज़ एक्टिविटी (Alkline Phosphatase Activity) है। इसमें यह देखा जाता है कि बैक्टीरिया द्वारा अल्कलाइन फ़ॉस्फ़टेज़ के निःसरण में कितना फ़र्क पड़ता है। देखा गया कि लाइकोपोडियम (Licopodium) देने से इस निःसरण में सौ प्रतिशत से भी अधिक फ़र्क पड़ता है। इससे यही साबित होता है कि लाइकोपोडियम, एक्टिनोमाइसेस एसपी बैक्टीरिया के जीन की गतिविधियों को बदल सकता है। दूसरे शब्दों में होम्योपैथी की यह औषधि इस ख़ास बैक्टीरिया के जीन की सक्रियता बदलने का काम करती है, जो कि अल्कलाइन फ़ॉस्फ़टेज़ वाले एन्ज़ाइम की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।
 
मनुष्यों पर भी प्रयोग किए हैं? 
मनुष्यों पर भी इस तरह के कई प्रयोग किए, जैसे कि प्लेथीस्मोग्राफ़ी (Plethysmography/ हृदय संकुचन के समय बांहों और टांगों में रक्तचाप की तुलना)। इस प्रयोग में एक सुन्दर बात यह दिखी कि मान लें कि यदि कहीं रक्त का कोई थक्का है (Thrombosis) या कोई अवरोध है और यदि आप कोई एलोपैथिक दवा देते हैं, तो रक्तसंचार, उदाहरण के लिए दोनों बांहों में एक समान बढ़ जाएगा, क्योंकि एलोपैथी की दवा यह अंतर नहीं कर सकती कि अवरोध किस बाजू में है– दायीं या बायीं।  लेकिन अवरोध यदि बायीं बांह में है और आप होम्योपैथी की दवा देते हैं, तो वह बायीं तरफ ही असर करेगी और दोनों बाहों में रक्त संचार को एक बराबर पर लाएगी। यह अंतर केवल होम्योपैथी की दवा से ही देखने में आता है और इसे हम दिखा सकते हैं।
 
होम्योपैथी की कारगरता को सिद्ध करने के लिए भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में क्या आपको नए उपकरण बनाने पड़े?
आयुर्वेद से प्रेरणा लेकर हमने एक ऐसा उपकरण बनाया है, जो जिस तरह वैद्य नब्ज़ देखकर रोग बताता है, उसी तरह नब्ज़ को पढ़कर उसे इलेक्ट्रॉनिक संकेतों में इस तरह बदलता है कि शरीरक्रिया संबंधी पांच पैरामीटर (प्राचल) मापे जा सकते हैं। हम सोचते हैं कि नब्ज़ हमेशा 72 बार ही धड़कती है, पर ऐसा नहीं है। यह संख्या स्थिर नहीं रहती, बदलती रहती है। शरीरक्रिया सुचारु रूप से चलने के लिए यह बदलाव बहुत महत्वपूर्ण है। जब हम इसे फ्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम में बदलते हैं, तो हमें स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (ऑटोनॉमस नर्वस सिस्टम/Autonomous nervous system) के तीन प्रकार मिलते हैं– अनुसंवेदी (Sympathetic), प्रतिसंवेदी (Parasympathetic) और श्वसनीय (Respiratory)। 
 
इसके महत्व को समझने के लिए मान लें कि हमें कोई आकस्मिक आघात लगता है- जैसे कोई त्सुनामी लहर आ गई तो हमारा अनुसंवेदी तंत्रिका तंत्र तुरंत सक्रिय हो जाएगा। होम्योपैथिक औषधि देने पर भी प्रारंभिक प्रतिक्रिया कुछ ऐसी ही होती है। और जब प्रतिसंवेदी तंत्रिका तंत्र विपरीत दिशा में काम करना शुरू करता है, तब शरीर सामान्य स्थिति की ओर लौटने लगता है। आकस्मिक आघात के कारण जो संकेत विभिन्न अंगों को मिले थे, वे पीछे हटने लगते हैं। होम्योपैथी में भी दवा के प्रति पहली प्रतिक्रिया के बाद दूसरी प्रतिक्रिया आती है और वह बीमारी ठीक करती है। इस उपकरण की सहायता से हमने होम्योपैथी की कुछ दवाओं का अध्ययन किया है और पाया है कि यह निर्णय करने में हमें सहायता मिलती है कि किसे, कब, कौनसी दवा देनी चाहिए। 
 
एक मान्यता है कि हमारे शरीर की हर कोशिका ही नहीं, हर अणु-परमाणु के पास भी अपनी बुद्धि जैसी कोई चीज़ होती है। तो क्या आयुर्वेद और होम्योपैथी की दवाएं भी इसी स्तर पर काम करती हैं?
हमारे जो कोशिका रिसेप्टर या ट्रांसमीटर होते हैं, उन सबके लिए एक रिफ़रेंस सिग्नल (संदर्भ संकेत) की ज़रूरत होती है। आयुर्वेद में उसे वायुतत्व कहा गया है और बहुत ही महत्वपू्र्ण बताया गया है। होम्योपैथी हमारी कोशिकाओं को यही संदर्भ संकेत प्रदान करने का काम करती है। संदर्भ संकेत का अर्थ है, जैविक तंत्र की स्वाभाविक लय-ताल बनाए रखने या वापस लाने के लिए जिस संकेत की ज़रूरत है, दवा के द्वारा ठीक वही संकेत देना। लय-ताल जब भी गड़बड़ा जाती है, तब हम बीमार पड़ जाते हैं। सही संदर्भ संकेत देने पर शरीर की कोशिकाओं के स्पंदन की लय-ताल दुबारा स्वाभाविक हो जाती है और हम स्वस्थ हो जाते हैं।
  
ऐसा भी हो सकता है कि नियमानुसार दवा देने पर कोशिका स्पंदन की लय-ताल, अल्पकाल के लिए ठीक हो कर फिर पलट गई, क्योंकि कहीं कोई रूकावट है। इसलिए रुकावट को दूर करने के बाद ही नियमानुसार दवा दी जानी चाहिए। आयुर्वेद हमारा बहुत पुराना और अनुभव-सिद्ध विज्ञान है। उसके पास ज्ञान का जो भंडार है, वह शायद ही किसी और पद्धति के पास है। दूसरी ओर  होम्योपैथी के द्वारा जिस तरह हम स्वाभाविक लय-ताल वापस लाते हैं, वह बहुत सुन्दर है। यदि हम दोनों को साथ लेकर चलें, तो यह मनुष्य तो क्या, प्राणीमात्र के लिए एक बड़ी देन होगी।
 
होम्योपैथी वाली दवाओं की शक्ति (पोटेंसी) क्या समय के साथ घट जाती है?
भौतिक दृष्टि से होम्योपैथी की शक्तिकृत औषधों के बारे में हम कह सकते हैं कि उदाहरण के लिए, सौ पोटेंसी का अर्थ है, पानी या अल्कोहल की सौ अवस्थाएं। जैसे कार्बन के कई एलोट्रॉपिक (Allotropic/ अपरूप) होते हैं या फॉस्फ़ोरस के 6-7 अपरूप होते हैं, वैसे ही पानी या अल्कोहल के रूप में होम्‍योपैथी वाली दवा की भी अनगिनत अवस्थाएं हो सकती हैं। हम पाते हैं कि इन दवाओं का जीवनकाल बहुत लंबा होता है। उन्हें धूप में, आग, बिजली या चुंबक के पास रखें, तो वे अपनी प्रभावकारिता शीघ्र ही खो सकती हैं। लेकिन उन्हें यदि इन सबसे परे रखें, तो उनमें कोई परिवर्तन नहीं आता। इन दवाओं के अंदर हमने जो रक्षित किया है, वह संप्रेषणशील है– रासायनिक प्रणालियों के से साथ भी कम्युनिकेट कर सकता है और जैविक प्रणालियों के साथ भी। उनके अंदर जो आणविक संरचना बदलती है, वह ऊर्जा के आदान-प्रदान के द्वारा नया संतुलन लाती है, हमारे तंत्रिका तंत्र के रिसेप्टरों और ट्रांसमीटरों को चालू करने के लिए आवश्यक ऊर्जा देती है।
 
क्या पारंपरिक किस्म के तथाकथित वैज्ञानिक परीक्षणों से होम्योपैथी के प्रभावों को जाना-पहचाना जा सकता है?
पारंपरिक टेस्ट में हम जो बायोकेमिकल (जैवरासायनिक) या पैथोलॉजिकल (रोगात्मक) पैरामीटर (प्राचल) मापते हैं, उनके बारे में हम अपेक्षा करते हैं कि उनका रुझान (trend) परिचित ढर्रे के अनुसार होना चाहिए। मान लीजिए कि किसी को कोई ट्यूमर (रसौली, अर्बुद) है या कोई त्वचारोग है और आपने उसे होम्योपैथी की दवा दी है। यह दवा ट्यूमर या दाग़ पैदा करने वाले विषद्रव्य को जब घुलाएगी, तो विषद्रव्य खून के साथ मिलकर अलग होने लगेगा। अब जो जैव रासायनिक पैरामीटर खून में घटने चाहिए, वे वास्तव में बढ़ने लगेंगे।
 
उदाहरण के लिए, पीलिया रोग (Jaundice) हो जाने पर बिलीरुबीन (Billirubin / मृत लाल रक्तकणों और पित्त के मेल से बना लाल-भूरे रंग का एक प्रकार का विषद्रव्य) यकृत (Lever) में जमा होने लगता है। जब हम यकृत को ठीक करने वाली कोई होम्योपैथिक दवा देते हैं, तो यकृत जैसे-जैसे ठीक होता है, इस बिलीरुबीन को अपने भीतर से बाहर निकालने लगता है। बाहर निकालने का एक ही तरीका है कि वह खून में मिल जाता है यानी खून में बिलीरुबीन की मात्रा बढ़ जाती है।

अब यदि ऐसा कोई रोगी एलोपैथी के किसी डॉक्टर के पास गया, तो वह लाल-पीला होने लगेगा और कहेगा कि खून में एक विषैले पदार्थ की मात्रा बहुत बढ गई है, इलाज बदलो और अस्पताल में भर्ती हो जाओ। लेकिन कोई होम्योपैथ यही कहेगा कि यह तो बिल्कुल स्वाभाविक है। कोई विषद्रव्य खून के ही माध्यम से तो शरीर के बाहर निकलेगा! अतः यह कहना कि हमें जो मालूम है, वही विज्ञान है और हमें जो नहीं मालूम, वह विज्ञान नहीं है, वास्तव में अज्ञान या ग़लत ज्ञान है। हमें अपना दिमाग हर क्षण हर चीज़ के लिए खुला रखना चाहिए।
 
जहां तक होम्योपैथी की लोकप्रियता और प्रचार-प्रसार का प्रश्न है, बाक़ी दुनिया की तुलना में भारत के लोगों का दिमाग सबसे अधिक खुला है। भारत में ही होम्योपैथी के सबसे अधिक डॉक्टर हैं। होम्योपैथी की शिक्षा देने वाले सबसे अधिक विश्वविद्यालय, कॉलेज और संस्थान हैं। भारत से बाहर केवल जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, स्वीडन, ऑस्ट्रिया, स्पेन और अमेरिका जैसे थोड़े-से गिने-चुने देशों में ही उसे एक चिकित्सा पद्धति माना जाता है, हालांकि एलौपेथी की अपेक्षा कहीं घटिया किस्म की।
 
इसी कारण, इस बीच जर्मनी और ब्रिटेन को छोड़कर अन्य लगभग सभी देशों में उसे झूठ, प्लैसेबो या अवैज्ञानिक बताकर उस पर रोक-टोक लगाई जा रही है। सरकारें जनता को हतोत्साहित करती हैं और स्वास्थ्य बीमा कंपनियां होम्योपैथी के डॉक्‍टरों और दवाओं के बिल अदा करने से मना कर देती हैं। फ्रांस में वहां की सरकार ने 2019 में आदेश दिया कि होम्योपैथी की दवाओं का ख़र्च लोगों को स्वयं उठाना होगा। 2021 में सुनने में आया कि फ्रांस में होम्योपैथी पर प्रतिबंध लग सकता है। रूस में उस पर प्रतिबंध लग चुका है। लगभग सभी देशों में एलोपैथी के डॉक्टर तथा दवा और स्वास्थ्य बीमा कंपनियां होम्योपैथी को बदनाम करने में व्यस्त हैं, ताकि औषधि बाज़ार पर केवल उनका राज रहे। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

विश्वास नहीं होता होम्योपैथी वास्तव में एक विदेशी चिकित्सा पद्धति है