Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

व्यंग्य रचना : दो बरस का विकास

हमें फॉलो करें व्यंग्य रचना : दो बरस का विकास
webdunia

मनोज लिमये

मै बहुत आत्मविश्वास से यह कहने की पोजीशन में नहीं था कि हमारा देश विकास कर रहा है लेकिन जबसे मीडिया में विज्ञापनों की आंधी आई है कि वाकई में पिछले दो सालों में भारत में विकास हुआ है और पिछले 02 बरसों की उपलब्धियां जनता-जनार्दन को बताई जा रही हैं तब से मुझे लग रहा है कि शायद मैं ही अल्पज्ञानी हूं।

सरकार बेचारी देश का निर्माण भी करे और ऊपर से इस नासमझ जनता को करोड़ों रुपये खर्च कर यह भी बताए कि देख भइये हमने इतना निर्माण कर दिया और तुझे ईल्म ही नहीं है। मेरा कोमल मन यह जानने को मचल रहा है कि विकास कार्य किधर-किधर हुआ है? अनायास मालवी जी देवदूत की तरह प्रगट हुए। मैंने कहा"और महाराज विकास आज दो बरस का हो गया"? वे बोले 'विकास की तो शादी भी हो गई श्रीमान और उसका लड़का भी अब 4 का हो गया है।
 
मैं समझ गया कि वे नहीं समझे हैं इसलिए मैंने आत्मविश्वास वाली पोजिशन लेते हुए कहा ' नादानों जैसी बातें मत करिये बाबू आप अख़बार इत्यादि नहीं बांचते क्या ? सिर्फ 10 से 5 वाली नौकरी में ही अपना जीवन व्यर्थ किए हुए हो, सरकार विगत 02 वर्षों से विकास भी कर रही है और तो और लोगों को पकड़-पकड़ कर विकास के बारे में बता भी रही है और एक आप हैं जिन्हें होश ही नहीं है? 
webdunia
उन्हें सम्भवतः बाबू संबोधन इसलिए बुरा नहीं लगा क्योंकि बाबू ऐसे-ऐसे प्रताप दिखा चुके हैं की वहां पहुंचना शायद उनके बस में नहीं हां 10 से 5 वाली बात में अलबत्ता सत्यता थी क्योंकि मैंने उन्हें अनेक दफा 12 बजे तक दफ्तर जाते देखा था पर इस बात से वे पूर्णतः असहमत थे कि उन्हें होश नहीं है। उन्होंने विरोध का काला झंडा हाथ में लिए बिना कहा "सारे के सारे समाचार पत्र तो यही कह रहे हैं की जनता को सब्ज़ बाग़ दिखा कर ठगा गया है, सिर्फ जुबानी पटाखे फोड़े गए हैं,काले धन के इंतज़ार में लोगों की आंखे पथरा रही हैं और आप कहना चाह रहे हैं कि हमारा देश विकास कर रहा है? 
 
मैंने कहा 'आप बहुत सतही बातें कर रहे हैं आप ही मुझे बताइए दो बरस पहले आप कितने रुपयों में किराना-सब्ज़ी लाते थे? वे पलक झपकते कैच लेने वाले अंदाज़ में बोले ' यही कोई 200-250 में काम चल जाता था और पान-गुटके के पैसे बच भी जाते थे। मैंने कहा 'अब सोचिए आप 1000 रुपए तक का किराना-सब्ज़ी लेने लगे हैं यह विकास नहीं तो और क्या है ' वे चीखते हुए बोले 'महाराज हिंदी भाषा का ज्ञान नहीं है क्या, इसे विकास नहीं महंगाई कहा जाता है' मैंने कहा नजरिये का फर्क है आपके लिए जो महंगाई है वो सरकार के लिए शायद विकास है, देश में सौ और पांच सौ के नोट का फर्क मिट रहा है और आप कह रहे हैं विकास नहीं है। वे बोले 'देखिए विकास तो चहूं और हो रहा है माननीय विदेशी पर्यटन कर रहे हैं, लोकतांत्रिक सरकारें गिराई जा रही हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं और क्या-क्या-क्या गिनाऊं आपको ?
 
मुझे यह महसूस हुआ कि वाकई मेरा सामान्य ज्ञान ही कम है। उनकी दिव्य बातें सुन कर मैं समझ रहा था और मेरा सीमित ज्ञान गर्मी के पारे की तरह बढ़ रहा था। मुझे इस बात का भी ईल्म हो चला है कि जनता-जनार्दन को सरकारी उपलब्धियां गिनवाने की ज़रुरत ही नहीं होना चाहिए यदि वाकई सरकार जनता-जनार्दन तक पंहुची हो तो।
webdunia
                          
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

सावधान! माइग्रेन के मरीजों के लिए बुरी खबर..