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प्यारी बेटियों, मजबूर नहीं, मजबूत बनो, बिटिया दिवस पर एक चिट्ठी

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डॉ. छाया मंगल मिश्र

प्यारी बेटियों,
ढेर सारे प्यार के साथ तुम्हें पुत्री दिवस की शुभकामनाएं, पर बधाई नहीं, क्योंकि अभी हासिल नहीं हो पाया है अपने जीवन का सार। हो रही दुर्घटनाएं, हादसे, अपराध भयावह हैं। समाज की कुंठा जनित घृणा का शिकार हम ही होती आईं हैं। पर भूलना मत हम शक्ति हैं, हम प्रकृति हैं। 
 
हमें जीवन के रंग बदलने होंगे, अंदाज बदलना होगा। ढंग बदलने होंगे। थोडा ढीठ, बेशर्म, बदतमीज, उग्र, नालायक, मुंहजोर बनना होगा और शरीर की नग्नता की हीनता को अपने संस्कारों से उखाड़ फेंकना होगा... जानती हूं कोई भी इन ‘अवगुणों’ को पालने की शिक्षा नहीं देगा। पर मजबूरी है। जैसा गाना वैसा बजाना वाली मजबूरी।  इसमें कपड़ों की शालीनता का मुद्दा नहीं बल्कि मोहाली, चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी जैसी कई घटना से उपजे प्रश्नों की चिंता है। हम शरीर की कुंठा को कब तक जियेंगे? खासकर तब, जब हम निर्दोष हों। क्यों वीडियो वायरल होने के डर से हम मर जाएं? पहले तो आप सभी डर को जीतिए। किससे डरते हो? यहां तो मादा जानवर भी सुरक्षित नहीं। आपको पग-पग राक्षसी प्रवृत्ति से लड़ना है। घर से लेकर बाहर तक, पैदा होने से लेकर मरने तक। कहां चैन से जी सकोगी?
 
अपने बैग में लिपस्टिक, परफ्यूम, कंघा, बिंदी जैसी चीजों के अलावा चाकू, मिर्च, माचिस, लाइटर, आलपिन,सुई/सुआ पत्थर ले कर निकली हो कभी? नाख़ून थोड़े बड़े फैशन के लिए नहीं सुरक्षा की दृष्टि से रखे? हाथ में मोटा धातु का कड़ा हथियार के रूप में पहनें, सोचा है कभी? नहीं न? क्यों नहीं शरीर मजबूत बनातीं अपने लिए, न कि ‘फिगर’ मेन्टेन के लिए। सबको सब मालूम है बस लापरवाही ले डूबती है और इसी का खामियाजा हमें भुगतना पड़ता है। ये सब प्राथमिक सुरक्षा के साधन हैं। थोडा ही सही पर कारगर है। बदल लो अपने आपको। शरीर से परे भी जीवन है। बिना कपड़ों के जानवरों को कभी मरते या शर्मिंदा होते देखा है? पर हमने कपड़ों में पल रहे जानवरों को जरुर देखा है, अपने आसपास भी।  
 
आपसे हुई अभद्रता और भद्दापन जरुर आपको शर्मिंदा करेगा पर सही बात पर अडिगता आपको न्याय, इज्जत सम्मान के साथ दिलवाएगी।  इसलिए अपने आत्मसम्मान रक्षा किसी भी कीमत पर, जीने के अधिकार और स्वाभिमान की बलि दिए बगैर करनी होगी। वरना वो दिन दूर नहीं जब तुम्हारी आत्मरक्षा के लिए हमें और सरकार को निःशुल्क ‘पिस्तौल’ योजना लागू करना पड़े, अन्य योजनाओं की तरह।  
 
थोड़े लिखे को ज्यादा समझना। सावधान रहो, सतर्क रहो, आत्मनिर्भर बनो, हुनरमंद बनो। जीवन के सारे आनंद और खुशियां तुम्हारे जीवन को रंग-बिरंगा बनाएं  ताकि तुम्हारे सपनों की दुनिया को यथार्थ में उतार कर तुम इन्द्रधनुष को अपना झूला बना कर सफलता का आसमान छू सको....
 
      खूब प्यार के साथ ...
             तुम्हारी प्यारी एक मां
 
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