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किरदार दमदार : 'पूनम' की 'अमावस' जिंदगी, दुनिया इन्हीं औरतों से चल रही है

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डॉ. छाया मंगल मिश्र

बात ज्यादा पुरानी नहीं है। मेरे पास एक सहायक थी घरेलू कामों में सहायता के लिए। बेहद ईमानदार, मेहनती, दुबली-पतली पर जीवट। नाम था पूनम। आई तो खाना बनाने के लिए थी पर कुछ समय बाद  उसने सभी काम करने के लिए मुझसे पूछा।मैंने भी उसे परखा हुआ था, सो उसी को सारे काम सौंप दिए।

बातों बातों में पता लगा कि वो सवर्ण, अच्छे खाते-पीते किसान घर की नाजों पली बेटी है।दसवीं की परीक्षा देने के पहले ही उसकी शादी करा दी गई क्योंकि कई भाई-बहन थे। यही छोटी थी, यही बची थी व पिता का देहांत हो गया था।भाई-भाभी के बच्चे मतलब पूनम के भतीजा-भतीजी भी उसी की  उम्र के थे।बराबरी के बुआ-चाचा, भतीजा-भतीजी सब एक उम्र। यहां तक कि बड़ी बहनों के बच्चों की उम्र भी पूनम जितनी ही थी।इस से उसके घर की स्थिति समझ सकते हैं।
 
पिता की मृत्यु के बाद कोई रिश्ते की मामी के षडयंत्र से एक लम्पट से आदमी को बढ़िया बता कर शादी कर दी। चूंकि ये दुबली-पतली मरियल सी दिखने में थी, रहन-सहन का शऊर न था, ठेठ गांव की थी सो सुमड़ी/गेली/पगली सी करार दी जाने लगी। ससुराल में मजदूरनी की हैसियत होने लगी।बड़ी जिठानी जो अपने देवर के लिए भी उपलब्ध थी, के क्रूर व्यवहार का शिकार हुई। हां यहां यह जानना जरुरी है की यह जेठानी पूनम के रिश्ते की बहन भी लगती थी।जिसने पूनम की शादी करवाने में खूब पैरवी की थी।
 
गजब की जीवटता थी उसमें और जीने की ललक। अंग्रेजी भी बोलती। मोबाईल धड़ल्ले से ऑपरेट कर लेती। एक बेटी व बेटे की मां थी।बेटी बड़ी थी।गांव में चूंकि पति कमाता कम व सट्टे में गंवाता ज्यादा तो घर वालों के बीच परिवार की कद्र तो होनी नहीं थी।बेटे को ही बाकियों की तरह अच्छे स्कूल में पढ़ाएंगे बेटी को नहीं, चाहो तो सरकारी गांव के स्कूल में कभी-कभी भेज दिया करना ऐसा कहा गया।
 
पूनम ने विरोध किया. उसे बेटी को भी पढ़ाना था। उसे वो अपने सी जिंदगी नहीं देना चाहती थी। पीहर से सहारे की उम्मीद इतनी नहीं की जा सकती थी। उसने हिम्मत जुटाई और निठल्ले पति को ले इंदौर आ गई। पति का वही हाल रहा। सट्टा और ऐय्याशी। पर अब पूनम जिंदगी की परिभाषा समझने लगी थी।अब उसे काम करना होगा।नए आए होने के कारण काम मिलने में मुश्किल थी।
 
उसने और उसकी बेटी ने मिल कर घर के बाहर हाथ से लिखा एक बड़ा सा कागज चिपका दिया।खाना बनने के लिए उपलब्ध।मेरी परिचित भाभी जी ने उसे बुलाया।उन्होंने मुझे मिलवाया।ऐसे ही उसके व्यवहार व मेहनती होने के कारण सबकी पसंदीदा हो गई।वो सबसे पहले अपना आधारकार्ड व कागजात दिखा देती थी कि चाहें तो तसल्ली कर लें।इससे समझ लें की वो किस्मत की मारी कितनी समझदार रही होगी।
 
खैर, काम शुरू किया, खूब बिगाड़ा भी किया, सबको गुस्सा और चिढ़ भी आ जाती।कई बार भगा दें ऐसा मन भी करता। पर फिर वह माफ़ी मांग, झुक कर गलती मान लेने, और सब भूल कर फिर से सब कुछ नया सीखने की कोशिश में शिद्दत से लग जाती।बच्चों के एडमिशन किसी इंग्लिश स्कूल में करा चुकी थी।पति के दुर्गुणों में कोई कमी नहीं आई थी। 
 
अब पूनम के पैसे भी उसके होने लगे थे। प्रेम की प्यासी औरत को बरगला कर पैसे खिंच लेता। ये बहक कर बेवकूफ बन जाती।फिर वही राग शुरू हो जाता। समय निकलता रहा।सभी से कुछ न कुछ अच्छा सीखती और सिखने की हमेशा ललक बनी रहती।संगत बदली, विचार बदले, रहन-सहन बदला, सोच बदली. बदन से भर गई थी। रंग निखर आया। पार्लर भी जाने लगी।ड्रामेटिक चेंज।अब बाल खोल फोटो डालने लगी।लिपस्टिक लगाने लगी, मैचिंग से रहने लगी। सेल्फी मास्टर हो गई। बच्चों के साथ अपनी खोई खुशियां ढूंढने लगी। मस्त हो गई। हम सबका साथ उसे और उसका साथ हम सभी को भाने लगा।
 
कभी डांट खा-खा कर, तो कभी प्यार से वो सब कुछ सीख गई। घर के झगड़े बढ़ने लगे।वो सुंदर दिखने लगी थी।ससुराल से जेठानी/ननदों सहित सबको वो नागवार गुजरने लगी थी। उसकी खुशियां कांटा बन कर खटकने लगतीं। वे उसके पति को फोन पर पट्टी पढ़ातीं और घर में रोज झगड़े करवातीं।उसकी बढती जागरूकता से पहले ही वो परेशान था। उस पर उसका बदलाव असहनीय हो गया।
 
नाम पूनम हो जाने से जीवन की कहानी मधुर चांदनी से नहीं भर जाती। ऐसा उसके साथ भी हुआ। बार-बार मार खाने वाली पूनम एक दिन गुस्से से पुलिस थाने चली गई रिपोर्ट लिखवाने।फिर तो कोहराम मच गया घर, ससुराल, पीहर सब जगह।पति ने उसे छोड़ डालने की धमकी दी। हम लोगों ने भी उसके पति को खूब डराया धमकाया। 
 
थोड़े दिन ठीक-ठाक रहा फिर वही सट्टा-जुआं खेलना और बदचलनी शुरू हो गई। पूनम दिन-रात मेहनत करती। बच्चों का ध्यान रखती। वे समझदार थे।पढाई में भी अच्छे थे।कई प्रतियोगिताएं में अव्वल भी आते। इन सबके बीच वो कभी भी उम्मीद नहीं खोती थी।उसका दिल जुगनू सा था। जीवन के अंधियारे में रोशनी फेंकता हुआ। समय गुजरता गया।
 
हारी-बीमारी, खर्चों से जूझती नक्कारे पति को झेलती पूनम सुख-दुःखके बीच अपनी जिन्दगी का सामना खुशी खुशी दिलेरी से करती रही।वो बड़ी प्रेमिल स्वभाव की थी यही उसका सबसे बड़ा हुनर था और ईमानदारी व स्वाभिमान उसके गुण थे जो सहायकों में बिरले ही पाए जाते हैं। उसकी बिना किसी उम्मीद के सबकी सेवा भावना हमारा दिल जीत लेती थी।
 
शौकीन तो वो थी ही। सिलाई सीखना व आगे की पढ़ाई करना उसका सपना था। पैसे भी इकठ्ठे कर रही थी। हम सब उसको खूब साथ दे रहे थे। सब कुछ बढ़िया ही था।हम सभी को बढ़िया सहायक मिली हुई थी, उसको बहनों के रूप में हम सभी। छोटी बहन सा स्नेह आखिर उसने सबसे पा ही लिया था। यहां तक कि वार-त्यौहार व अन्य उत्सवों, कार्यक्रमों का व्यवहार भी निभाती।घर की सदस्य सी हो गई। तीन साल कैसे गुजर गए पता ही नहीं चला।हमारे साथ-साथ हमारे पालतू पशुओं को भी उसके प्रेम ने बांध लिया था।
 
एक दिन सारा सामान ले कर चली गई। बिना कुछ बताये।रास्ते से फोन किया कि ‘पति ने पांच लाख रूपये का सट्टा खेल डाला है।घर का सामान बेच दिया है।लोग घर पर आ कर पैसे वसूलने की धमकी दे रहे। और यह मुझसे आप लोगों से पैसे मांगने को दबाव बना रहा है।इतने पैसे मैं कहां से लाऊं? कौन देगा? और आप सब भी क्यों दो? सब वहां जीना हराम कर देते। हम सब गांव जा रहे।थोड़े दिन बाद सोचूंगी क्या करना है.’ 
 
हम सब बड़े दुखी और शर्मिंदा हुए।सारे भाषण, ज्ञान, जागरूकता हवा हुए. जब भी ‘आदमी छोड़ देगा’ का ब्रह्मास्त्र छूटता है तो औरत के हौंसले पस्त हो जाते हैं. हम भी लाचार। क्योंकि बच्चों सहित जिम्मेदारी उठाना आसान काम नहीं होता।‘पति बिना औरत की गति नहीं’इस बात को जो घुट्टी में पिला दी जाती है से छुटकारा पाना असंभव है। 
 
‘भला है बुरा है जैसा भी है, मेरा पति मेरा देवता है’के साथ जीना सीखना उनकी मजबूरी हो जाती है। इससे तो एक जानवर पाल लेना बेहतर है। पर समाज तो समाज है। उससे कैसे बचोगे? उसकी विकृत सोच और पति विहीन औरत से ‘बिन आदमी की जोरू, सबकी भाभी’ वाली मानसिकता से कब तक लड़ोगे? यही विडंबना है। कैसा भी है बच्चों से उनका बाप नहीं छिनना है। चाहे वो नाम का मर्द हो, बाप का फर्ज निभाने के नाकाबिल। परजीवी बन औरत की कमाई उड़ाने वाला जानवर। उसकी पगार भी हम लोग नहीं दे पाए थे। कैसे क्या कर रही होगी? क्या करेगी? यही सोच सोच कर दिल बैठा जा रहा था। एक परिचित के हाथ चिट्ठी भेज उसने पैसे मंगवाए।वो गांव पहुंच चुकी थी।
 
आज उसका फोन आया है। किसी कस्बे के डॉक्टर के परिवार में काम कर रही है। घर सम्हालना, खाना बनाना। कामचोर पति को भी वहीं चौकीदारी करनी पड़ रही है पैसा लेकर भगा है। जो छुपना पड़ रहा है। बच्चों का फिर से दाखिला करा दिया है। हमसे दूर होने का गम तो था पर काम मिल जाने की ख़ुशी भी थी। बार बार शुक्रिया अदा कर रही थी कि उसने जो यहां सीखे अब वो सारे काम अच्छे से कर लेती है।
 
डॉक्टर परिवार उससे, उसके काम से खुश हैं। पैसे भी अच्छे मिल रहे हैं। उससे ज्यादा मैं खुश थी, मन ही मन उसको सेल्युट कर रही थी, उसकी इच्छाशक्ति को सलाम कर रही थी, कभी न टूटने वाली हिम्मत को, बार-बार गिर कर उठने वाली शक्ति को नमस्कार कर रही थी। चमत्कृत थी उसके नाम पूनम से। जिंदगी के पसरे अमावस के अंधेरे को काटने के लिए उसके पास था हाथ में उम्मीदों के दिए की रोशनी और यदि वो भी बिदा हो जाए तो दिल में जुगनुओं सा आशा व विश्वास का उजाला।
 
दुनिया इन्हीं औरतों से चल रही है। यही हैं जो धरती मां की चाल से चाल मिला कर सृष्टि का चक्र पूरा कर रहीं हैं। इन्ही के दम से दुनिया कायम है। देखिये न आपके आस-पास भी ऐसी ही कई पूनम अपनी कहानियों के संग जी रहीं होंगी। 
 
उनकी थोड़ी सी मदद जरुर कीजिए ताकि उनकी उम्मीदों के दीपकों का हम फानूस बन सकें और उनके दिलों में जगमगाते जुगनुओं की रोशनी की प्राणवायु ताकि शक्ति मिले इन सभी पूनम को अमावस सी जिंदगी के अंधियारों को काटने की, दिल को बड़ा सुकून मिलेगा। 

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