अच्छे लोगों के लिए पूरी दुनिया ही अपना परिवार हुआ करती है, उन्हें किसी से कोई बैर नहीं होता। वे जहां जाते हैं, वहां के लोगों को अपना बना लिया करते हैं। लेकिन बुरे लोग अपने परिवार को भी तहस-नहस कर डालते हैं। भारत के प्राचीन ग्रंथ महा उपनिषद में कहा गया है-
अयं बन्धुरयं नेतिगणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।
यानी यह अपना भाई है और यह अपना भाई नहीं है, इस तरह की बात तंगदिल लोग करते हैं, बड़े दिल वाले लोगों के लिए तो पूरी दुनिया ही उनका अपना परिवार है। दरअसल, महा उपनिषद का यह श्लोक आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस वक़्त रहा होगा, जब इसे लिखा गया होगा।
प्राचीनकाल से ही भारत की विचारधारा वसुधैव कुटुम्बकम् रही है और यही विचारधारा कांग्रेस की भी है। कांग्रेस ने हमेशा सर्वधर्म समभाव, सर्वधर्म सद्भाव में यक़ीन किया है। इसीलिए कांग्रेस अपनी स्थापना काल से ही जन-जन की पार्टी रही है। कांग्रेस के शासनकाल में सभी मज़हबों के लोग मिल-जुल रहते आए हैं, लेकिन पिछले कुछ बरसों से देश की हवा में सांप्रदायिकता और जातिवाद का ज़हर शामिल हो गया है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बहरीन में भारतीयों को संबोधित करते हुए यह मुद्दा उठाया। उन्होंने केंद्र की भारतीय जनता पार्टी की सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार लोगों को जाति और धर्म के आधार पर बांट रही है। नौकरी पैदा करने में भारत पिछले 8 सालों में सबसे निचले स्तर पर आ गया है। नए निवेश के मामले में भारत पिछले 13 सालों में निचले स्तर पर पहुंच गया है।
उन्होंने कहा कि नोटबंदी के फ़ैसले की वजह से दुनियाभर के भारतीयों की कमाई पर बुरा असर पड़ा है। भारत की आर्थिक विकास की रफ़्तार थम गई है। सरकार बेरोज़गार युवाओं के ग़ुस्से को समाज में नफ़रत फैलाने में इस्तेमाल कर रही है। मैं ऐसे भारत की कल्पना भी नहीं कर सकता, जहां देश का हर नागरिक ख़ुद को देश का हिस्सा न समझे।
उन्होंने कहा कि देश में आज दलितों को पीटा जा रहा है, पत्रकारों को धमकाया जा रहा है और जजों की रहस्यमयी हालात में मौत हो रही है। मैं यहां आपको यह बताने के लिए आया हूं कि आप अपने देश के लिए कितने ख़ास हैं, कितने अहम हैं। आपके घर में गंभीर समस्या है और उसके समाधान की प्रक्रिया में आपको शामिल होना है। आज भारत को आपकी प्रतिभा, आपके कौशल और देशभक्ति की ज़रूरत है। हमें हिंसा और नफ़रत पर चल रही बातचीत को प्रगति, रोज़गार और आपसी भाईचारे की तरफ़ लाना है। हम लोग यह काम आपके कौशल के बिना नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा कि भारत के निर्माण में अनिवासी भारतीय समुदाय का अहम किरदार रहा है। देश के तीन महान नेता महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और भीमराव आंबेडकर कभी न कभी अनिवासी भारतीय रहे हैं। दक्षिण अफ़्रीका से वापस आने के बाद महात्मा गांधी ने जिस दर्शन को स्थापित किया, वह भारतीय दर्शन था। गांधी के दर्शन में जाति और धर्म के आधार पर विभेद नहीं किया गया। भारत ने लंबा सफ़र इसी दर्शन की बुनियाद पर किया है, लेकिन अब ख़तरे मंडरा रहे हैं। मैं कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष हूं और इस पार्टी का जन्म ही लोगों को साथ लाने के लिए हुआ था।
ग़ौरतलब है कि राहुल गांधी की यह पहली विदेश यात्रा है। वे ग्लोबल ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ पीपुल ऑफ़ इंडिया ओरिजिन द्वारा बहरीन में आयोजित सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे। उन्होंने बहरीन के क्राउन प्रिंस शेख़ सलमान बिन हमाद अल ख़लीफ़ा से मुलाक़ात की और पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखी गई किताब ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ उन्हें भेंट की।
बहरीन में दिए गए राहुल गांधी के भाषण को लेकर देश में सियासत गरमा गई और आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया। भारतीय जनता पार्टी ने कड़ी प्रतिक्रिया ज़ाहिर करते हुए राहुल गांधी के बयान को 'शर्मनाक' तक कह डाला। इसके जवाब में उत्तरप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर ने कहा कि सत्तापक्ष को आलोचना और चिंता में फ़र्क़ समझना चाहिए। राहुल गांधी ने चिंता ज़ाहिर की है। अपने लोगों के बीच में चिंता की जाती है ताकि उसका हल निकाला जा सके।
बहरीन में राहुल के कार्यक्रम में देश के सभी प्रदेशों के लोग थे। पंजाब, केरल, महाराष्ट्र, गुजरात समेत अन्य तमाम प्रदेशों के लोगों के बीच में ये कहना कि 'हम सबको एक मसले के हल के लिए एकजुट होना चाहिए', यह देश की आलोचना नहीं है। अगर सत्ता पक्ष को लगता है कि आलोचना है, तो फिर लगता है कि कहीं न कहीं दाढ़ी में तिनका है।
सत्ता पक्ष के नेता, राहुल गांधी की कितनी भी बुराई करें, लेकिन इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि उन्होंने बहरीन में जो भी कहा है, बिलकुल सच कहा है। पिछले कुछ सालों में कई ऐसे वाक़ियात हुए हैं जिन्होंने सामाजिक समरस्ता में ज़हर घोलने की कोशिश की है, सांप्रदायिक सद्भाव को चोट पहुंचाने की कोशिश की है। मज़हब के नाम पर लोगों को बांटने की कोशिश की है, जात-पांत के नाम पर एक-दूसरे को लड़ाने की कोशिश की है।
देश की गरीब जनता पर नित-नए टैक्सों का बोझ डाला जा रहा है। आए-दिन खाद्यान्न और रोज़मर्रा में काम आने वाली चीज़ों के दाम बढ़ाए जा रहे हैं। हालत यह है कि जनता की जमा-पूंजी पर भी आंखें गड़ा ली गई हैं। बैंक नित-नए फ़रमान जारी कर ग्राहकों के खाते से पैसा काट रहे हैं। मरीज़ों को भी नहीं बख़्शा जा रहा है। दवाओं, यहां तक कि जीवनरक्षक दवाओं के दाम भी बहुत ज़्यादा बढ़ा दिए गए हैं।
कभी नोटबंदी तो कभी जीएसटी लागू कर लोगों के काम-धंधे बंद कर दिए गए। समाज में हाशिए पर रहने वाले तबक़ों की आवाज़ को भी कुचलने की कोशिश की जा रही है। आदिवासियों को उजाड़ा जा रहा है। जल, जंगल और ज़मीन के लिए संघर्ष करने वाले आदिवासियों को 'नक्सली' कहकर प्रताड़ित करने का सिलसिला जारी है। दलितों पर अत्याचार बढ़ गए हैं। ज़ुल्म के ख़िलाफ़ बोलने पर दलितों को 'देशद्रोही' कहकर सरेआम पीटा जाता है।
हाल ही में महाराष्ट्र में पुणे ज़िले के भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा में दलितों पर हमले किए गए। गाय के नाम पर मुसलमान तो निशाने पर हैं ही, अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाने पर उन्हें दहशतगर्द क़रार देकर अंदर कर दिया जाता है।
अलबत्ता देश की एकता और अखंडता को बनाए रखना, देश में चैन और अमन क़ायम रखना सरकार की सबसे पहली ज़िम्मेदारी है। अगर सरकार इसमें नाकाम साबित हो रही है, तो ये विपक्ष की ज़िम्मेदारी है कि वह सरकार को आईना दिखाए और देश में चैन और अमन बनाए रखने के लिए काम करे। अगर राहुल गांधी ये काम कर रहे हैं, तो इसके लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए, उनका साथ दिया जाना चाहिए। बहरहाल, सत्तापक्ष को आत्ममंथन की ज़रूरत है, आत्मविश्लेषण की ज़रूरत है।