आखिर क्या है दिल्ली दंगों पर लिखी गई किताब में कि ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ की बात करने वाले खौफ में आ गए
विरोध के बाद ब्लूम्सबेरी इंडिया प्रकाशन ने किताब छापने से किया मना
अब गरुड़ प्रकाशन करेगा डेल्ही रॉयट्स 2020, द अनटोल्ड स्टोरी का प्रकाशन
देश में हर मुद्दे पर अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देने वाले, सरकारी अवार्ड वापस करने वाले और बात-बात पर दीवारों पर ‘बोल की लब आजाद हैं तेरे...' लिख देने वालों को दिल्ली दंगों की सच्चाई पर लिखी कई किताब से इतना डर लगा कि उसका प्रकाशन ही रुकवा दिया।
सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि जिन लोगों ने इस किताब का विरोध किया है वे कांग्रेसी और वामपंथी धारा के पत्रकार, विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने किताब पढ़ने से पहले ही उसे खारिज कर दिया।
किताब के विमोचन के एक कार्यक्रम का पोस्टर सोशल मीडिया पर सर्कुलेट हुआ इसके बाद तमाम लेखकों, पत्रकारों और एक्टिवस्ट ने इस किताब और इसे प्रकाशित करने वाले प्रकाशन ब्लूम्सबेरी का विरोध किया। दावा किया गया कि किताब नफरत फैलाती है और एक कम्युनिटी को टारगेट करती है।
दरअसल, मोनिका अरोड़ा, प्रेरणा मल्होत्रा और सोनाली चितलकर ने मिलकर दिल्ली दंगों पर ‘दिल्ली राइट्स 2020, द अनटोल्ड स्टोरी’ लिखी है। यह किताब पूरी तरह से तथ्यों पर आधारित है, इसमें रिसर्च और इंटरव्यू शामिल किए गए हैं, लेकिन किताब के तीनों लेखकों के नाम सुनकर ही सोशल मीडिया पर इन बुध्दिजिवियों ने हंगामा कर दिया और इसके बाद इसे प्रकाशित करने वाले ब्लूम्सबरी इंडिया ने अपने हाथ खड़े कर दिए।
ब्लूम्सबरी इंडिया ने एक बयान जारी कर कहा कि वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्के हिमायती हैं, लेकिन समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को लेकर भी उतने ही सचेत हैं। इस साल सितंबर में यह किताब प्रकाशित होने वाली थी।
ब्लूम्सबेरी के किताब के प्रकाशन के मना करने वाले बयान के बाद गरुड प्रकाशन ने किताब को प्रकाशित करने का फैसला किया है।
गरुड़ प्रकाशन ने कहा कि किताब अगले 15 दिनों में बिक्री के लिए उपलब्ध होने की उम्मीद है। उनकी तरफ से कहा गया कि भारतीय इतिहास, प्राचीन और समसामयिक के प्रामाणिक विमर्श के लिए प्रतिबद्ध है। यह देखकर दुख होता है कि अन्य प्रकाशक किताब की विषय-वस्तु के बजाय अन्य घटनाक्रमों से प्रभावित हैं। हम किताब के प्रमुख लेखकों का दिल्ली दंगों की असली तस्वीर सामने लाने के लिए समर्थन करते हैं।
किताब के ऑनलाइन विमोचन में दिल्ली के भाजपा नेता कपिल मिश्रा और फिल्ममेकर विवेक रंजन अग्निहोत्री शामिल होने वाले थे। इस किताब के लिए भूमिका पूर्व आईएएस अधिकारी पीसी डोगरा ने लिखी है।
भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने दिल्ली दंगों की किताब प्रकाशित न हो पर नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने एक वीडियो ट्वीट कर कहा,
एक किताब से डर गए अभिव्यक्ति की आज़ादी के फर्जी ठेकेदार , ये किताब छ्प ना जाएं, ये किताब कोई पढ़ ना लें, तुम्हारा ये डर इस किताब की जीत हैं, तुम्हारा ये डर हमारी सच्चाई की जीत हैं। उन्होंने कहा कि किताब न छप जाए, इसलिए प्रकाशकों के खिलाफ अभियान चलाया गया।
भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने एक ट्वीट कर के कहा,
THEY tried to BURY “THE UNTOLD STORY” before it BLOOMED!!
लेखक अमीश त्रिपाठी ने लिखा,
अगर आप एक लेखक हैं जो मानते हैं कि सिर्फ आपकी विचारधारा की किताब पब्लिश होनी चाहिए, तो आप अतिवादी हैं। अगर आप प्लेटफॉर्म को कंट्रोल करते हैं, और किसी को प्लेटफॉर्म मुहैया नहीं कराते हैं तो ये किताब जलाने जितना ही बुरा है। एक किताब का जवाब दूसरी किताब है।
फिल्म डायरेक्टर अनुराग कश्यप ने कहा,
लोकतंत्र में बैन करना या कोई चीज वापस लेना समाधान नहीं है।
डायरेक्टर अनुभव सिन्हा ने कहा,
सभी किताबों को छपना चाहिए, ज़रूरी नहीं कि आप हर किताब से सहमत हों।
आखिर क्या है किताब में?
इस किताब में आठ अध्याय हैं। दिल्ली दंगे 2020 अनकही कहानियां अन्य किताबों की तरह परिचय से प्रारम्भ होता है। पहला अध्याय परिचय ही है। इसका दूसरा अध्याय है- शहरी माओवाद और जिहाद का सिद्धान्त, तीसरा अध्याय है-नागरिकता संशोधन कानून, चौथा अध्याय में विश्वविद्यालयों में हिंसा, पांचवा अध्याय है शाहीन बाग मॉडल, छठा अध्याय है उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगे, सातवां अध्याय है निष्कर्ष और इस किताब का आठवां और अंतिम अध्याय है ग्राउंड जीरो से पीड़ितों की कहानियां। जिसमें पीड़ित खुद अपनी कहानी सुना रहे हैं।
सबसे पहले दिल्ली पुलिस के डीसीपी अमित शर्मा की मेडिकल रिपोर्ट डाली गई है किताब में। जिन्हें आंदोलनकारी बुर्का वाली महिलाओं ने बातचीत के लिए बुलाया था। वे बातचीत के लिए गए तो उन पर वहां जानलेवा हमला कर दिया गया। दूसरे में अंकित शर्मा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट है। तीसरे में उत्तर पूर्वी दिल्ली में दिसम्बर से कितने दंगे हुए हैं, इसकी जानकारी दी गई है। फिर दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल रतन लाल की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट है। इसके बाद एफआईआर। जिससे दंगों की बन रही पृष्ठभूमि पर रोशनी पड़ेगी।
किताब की प्रस्तावना में लिखा गया है कि यह समझना मुश्किल नहीं था कि यह जो कुछ भी यहां हुआ है, वह सब दंगों का शाहीन बाग मॉडल है। धरने से दंगे तक का मॉडल। यही शाहीन बाग दंगा मॉडल बेंगलुरू में भी आजमाया गया। आगे भी देश के दूसरे हिस्सों में इसे अपनाया जा सकता है, इसलिए देश की सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क रहना चाहिए। किताब में वामपंथी दस्तावेजों के हवाले से भी दिल्ली के यमुना पार में हुए हिंसा को समझने का प्रयत्न किया गया है।
सीपीएम के 2004 के दस्तावेजों के हवाले से कहा गया है कि वामपंथी मानते हैं कि यह फोर्थ जनरेशन वॉरफेयर है। यह साइबर युद्ध के लिए तैयार रहने का समय है। 2004 के दस्तावेज में भारत में कम्युनिस्ट क्रांति लाने के तरीके पर विस्तार से चर्चा है। इसी दस्तावेज के हवाले से किताब में लिखा गया है कि उन मुद्दों पर बात करो जो अधिक से अधिक लोगों को अपील करे। जैसे विश्वविद्यालयों में फीस बढ़ोतरी का मुद्दा, महिला सशक्तिकरण का मुद्दा, गरीबी और बेरोजगारी का मुद्दा, दलित सशक्तिकरण का मुद्दा पकड़ो और प्रभावित लोगों के असंतोष को हवा देकर दंगा भड़काओं। समाज में वर्ग संघर्ष की स्थिति पैदा करो और बाद में इस पूरी लड़ाई को सरकार के खिलाफ खड़ा कर दो। समाज को देश के खिलाफ खड़ा कर दो।
नोट: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी अभिव्यक्ति है। वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।