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व्यापार के सहारे आर्थिक शक्ति बनता चीन

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डॉ. नीलम महेंद्र

आज पूरे देश में चीनी माल को प्रतिबंधित करने की मांग जोरशोर से उठ रही है। भारतीय जनमानस का एक वर्ग चीनी माल न खरीदने को लेकर समाज में जागरूकता फैलाने में लगा है, वहीं दूसरी ओर समाज के दूसरे वर्ग का कहना है कि यह कार्य भारत सरकार का है। जब सरकार चीन से नए आर्थिक और व्यापारिक अनुबंध कर रही है और स्वयं चीनी माल का आयात कर रही है तो भारत की जनता से यह अपेक्षा करना कि वह उस सस्ती विदेशी वस्तु को खरीदने के मोह को त्याग दे जिस पर 'इंपोर्टेट' का लेबल लगा हो व्यर्थ है। आखिर बाज़ार अर्थव्यवस्था पर चलता है भावनाओं पर नहीं।
 
उनके द्वारा दिए जा रहे तर्कों में कहा जा रहा है कि सरदार पटेल की मूर्ति भी चाइना में बन रही है। अधिकतर इलेक्ट्रानिक आइटम चाइनीस हैं और तो और जो मोबाइल इंडियन कम्पनियों द्वारा निर्मित हैं उनके पार्ट्स तो चाइनीस ही हैं।
 
सरदार पटेल की मूर्ति की सच्चाई यह है कि उसका निर्माण भारत में ही हो रहा है जिसका ठेका एक भारतीय कम्पनी 'एल एंड टी' को दिया गया है और केवल उसमें लगने वाली पीतल की प्लेटों को ही चीन से आयात किया जा रहा है जिसकी कीमत मूर्ति की सम्पूर्ण लागत का कुल 9% है। चूंकि इस काम को सरकार ने एक प्राइवेट कंपनी को ठेके पर दिया है तो यह उस कंपनी पर निर्भर करता है कि वह कच्चा माल कहां से ले। अब बात करते हैं भारतीय बाजार में सस्ते चीनी माल की, तो यह एक बहुत ही उलझा हुआ मुद्दा है जिसे समझने के लिए हमें कुछ और बातों को समझना होगा।
 
सर्वप्रथम तो हमें यह समझना होगा कि ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में चीनी माल से भारतीय बाजार ही नहीं विश्व के हर देश के बाजार भरे हैं, चाहे वो अमेरिका, अफ्रीका या फिर रूस ही क्यों नहीं हो। विश्व के हर देश के बाज़ारों में सस्ते चीनी माल ने न सिर्फ उस देश की अर्थव्यवस्था को हिला दिया है बल्कि वहां के स्थानीय उद्योगों को भी क्षति पहुंचाई है। वह दूसरे देशों से कच्चे माल का आयात करता है और अपने सस्ते इलेक्ट्रानिक उपकरण, खिलौनों और कपड़ों का निर्यात करता है। इस प्रकार चीन तेजी से एक आर्थिक शक्ति बनकर उभर रहा है और अमेरिका को आज अगर कोई देश चुनौती दे सकता है तो वह चीन है।
 
चाइना वह देश है जो अपने भविष्य के लक्ष्य को सामने रखकर आज अपनी चालें चलता है, जो न सिर्फ अपने लक्ष्य निर्धारित करता है, बल्कि उनको हासिल करने की दिशा में कदम भी उठाता है।  उसके लक्ष्‍य की राह में भारत एवं पाकिस्तान एक साधन भर हैं।
 
पाकिस्तान का उपयोग चीन द्वारा वहां इकानॉमिक कोरिडोर (सीपीईसी) बनाकर किया जा रहा है। उस पर वह बेवजह 46 बिलियन डॉलर खर्च नहीं कर रहा। वह इसके प्रयोग से न सिर्फ यूरोप और मध्य एशिया में अपनी ठोस आमद दर्ज कराएगा बल्कि भारत से युद्ध की स्थिति में सैन्य सामग्री और आयुध भी बहुत ही आसानी के साथ कम समय में अपने सैनिकों तक पहुंचाने में कामयाब होगा जबकि भारत के लिए ऐसी ही परिस्थिति में यह प्राकृतिक एवं सामरिक कारणों से मुश्किल होगा। इसी कोरिडोर के निर्माण के कारण चीन हर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ देता है फिर वह चाहे आतंकवाद या फिर आतंकी अजहर मसूद ही क्यों न हो।
 
दूसरी ओर भारत की सरकार अपने लक्ष्य पांच साल से आगे देख नहीं पाती क्योंकि जो पार्टी सत्ता में होती है वह देश के भविष्य से अधिक अपनी पार्टी के भविष्य को ध्यान में रखकर फैसले लेती है। और भारत की जनता की पसंद भी हर पांच साल में बदल जाती है। यह भी भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि भारत का आम आदमी, पार्टी या प्रत्याशी का चुनाव देशहित को ध्यान में रखकर करने के बजाय अपने छोटे-छोटे स्वार्थों या फिर अपनी जाति अथवा संप्रदाय को ध्यान में रखकर चुनता है। यह एक अलग विषय है कि हम लोगों के कोई वैश्विक लक्ष्य कभी नहीं रहे। आजादी के 70 सालों बाद आज भी हमारे यहां बिजली, पीने का पानी, कुपोषण और रोजगार ही चुनावी मुद्दे होते हैं।
 
खैर हम बात कर रहे थे चीनी माल की तो यह आश्चर्यजनक है कि विदेशी बाजारों में जो चीनी माल बेहद सस्ता मिलता है वह स्वयं चीन में महंगा है। यह आम लोगों के समझने का विषय है कि भारतीय बाजार में उपलब्ध चीनी माल सस्ता तो है लेकिन साथ ही घटिया भी है। बिना गारंटी का यह सामान न सिर्फ हमारे स्वास्थ्य को बल्कि हमारे उद्योगों को भी हानि पहुंचा रहा है।
 
हम भारतीय इस बात को नहीं समझ पा रहे कि 1962 में चीन ने भारतीय सीमा में अपनी सेनाओं के सहारे घुसपैठ की थी। वही घुसपैठ वह आज भी कर रहा है, बस, उसके सैनिक और उनके हथियार बदल गए हैं। आज उसके व्यापारियों ने सैनिकों की जगह ले ली है और चीनी माल हथियार बनकर हमारी अर्थव्यवस्था, हमारे मजदूर, हमारे उद्योग, हमारा स्वास्थ्य, सभी पर धीरे-धीरे आक्रमण कर रहा है।
 
टॉय एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष राजकुमार के अनुसार, यह भारतीय उद्योगों को बर्बाद करने का चीन का बहुत बड़ा षड्यंत्र है। जान-बूझकर वह सस्ता माल भारतीय बाजार में उतार रहा है और हमारा उपभोक्ता इस चाल को समझ तभी पाता है जब वह इसका प्रयोग कर लेता है। इस घटिया माल को न बदला जा सकता है और न ही वापस किया जा सकता है।
 
भारत सरकार चीन के साथ जो व्यापारिक समझौते कर रही है वह आज के इस ग्लोबलाइजेशन के दौर में उसकी राजनीतिक एवं कूटनीतिक विवशता हो सकती है, लेकिन वह इतना तो सुनिश्चित कर ही सकती है कि चीन से आने वाले माल पर क्वालिटी कंट्रोल हो। भारत सरकार इस प्रकार की नीति बनाए कि भारतीय बाजार में चीन के बिना गारंटी वाले घटिया माल को प्रवेश न मिले, क्योंकि चीन भी घटिया माल बिना गारंटी के सस्ता बेच रहा है, लेकिन जब उसी माल पर उसे गारंटी देनी पड़ेगी तो क्वालिटी बनानी पड़ेगी और जब क्वालिटी बनाएगा तो लागत निश्चित ही बढ़ेगी और वह उस माल को सस्ता नहीं बेच पाएगा।
 
इसके साथ-साथ सरकार को भारतीय उद्योगों के पुनरुत्थान के प्रयास करना चाहिए। 'मेक इन इंडिया' को सही मायने में चरितार्थ करने के उपाय खोजकर इस प्रकार के भारतीय उद्योग खड़े किए जाएं, जो चीन और चीनी माल दोनों को चुनौती देने में सक्षम हों। अंत में भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जहां जनता ही राजा होती है, वहां की जनशक्ति अपने एवं देश के हितों को ध्यान में रखते हुए कोई भी कदम उठाने को स्वतंत्र है ही। 

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