तो चीन ने भी सार्वजनिक तौर पर यह कबूल कर लिया है कि पिछले साल 15-16 जून को पूर्वी लद्दाख के गलवान में हुए संघर्ष में उसके जवानों की भी मौत हुई थी।
न केवल वहां के सरकारी समाचार पत्रों बल्कि चीनी सेना के पत्र में भी इसका जिक्र किया गया है। पीपुल्स डेली और ग्लोबल टाइम्स में इसकी चर्चा करते हुए इन जवानों को मरणोपरांत पदक देने की खबर छपी है। इनके अनुसार केंद्रीय सैन्य आयोग ने काराकोरम पर्वत पर तैनात रहे पांच चीनी सैनिकों के बलिदान को याद किया है और सम्मानित भी किया है।
मारे गए चीनी सैनिकों का नामा भी सार्वजनिक किया गया है। ये हैं- पीएलए शिनजियांग मिलिट्री कमांड के रेजीमेंटल कमांडर क्यूई फबाओ, चेन होंगुन, जियानगॉन्ग, जिओ सियुआन और वांग ज़ुओरन।
ग्लोबल टाइम्स ने पीएलए यानी सेना की डेली रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि गलवान खूनी संघर्ष में उसके चार सैनिक मारे गए थे, जबकि एक की मौत गलवान के खूनी झड़प में बचाव कार्रवाई के समय नदी में बहने से हुई थी।
उस संघर्ष में भारतीय सेना के एक कर्नल समेत 20 जवान शहीद हो गए। भारत ने इसे स्वीकार करने में कभी हिचक नहीं दिखाई। चीन ने देर से अपने सैनिकों के मारे जाने की बात कबूल की लेकिन अब भी वह सच बोलने के लिए तैयार नहीं है। केवल भारत नहीं, दूसरे देशों से आई रिपोर्टों में भी चीनी सैनिकों के ज्यादा संख्या में हताहत होने की बात थी।
भारत ने अपनी सेना से प्राप्त जानकारी के आधार पर माना था कि चीन के 40 से अधिक सैनिक गलवान संघर्ष में मारे गए थे। हाल ही में रूसी सामाचार एजेंसी तास ने भी बताया कि गलवान घाटी झड़प में कम से कम 45 चीनी सैनिक मारे गए थे। तब अमेरिका ने भी अपनी जानकारी के आधार पर यह कहा था कि भारतीय सैनिकों के साथ झड़प में चीन के भी 40 से ज्यादा जवान मारे गए। और भी कई रिपोर्ट में इसी के आसपास संख्या दी गई थी।
जो लोग भारत के लिए एकतरफ़ा जन क्षति की बात कर रहे थे वे अब इतना अवश्य मानेंगे कि हमारे निहत्थे जवानों ने अदम्य वीरता और शौर्य का परिचय दिया। अपनी जानें दी, पर चीनियों को भी छोड़ा नहीं।
हमारे देश में गलवान की खूनी झड़प के बाद से ही एक बड़ा तबका भारत की रक्षा नीति और चीन से निपटने के तौर तरीकों पर सवाल उठाता रहा है। इनमें चीन का विरोध करने की जगह भारत सरकार की आलोचना ज्यादा है। यह बात अलग है कि परोक्ष रूप से यह आलोचना सरकार की बजाय सेना की हो जाती है।
आखिर सेना ही तो सीमा पर मुकाबला करती है। चीन ने अपने सैनिकों की लड़ाई की चर्चा करते हुए जो कुछ कहा है उन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। इसमें चीन के केंद्रीय सैन्य आयोग ने अपने अनुसार गलवान झड़प की कहानी बताई है। आयोग ने सभी दिवंगतों को हीरो का दर्जा दिया है। इनमें शिनजियांग मिलिट्री कमांड के रेजिमेंटल कमांडर क्यूई फेबाओ को हीरो रेजिमेंटल कमांडर फॉर डिफेंडिंग द बॉर्डर, चेन होंगजुन को हीरो टु डिफेंड द बॉर्डर, तथा चेन जियानग्रॉन्ग, जियाओ सियुआन और वांग जुओरन को फर्स्ट क्लास मेरिट का दर्जा दिया गया है।
इनको पुरस्कृत करते हुए गलवान की कहानी में कहा गया कि नियंत्रण रेखा पर भारत ने ही बड़ी संख्या में जवानों को तैनात किया था। यह भी कहा गया कि भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों को पीछे हटाने की कोशिश कर रहे थे। इस दौरान चीनी सैनिकों ने स्टील ट्यूब, लाठियों और पत्थरों के हमलों के बीच देश की संप्रभुता की रक्षा की। तो चीनी सेना उस खूनी झड़प के लिए भारत को जिम्मेदार ठहरा रहा है।
उसने कहा कि अप्रैल 2020 के बाद से विदेशी सेना यानी भारतीय सेना ने पिछले समझौते का उल्लंघन किया उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सीमा का उल्लघंन कर सड़क और पुलों का निर्माण किया। जानबूझकर सीमा पर अपनी स्थिति को बदलते हुए संवाद के लिए भेजे गए चीनी सैनिकों पर हिंसक हमला किया। उसे अपनी सेना का महिमामंडन करना है। तो उसने कहा कि मई 2020 में भारतीय सेना के उकसावे का सामना करते हुए चेन जियानग्रॉन्ग और दूसरे चीनी सैनिकों ने संघर्ष किया और उन्हें लौटने के लिए मजबूर किया। इसमें चेन डायरी का एक अंश भी उद्धृत किया गया है। इसके अनुसार जब दुश्मनों ने हमारा सामना किया, तो हममें से कोई भी नहीं भागा। उनके पत्थर के हमलों के बीच, हमने उन्हें दूर तक धका दिया।
हालांकि यह सफेद झूठ है। जैसा हम जानते हैं गलवन घाटी में झड़प उस वक्त हुई थी जब नियंत्रण रेखा पर उपस्थिति की निर्धारित, मान्य और परंपरागत जगह से चीनी सेना के आगे आ जाने के बाद भारतीय सेना उनको पीछे हटने के लिए कहने गई थी। इसी दौरान चीनी सैनिकों ने कंटीले तार लगी हुई लोहे की रॉड, पत्थरों आदि से भारतीय सैनिकों पर हमला बोल दिया था।
यह आमने-सामने की अत्यंत ही भयानक लड़ाई थी। इसमें हमारे कर्नल संतोष बाबू सहित 20 जवान शहीद हो गए थे। वहां से जीवित वापस लौटे जवानों ने इसकी पूरी कहानी बयान की। कैसे चीनी सैनिकों ने धोखा देकर बर्बर और वहशी तरीके से उन पर हमला किया.... इन लोगों ने किस तरह से उसका जवाब दिया... कैसे उनको पीछे हटने को भागने को मजबूर किया और कैसे उनके सैनिक भी हताहत हुए इनकी सारी कहानी जवानों ने बताई।
इनका महत्व होते हुए भी भारतीय के नाते मुख्य बात दूसरी भी है। हम अपने ही देश पर आरोप लगा रहे थे कि चीन दुस्साहस करके अपने क्षेत्र से आगे बढ़ता रहा, समझौते का उल्लंघन करता रहा और हमने उसको रोकने और पीछे धकेलने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
चीनी सेना द्वारा अपने सैनिकों के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में जो विवरण दिया गया है वह ठीक दूसरी बात करता है। वह कहता है कि भारत ने ही ऐसा किया। यही महत्वपूर्ण बात है। चीन पहले यह मानने को ही तैयार नहीं था कि उसके सैनिक भी मारे गए हैं। इसके आधार पूरी तस्वीर ऐसी बनाई गई मानो चीन बेरोकटोक हमारी सीमा में घुस गया, हमारे सैनिकों पर हमला कर दिया, उनको मारा और उसे जवाब नहीं मिला।
अब जब समझौते के साथ चीन की सेना और लाव लश्कर मई 2020 की स्थिति में जा रही है तथा प्रक्रिया जारी रहने के बीच जो कुछ सच आ गया है उनसे साफ है कि भारत ने हर स्तर पर चीन को कई बार आगे बढ़ कर करारा जवाब दिया। इन जवाबों का ही परिणाम है कि योजनाबध्द धोखेबाजी की रणनीति की विफलता के बाद चीन पीछे हटने को मजबूर हुआ है।
चीन चाहे आर्थिक और सैन्य स्तर पर जितना शक्तिशाली हो जाए विश्व में उसकी साख और विश्वसनीयता भारत के समक्ष अत्यंत निचले पायदान पर है। भले चीन के विरुद्ध कोई देश खुलकर भारत के साथ खड़ा न हो विश्व के अधिकतर देशों ने भारत की बातों पर विश्वास किया। जब चीन आज पांच सैनिकों के मारे जाने की बात कर रहा है तब भी विश्व समुदाय का प्रश्न यही है कि आपने इतनी देर क्यों की? चीन के इस खुलासे को संपूर्ण सच मानने के लिए दुनिया तैयार नहीं है।
हम भारत के लोगों के लिए यह एक सबक है। यानी अपने देश, अपनी सेना की ताकत पर विश्वास करें... आत्महीनता से ग्रसित नहीं हो। चीन जैसे देशों से हमारा टकराव आज का नहीं है और ना यह आसानी से खत्म होने वाला है। उससे निपटने के लिए जिस बात की सबसे ज्यादा जरूरत है वह है अपने देश पर विश्वास और आपसी एकजुटता।
हम तात्कालिक घटनाओं के एकपक्षीय आकलन पर विश्वास कर अपने देश, अपनी सरकार अपनी सेना को कटघरे में खड़ा करने की होड़ मचाने से बचें। अगर थोड़ा धैर्य रखें तो परिणाम वैसा ही आएगा जैसा हम चाहते हैं। आज चीनी सैनिक ज्यादातर स्थानों से अपने पूर्व स्थान तक वापस जा चुके हैं, जहां हैं वहां से वापस जा रहे हैं और यह मान रहे हैं कि उनके सैनिक भी मारे गए। भले ही कम संख्या बताकर इसे उन्होंने कबूल कर लिया है। भारत की सही रणनीति की सफलता का इससे बेहतर प्रमाण और कुछ नहीं हो सकता है।
(इस आलेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी अभिव्यक्ति और राय है, बेवदुनिया डॉट कॉम से इससे कोई संबंध नहीं है)