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पीठ पीछे घोंप रहा छुरा चीन

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अनिल शर्मा

हालांकि ये कटु सत्य है कि पाकिस्तान के सुधरने के हालात असंभव हैं, लेकिन घातक सच्चाई ये है कि पाकिस्तान से ज्यादा खतरनाक चीन है जिसकी घुसपैठ आतंकी घुसपैठ से कहीं ज्यादा जहरीली है। पाकिस्तानी आतंकवाद जहां हथियारों से लैस होकर भारत में घुसपैठ करता है वहीं चीनी आतंकवाद चीनी संस्कृति, चीनी उत्पाद, चीनी प्रदूषण आदि इत्यादि द्वारा भारत में घुसपैठ कर रहा है। और यही सबसे घातक आतंकवाद है।
 
वर्तमान हालात में सूई से लेकर तमाम चीनी चीजों ने भारत के घर-घर में प्रवेश कर लिया है। चीनी इलेक्ट्रॉनिक आयटमों की जहां भरमार है, वहीं घर के चौके-चूल्हे तक चीनी तपेली, चीनी तवा, चीनी चूल्हा वगैरह...-वगैरह... तमाम चीजों ने घुसपैठ कर ली है। भारतीय बाजार में चीनी उत्पादों की घुसपैठ का सबसे बड़ा कारण है मूल्य।
 
चीन ने अपना बाजार बढ़ाने के लिए भारत में सस्ती कीमत पर अपने उत्पाद भेजना शुरू किया, साथ ही इन उत्पादों की गुणवत्ता और टिकाऊपन ने बाजार विस्तार में और सहायता दी। सामरिक और कूटनीतिक तौर पर चीन से निपटने में सक्षमता हो सकती है, लेकिन चीन द्वारा भारत में बनाए जा रहे बाजार को तभी रोका जा सकता है, जब भारतीय जनमानस इसके लिए अपना मानस तैयार करे। यह तभी हो सकता है, जब भारत का युवा वर्ग चीनी मोबाइल से लेकर तमाम चीजें, जो चीनी प्रोडक्ट की हैं, खरीदना बंद कर दे।
 
हालांकि चीन के सरकारी मीडिया ने अपने देश की सरकार को भारत में निवेश कम करने की सलाह दी है। चीन के अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' में लिखे एक लेख के जरिए वहां के मीडिया ने भारत को लेकर चीन को आगाह करते हुए कहा कि उसे भारत में अपने निवेश में कटौती करनी चाहिए। चीन के मीडिया के मुताबिक भारत में चीन द्वारा किए गए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में साल 2015 की तुलना में 2016 के दौरान 6 गुना बढ़ोतरी हुई है। चीन ने कहा है कि इस पर थोड़ा ब्रेक लगाने की जरूरत है।
 
'ग्लोबल टाइम्स' के मुताबिक भारत ने 'मेक इन इंडिया' प्रोग्राम के तहत देश में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए कई कदम उठाए हैं, इसके अलावा टैक्स ढांचे में भी बदलाव कर कई और सुधारवादी फैसले लेकर भारत विदेशी निवेशकों को रिझा रहा है। इससे भारत में विदेशी निवेश में इजाफा भी हुआ है। लेकिन ऐसे वक्त में जब नए तरह का संरक्षणवाद जन्म ले रहा है, तब कुछ फैसलों पर नजर रखने की भी जरूरत है।
 
मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग में घुसपैठ
 
चूंकि चीनी मोबाइल, रेडियो, ट्यूबलाइट, बल्ब, बैटरी वगैरह-वगैरह की लागत कम होती है यानी 100 से 500 रुपए तक में ऐसी चीजें मिल जाती हैं जिन्हें खरीदना एक मध्यम या निम्न वर्ग के लिए सपना होता है। गत दिनों दीपावली के दौरान चीनी सामानों का बहिष्कार किया गया, मगर ताज्जुब की बात यह है कि बहिष्कार के बावजूद देशभर में लगभग 250 करोड़ से अधिक के चीनी पटाखे फोड़े गए। अपने-अपने घरों में लाइटिंग के लिए चीन की इलेक्ट्रॉनिक झालरों को सजाया गया।
 
सांस्कृतिक प्रदूषण
 
चीनी उत्पादों का असर युवा और किशोर वर्ग पर ज्यादा पड़ा है। ये वर्ग गुपचुप तरीके से चीनी साइट्स से पोर्न फिल्में या सेक्सी उत्तेजना पैदा करने वाली साइट्स देख रहे हैं। अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने की बजाए चीन द्वारा उत्पादित गेम्स के बटन दबाने में लगा हुआ है कल का भविष्य, जो धीरे-धीरे अपनी सुबह की सैर को भूलता जा रहा है। अखाड़े की माटी को भूलता जा रहा है। पिज्जा, बर्गर फास्टफूड में अपना स्वास्थ्य गंवा रहा है।
 
कचरे का आतंक
 
भारत की अधिकांश नदियों का जल संग्रहण क्षेत्र तिब्बत है, जहां चीन लगातार परमाणु कचरा डाल रहा है जिससे न केवल भारतवासियों का जीवन संकट में पड़ सकता है, वहीं निकट भविष्य में एशिया के देशों को भी ग्लोबल वॉर्मिंग का सामना करना पड़ सकता है। पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी भारत को चीन से सतर्क रहना होगा, क्योंकि उसने ब्रम्हपुत्र नदी को शंघाई की ओर मोड़ना शुरू कर दिया है जिससे भारत को जैवविविधता की दृष्टि से काफी गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
 
प्रचार-प्रसार
 
देश के इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट दोनों प्रकार के मीडिया में चीनी उत्पादों व गैजेट्स आदि के विज्ञापन और आलेखों की भरमार रहती है। इनसे अखबार वालों को काफी फायदा होता है। चीन के उत्पादों के प्रचार-प्रसार में एक हद तक मीडिया की भी प्रमुख भूमिका कही जा सकती है।
 
चीन की लड़ाई आमने-सामने की न होकर छद्म प्रकार की कही जा सकती है। चीन से हो रही इस लड़ाई में चीन तभी परास्त हो सकता है, जब भारतीय जनमानस स्वदेशी उत्पादों की ओर रुख करेगा। 

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