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मजेदार ब्लॉग : चोटी की चिंता

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अमित शर्मा

पिछले कुछ दिनों से देश के कई शहरों से महिलाओं की चोटी काटने की खबरें आ रही है। खबर सुनते ही "नारीवादी पुरुष" होने के नाते मेरा खून खौल उठा और खोलते हुए खून के तापमान का मान रखते हुए मैंने महिलाओं के साथ होने वाले इस अत्याचार का आरोप पितृसत्तात्मक पुरुष प्रधान समाज पर मढ़ दिया जो कि एक नारीवादी होने की प्रथम और अनिवार्य शर्त है।
 
बाद में जब खबर आई की चोटी काटने की खबर अफवाह है, तो भी मेरा नारीवादी मन इसके खिलाफ अनशन पर बैठ गया और चोटी काटने की खबर को अफवाह बताने वाली पुलिस और प्रशासन को नारीविरोधी घोषित करने की मांग करने लगा। बड़ी मुश्किल से मैंने उसे समझाया की इस देश में जहां बलात्कार और दहेज के लिए महिलाओं को जिंदा जला देने जैसी सत्य घटनाएं भी सभ्य समाज का अंग मान ली गई हों, वहां केवल महिलाओं की चोटी काटने जैसे अनावश्यक मुद्दों पर अनावश्यक रूप से अपनी संवेदना खर्च करना आज के असंवेदनशील समाज में फिजूलखर्ची ही कही जाएगी। जैसे-तैसे मैंने मन को सांत्वना का जूस पिलाकर उसका अनशन तुड़वाया। नारीवादी मन को शांत करने से मैं आत्मविश्वास से भर गया और फिर जातिवादी दिमाग को उलाहना देते हुए सुनाया, "देख तेरी बात मानते हुए अगर "ब्राह्मण चोटी" रखी होती आज कट गई होती।"
 
चोटी काटने की घटना सत्य है या अफवाह, यह तो न्यूज चैनल के सूत्र ही सही सही बता पाएंगे क्योंकि चौबीस घंटे चौकन्ना रहना पुलिस और प्रशासन के बस का नहीं है, वे केवल कुशलता से बेबस हो सकते है। मुझे पूरा विश्वास है कि मीडिया भले ही इस घटना के पीछे का पूरा सच दिखा पाए या नहीं लेकिन इसकी आड़ में टीआरपी का मीटर बढाकर अच्छे से अच्छे और ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन तो दिखा ही देगा। मीडिया बहुत कम लोगों से स्नेह रखता है, ऐसे में विज्ञापनों के प्रति मीडिया का स्नेह देखना सुखद लगता है।
 
इन घटनाओं के पीछे कई लोग अफवाहों का बाजार भी गर्म कर जरूरी समाज सेवा कर रहे हैं क्योंकि जब तक अफवाहों का बाजार गर्म नहीं होगा तब तक घटनाओं में मनोरंजन और रोचकता की तपिश कैसे आएगी, जो आमजन को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए जरूरी है। पुलिस भी इन घटनाओं की तह में जाकर इसके पीछे जि‍म्मेदार लोगों को पकड़ने में कोई रूचि ना दिखाकर पुलिस में जनता का भरोसा बनाए रखे हुए हैं।
 
चाहे सत्य हो या असत्य, लेकिन इस घटना से एक बात तो साबित हो चुकी है कि हर सफल आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है और हर सफल औरत के पीछे बिना चोटी वाले बॉय-कट बालों का। कई लोग चोटी काटने का आरोप राजनीतिक दलो के कार्यकर्ताओं पर लगा रहे हैं लेकिन यही समय है जब हमें राजनीतिक सोच से ऊपर उठकर राजनैतिक कार्यकर्ताओं का बचाव करना चाहिए क्योंकि वो जेब काट सकते है लेकिन चोटी नहीं। 
 
चोटी कटना हमारे लिए किसी बड़ी चिंता का विषय नहीं हो सकता है क्योंकि जिस देश में 70 सालों से अपना पेट काटता गरीब अपनी चिंता से भी हुक्मरानों की चिंता नहीं जुटा पाया,  वही केवल चोटी कटने से चिंतित होना हमारी चिंता का अपमान है। सत्ताकेंद्रो की चिंता का पात्र बनना कोई बच्चों का खेल नहीं है इसके लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ता है। कभी कभी सत्ता की चिंता पात्र बन जाना भी चिंता का सबब बन जाता है क्योंकि उनकी परवाह में भी अपनी वाह छुपी होती है। सरकारो पर इतना बोझ डालना उचित नहीं है, उसे पहले गरीब की रोटी की चिंता करने दो, चोटी की चिंता वो स्वयं कर लेगा आखिर उसे भी तो स्वनिर्भर बनना है।

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