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बढ़ती बेरोजगारी का फायदा उठाती कंपनियां

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प्रवीन शर्मा (युवा टिप्पणीकार) 

सपने देखने का हक विश्व के प्रत्येक मनुष्य को है। परंतु उन दिव्य सपनों से खिलवाड़ का हक किसी को नहीं। आज संसार का हर व्यक्ति जीवन निर्वाह के लिए रोजगार की खोज करता है। लेकिन उस रोजगार को प्राप्त करने के लिए भी उसे कुछ दलालो को पैसे देने पड़ते हैं।


यह कहां तक उचित है, इस पर विचार-विमर्श करने की अत्यंत आवश्यकता है। अब मूर्खों के सींघ तो होते नहीं है जो उनको पंक्ति में लगाकर समझाया जा सके। बेरोजगारी, घर की जिम्मेदारी, पैसों की तंगी, गलत-संगत, जल्दी पैसा कमाने की चाह होने से सही मार्ग पर चलता हुआ व्यक्ति भी गलत राह पकड़ लेता है और फिर कई बार व्यक्ति की मजबूरियां भी उससे कुछ भी करवा सकती हैं।
 
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एन.एस.ओ) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में कोरोना की पहली लहर में बेरोजगारी दर में गिरावट आई थी, जो आना स्वाभाविक भी है। 2019 में बेरोजगारी दर 4.8 जबकि 2019 के अंत में यह गिरकर 4.2 पर पहुंच गई। स्वयं भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 2020 में महामारी की पहली लहर में 1.45 करोड़ लोगों की नौकरी गई वहीं दूसरी लहर में 52 लाख और तीसरी लहर में 18 लाख लोगों की अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। इतने लोगों का रोजगार जाने का श्रेय सरकार ने कोरोना महामारी को दिया। कुल संख्या जो सरकार ने बताई वह लगभग 2.5 करोड़ की है। 
 
यह विशाल आंकडा जब सरकार ने बताया तो हम स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि असल में बेरोजगारी का आंकड़ा कितना विशाल होगा। यह आंकड़ा सिर्फ कॉर्पोरेट जगत का है, हमारे देश में अनेक लोग अन्य क्षेत्रों में भी कार्य करते हैं उनका आंकडा इसमें सरकार ने शामिल ही नहीं किया, शायद इसलिए क्योंकि अगर बेरोजगारों की संख्या देश के समक्ष आती तो देश में कहीं अशांति का माहौल निर्मित होने की उम्मीद होती।

 
भारत में आजादी के पश्चात से ही बेरोजगारी समाज का अहम मुद्दा रहा है। अनेक सरकारों ने देश पर राज किया, रोजगार देने का वचन भी दिया लेकिन फिर भी आज इक्कीसवीं सदी में हमारा देश बेरोजगारी से ही जूझ रहा है। अगर किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता के आधार पर रोजगार प्राप्त भी हो जाता है तो उसे उसकी मेहनत के मुताबिक मेहनताना प्राप्त नहीं होता। भारत में श्रम कानून लागू है पर उस पर अमल कितना होता है यह विचारणीय है। 
 
श्रम कानून के मुताबिक कंपनी किसी भी व्यक्ति से 48 घंटे प्रति सप्ताह से ज्यादा कार्य नहीं करवा सकती है, यदि कोई कंपनी ऐसा करती है तो कंपनी को उस व्यक्ति के मानदेय में ओवर टाइम के हिसाब से दोगुनी राशि उस व्यक्ति को प्रदान करने का प्रावधान है। सप्ताह में व्यक्ति कितना कार्य करेगा यह श्रम कानून के अंतर्गत वर्णित है लेकिन आज बड़ी कंपनियों ने सरकार के नियमों को ताक पर रख दिया है और मनुष्यों से मशीनों की भांति कार्य कराया जा रहा है। जिसमें कर्मचारी के कार्यस्थल पर पहुंचने का समय तो निश्चित होता है परंतु उसके घर वापसी का समय का कोई ठिकाना नहीं होता। 
 
आज अधिकांश कंपनियां व्यक्ति की मजबूरी का फायदा उठाने को आतुर रहती हैं। कुछ कर्मचारी ऐसे भी हैं जिनको योग्यता अनुसार मानदेय नहीं मिलता वहीं कुछ को सिर्फ उनकी सुंदरता का अथाह पैसा प्राप्त होता है। इस पर सरकार को निगरानी की आवश्यकता है जिससे भारत में नौकरी करने के लिए एक उचित वातावरण प्राप्त हो सके। 

बेरोजगारी का आलम इतना अधिक है कि व्यक्ति मात्र पांच हजार की नौकरी उस जगह पर भी करने को तैयार है जहां किसी साधारण मनुष्य के लिए चंद पल टहरना भी दुश्वार हो। इतनी सब पीड़ा सहने के पश्चात व्यक्ति हिम्मत हार जाता है और पैसे कमाने की मजबूरी में गलत कदम उठा जाता है। 
 
आज के युग में मल्टी लेवल मार्केटिंग के नाम पर अनेक फर्जी कंपनियां अपने पैर फैला रहीं हैं। इनका कार्य नौजवान बेरोजगारों को बड़े-बड़े सपने दिखाकर उनके साथ धोखा देने मात्र का है। ऐसी कंपनी बेरोजगारों को बिना मेहनत करे लाखों रुपए कमाने का सपना दिखाना और समझाना कि कार्य आप कर रहे हैं तो उससे फायदा दूसरों को क्यों ? आप अपने मालिक आप स्वयं बने! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वरोजगार की बात अब कही है वहीं यह कंपनियां वर्षों पूर्व से करती आ रहीं हैं। 
 
अपने मालिक स्वयं होना सभी को अच्छा लगता है पर पिरामिड कंपनियां इन्हीं अच्छे-अच्छे शब्दों का इस्तेमाल कर बेरोजगारों को अपने जाल में फंसाती हैं। डायरेक्ट सेलिंग शब्द की आड़ में कंपनियां अपना कार्य करती हैं। एक व्यक्ति को फंसा दो बाकी अन्य लोगों को वह स्वयं ले आएगा। जब एक व्यक्ति ऐसी कंपनियों के जाल में फंस कर हजारों रुपए जमा कर देता है और फिर कुछ समय पश्चात अपने फंसे हुए पैसे निकालने के लिए वह अन्य बेरोजगारों को फंसाता है। जिसका सीधा-सीधा फायदा उच्च पदों पर बैठे हुए व्यक्तियों का होता है।

इसी प्रक्रिया को पिरामिड कहते हैं। ऐसी कंपनियां ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों अथवा छोटे शहरों के युवाओं को टारगेट करती हैं। वह अपना हेड ऑफिस तो बताती हैं परंतु दिखाती कभी नहीं हैं। इनके बुद्धिजीवी कहते हैं मैं यहां पांच वर्षों से कार्य कर रहा हूं, पर आश्चर्य की बात यह होती है कि कंपनी का रजिस्ट्रेशन मात्र दो साल पुराना ही होता है।

 
भारत सरकार ने 28 दिसंबर 2021 को उपभोक्ता संरक्षण डायरेक्ट सेलिंग नियम 2021 के तहत डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों के द्वारा की जा रही चैन मार्केटिंग पर पूर्णतः रोक लगा दी थी। इसमें बताया गया है कि डायरेक्ट सेलिंग करने पर वस्तु की सारी जिम्मेदारी कंपनी की होगी।

यह कंपनियां प्रोडक्ट बेचने के नाम पर पिरामिड योजना को बढ़ावा देती है, केंद्र सरकार की मानें तो ऐसी योजना में किसी व्यक्ति को नामांकित करना या इस तरह की व्यवस्था में भाग लेना या किसी भी तरह के प्रत्यक्ष बिक्री व्यवसाय करना या किसी भी तरह की मनी सर्कुलेशन योजना में भाग लेना पूर्णता प्रतिबंधित है। 
 
साथ ही इस नए नियम के मुताबिक पिरामिड कंपनियों को अपना एक प्रत्यक्ष कार्यालय बनाना भी अनिवार्य है। पर यह कहीं नहीं लिखा कि आप एक बार घोटाला कर दो या धोखा दे दो तो दूसरी जगह दूसरे नाम से कंपनी नहीं खोल सकते। यह भी कहीं नहीं लिखा कि आप अपने कर्मचारी को कंपनी के बाहर कंपनी का नाम और कार्य बताने से नहीं रोक सकते। भारत सरकार ही नहीं बल्कि भारतीय रिजर्व बैंक ने भी जनता को बहुस्तरीय विपणन गतिविधियों के प्रति आगाह किया है ताकि निवेशक बेईमान संस्थानों के शिकार ना हों। 
 
भारतीय रिजर्व बैंक ने सलाह दी है कि जनता को बहुस्तरीय श्रृंखला विपणन पिरामिड संरचना योजनाएं चलाने वाली संस्थाओं द्वारा दिए जाने वाले उच्च प्रति लाभ के बहकावे में नहीं आना चाहिए। रिजर्व बैंक ने दोहराया है कि इस तरह के प्रस्तावों के शिकार होने से वित्तीय नुकसान हो सकता है और इन्हें अपने हित में किसी भी तरह से ऐसे प्रस्तावों का जवाब देने से बचना चाहिए।
 
एम.एल.एम कंपनियों को सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की पूर्णतः जानकारी है। इसीलिए वह अपने कर्मचारियों से कहती हैं कि जो भी व्यक्ति उन से जुड़ता है वह बाहर किसी को कंपनी या कार्य की जानकारी नहीं देगा। साथ ही यह भी समझाती हैं कि जब भी आप दूसरे व्यक्ति को लेकर आएंगे तो उनके द्वारा जमा कराए जाने वाले 60 से 70 हजार रुपए में से आपको लगभग 15 से 18 हजार रुपए दिए जाएंगे।

अतः यह कंपनियां पहले दिन से ही व्यक्ति को लूटना प्रारंभ कर देती हैं। व्यक्ति से कुछ रुपए पहले ही दिन रजिस्ट्रेशन और ट्रेनिंग के नाम पर वसूल किए जाते हैं। वहां यह भी कहा जाता है कि आपको रहना-खाना कंपनी की ओर से प्रदान किया जाएगा। यह कंपनियां ट्रेनिंग पर अत्यधिक ध्यान देती हैं क्योंकि उसी में बड़े अच्छे ढंग से ब्रेन वॉशिंग का कार्य किया जाता है।

जिसमें व्यक्ति कब सपने में बिजनेस किंग बन जाएगा उसको स्वयं को पता नहीं चल पाता। ट्रेनिंग के बाद एक दिखावे का टेस्ट भी लिया जाता है, जिसमें हर व्यक्ति सफल होता है और तुरंत उससे रुपया जमा करवाने की बात कही जाती है। साथ ही यह भी बोल जाता है कि सारे रुपए तुरंत जमा कर दो वरना आपका अप्रुवल रद्द कर दिया जाएगा।
 
 
कंपनी में पहुंचने के बाद आप एक कड़े पहरे में रहते हैं। जिसमें आप कब क्या करेंगे, अपने परिवार में किस व्यक्ति से कितनी देर बात करेंगे, सब पर निगरानी रखी जाती है। यदि आप वॉशरूम भी जाते हैं तो आप की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक व्यक्ति दरवाजे पर ही पहरा देता रहता है।

आप के व्यक्तिगत जीवन के अहम फैसले कब कोई बाहरी व्यक्ति लेने लगा आपको जब तक ज्ञात होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। ऐसी कंपनियों में पैसे रिफंड की कोई पॉलिसी नहीं होती। आज इंटरनेट पर ऐसे अनेक प्रकरण हैं जो इन कंपनियों की सच्चाई बयां करते हैं।
 
 
यदि हमारे देश में बेरोजगारी कम हो तो ही शायद इस प्रकार की कंपनियां बेराजगार व्यक्ति का शोषण करना बंद करें अन्यथा तो इस प्रकार की घटनाओं में नियमित रुप से बढ़ोत्तरी ही हो रही है। बढ़ती बेरोजगारी को दूर करने का उपाय नहीं मिल पा रहा है।

भारत के युवा डिग्री तो प्राप्त कर रहे हैं परंतु रोजगार से वंचित हैं। इन्हीं बातों का फायदा उठाकर ऐसी बेईमान कंपनियां अपने झूठ से युवा वर्ग को रोजगार देने का वादा करके उन्हें अपने जाल में फंसा रहीं हैं जिनसे आज सतर्क रहने की आवश्यकता है। 
                                                                       
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)


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