श्याम यादव
देश में कांग्रेस की हालत ऐसी कभी हुई जैसी आज है। कांग्रेस! अभी नही तो कभी नही! की स्थिति में आ गई! केंद्र में जब से भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार काबिज हुई है, कांग्रेस की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। यूं कहें कि प्रधानमंत्री मोदी का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना पूरा होता करीब आ रहा है! परिस्थितियां जैसी भी रही हों, इक्का-दुक्का जीत के अलावा लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की पराजय का सिलसिला राज्यों में भी जारी रहा! उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी का सहारा भी उसके काम नहीं आया! अन्य राज्य तो उसके पास रहे नहीं! पर, गोआ में सर्वाधिक सीटें लाकर भी कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी!
ऐसा नहीं कि कांग्रेस के पास अनुभव नहीं है या उनके पास राजनीति के मंजे खिलाड़ी नहीं हैं। असल समस्या यही है कि कांग्रेस के पास इतने अनुभवी और लालसा वाले नेता हैं कि वे पार्टी के बारे में बाद में और खुद के बारे में पहले सोचते हैं। भाजपा के पास भी राजनीति के परिपक्व नेता हैं।
एक से एक नामचीन जो संघ की भट्टी से पके और प्रशिक्षित नेता! कई ने तो अपना सारा जीवन ही बिना किसी राजनीतिक लालच के पार्टी और संघ के नाम कर दिया। लालकृष्ण आडवानी, मुरली मनोहर जोशी सहित अनेक नाम हैं। मगर नरेंद्र मोदी ने पार्टी की बागडोर अपने सहयोगी अमित शाह को सौंपने के बाद इन नेताओं को मार्गदर्शक बनाकर राजनीति की नई परिभाषा गढ़ी! उन्होंने जिस तरह युवा राजनीति को प्रश्रय दिया, उसका परिणाम आज सामने है। समय के साथ पार्टी ने अपने परम्परागत तौर तरीकों में भी बदलाव किया। अनेक नेताओं को चुनाव से बाहर किया और अब पार्टी मानकर चल रही है कि आगामी लोकसभा में उसे 2014 से भी ज्यादा बहुमत मिलेगा। यदि ऐसा होता है तो ये कांग्रेस का अंतिम समय होगा! इससे पार्टी उभरने के लिए जी जान लगा देगी! पर, क्या कांग्रेस अब बदलाव की और बढ़ रही है?
राजस्थान में पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को महासचिव बनाकर गुजरात का प्रभार सौंपा है। उन्हें राज्य की राजनीति से बाहर करते हुए सचिन पायलेट जैसे युवा नेता को कामन सौंपी! वैसा ही मध्यप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह को दरकिनार कर ज्योतिरादित्य सिंधिया को कमान सौंपी जानी चाहिए। संगठन चुनाव की आड़ में पार्टी क्या राज्यों में वर्षों से जमे वरिष्ठों को हटाने का साहस जुटाकर भाजपा की तरह युवाओं को आगे लाने की कोशिश करेगी? कुछ नाम है जो असफल माने जा रहे हैं उनमें बीके हरिप्रसाद (उड़ीसा) और राज बब्बर (यूपी) प्रमुख हैं। उत्तरप्रदेश में प्रमोद तिवारी या जतिन प्रसाद जैसे नेताओं को कैसे और कहाँ फिट करना है, ये अब पार्टी को सोचना होगा! गोआ की जीती बाजी हारने का खामियाजा दिग्विजय से वसूला जाना चाहिए! उन्हें मध्यप्रदेश से बाहर कर ज्योतिरादित्य को सेहरा बांधना होगा। कमलनाथ जो हरियाणा प्रभारी थे उन्हें हाशिये पर रखना ही अभी सही फैसला होगा।
यदि ऐसा पार्टी ऐसा कर लेती है, तो हो सकता है वह मध्यप्रदेश में आगामी होने वाले विधानसभा चुनाव में शिवराज के विजय रथ को रोक पाए! कुल मिलाकर कांग्रेस को प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी का तोड़ ढूंढने की कवायद इसी साल पूरी कर उसे अमली जामा पहनाना होगा! ऐसा नहीं किया गया तो कांग्रेस के राजनीतिक पतन को रोकना मुश्किल हो जाएगा। देश की सबसे पुरानी और लम्बे समय तक देश पर शासन करने वाली पार्टी फिर सत्ता में कब लौटेगी यह कह पाना मुश्किल है! यदि कांग्रेस सत्ता में आती है तो ये भाजपा की गलती का ही नतीजा होगा, न कि कांग्रेस की अपनी कोई उपलब्धि!