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corona times : कोरोना को हरा कर तुम आ रहे हो बेटे

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डॉ. छाया मंगल मिश्र

अधिकतर मेरे प्रिय रिश्तों के खजाने के जो अनमोल रत्न हैं वो देश-विदेश में बिखरे हुए हैं। दिन भर की व्यस्तता के बाद रोजमर्रा के काम से फुर्सत मिलने पर हमारा 'लेट नाईट चैटिंग' कार्यक्रम शुरू होता है। 
 
इसमें पुराने पढ़ाए बच्चों से लेकर दोस्तों तक की   खोज-खबर, खैरियत का दौर चलता है। इसमें कुछ ऐसे रिश्ते भी हैं जो न दोस्त हैं न स्टूडेंट, न खून के नाते रिश्तेदार। पर बेहद प्रिय। ये “हिम्मतवाला हृदय” मेरे खजाने का एक ऐसा ही रिश्ता है। 
 
रिश्ता है उस बच्चे के निश्छल प्रेम के मजबूत धागे से बंधा हुआ, उसके स्नेह और आत्मीयता से रंगा हुआ। एक ऐसा ही लेट नाइट चैटिंग शगल इसके साथ भी चलता है। ‘कोरोना पॉजिटिव’ नाम है हृदय। जैसा नाम है वैसा ही है। हम इंदौरियों की खास बात यह है कि पहचानते तो सभी को हैं। पर पहचान के साथ जान न मिले तो 'जान-पहचान' कैसी। 
 
और हम जान पहचान के लिए ही प्रसिद्ध है। इस रिश्ते में जान डालने वाला ये हृदय ही था जिसने मुझे 'बुआ' के बंधन में बांधा। वरना हमेशा मां और मेम के संबोधन ही अतिप्रिय बच्चे देते रहे। मैं और वो हर थोड़े समय बाद "ग्रीन डॉट" देखते ही गपशप करना शुरू कर देते। हम एक-दूसरे से परिवारों के बेकग्राऊंड से परिचित होने और उसके प्रतिभाशाली होने से भी लगाव गहरा बना। वो भी हमारे परिवार की तरह वाद-विवाद विधा के आसमान का चमकता सितारा है। 
 
असाधारण व्यक्तित्व का धनी और कुशल प्रभावी वक्ता। उसके बात करने का अंदाज भी सबसे जुदा है। बेहद विनम्र और मिलनसार। आजकल नोएडा में अपनी प्रतिभा से जगह बना रहा है। लॉक डाउन के दौरान मैं हमेशा उसके संपर्क में रही। लगातार खैरियत के साथ उसे हर बार जैसे सुरक्षित रहने के लिए चेताती।हम बड़ों को आदत जो होती है। और मुझसे जुड़े बच्चों में वो सबसे छोटा है, जो बाहर हैं। 
 
कल अचानक एक लाईव से पता लगा कि नोएडा में उसके ऑफिस में हुए टेस्ट में लोग पॉजिटिव आए तो मैं हृदय की चिंता से घबरा गई। तुरंत 'ग्रीन-डॉट' दिखा। लगा मेरा ही इन्तजार कर रहा है। मैंने ढेरों प्रश्न तेज गति से दागना शुरू कर दिए। जैसे दूध में उफान आता है। वो शांत भाव से पढ़ कर बिना किसी भूमिका के बोला-तो क्या हुआ एक रिपोर्ट ही तो पॉजिटिव आई है। इससे क्या? अपनी पॉजिटिविटी कम है क्या? आप मत घबराओ, बिल्कुल मत घबराओ। निकल आऊंगा इससे भी बाहर।
 
और भी बहुत कुछ बोला और बहुत ही चतुराई से अपनी बातों के ठंडे पानी से छींटों से मुझे ही बहलाने लगा। पर मेरा मन लगातार चिंता में पड़ रहा था। और वो लगातार मुझे समझा रहा था। ऐसा लग रहा था कि मैं एक छोटी-सी बच्ची में बदल गई और वो अचानक बड़ा हो गया। उसकी भाषा उसकी बोली में आत्मविश्वास और जीतने का वही डिबेट वाला जूनून था। 
 
कभी हारता नहीं वो, हर प्रतियोगिता में जीतता ही रहा। और वही वाईब्रेशन कल भी थे। मुझे कहता रहा आप बेफिक्र रहो। केवल हल्के लक्षण हैं। ठीक हो जाएगा। मैं सोचने लगी कब अपने ये छोटे बच्चे अपने से बड़े हो जाते हैं पता ही नहीं लगता। और हम अपनी ममता में उनसे छोटे। वो हमें सहारा देने लगते हैं जबकि वो खुद एक लड़ाई में शामिल हैं। हमारी भाषा, समझाइश और भूमिकाएं भी बदल जाती हैं। क्यो? ऐसा सबके साथ तो नहीं होता है। 
 
पर जब निश्छल प्रेम, सम्मान, लगाव हो तो शायद ऐसा ही होता है। "अमर-प्रेम" की कहानी-कथाओं का यही आधार है। उसकी सारी बातें मुझे बहादुर बना गईं। मुझे खुद पर शर्मिंदगी महसूस होने लगी। लगाव ने मुझे कमजोर बना दिया था। उसने इस लगाव से ही खुद को मजबूत बना लिया। जमाने भर की बातें हल्के-फुल्के अंदाज में करता रहा शायद  मुझे टेंशन फ्री करने। ताकि मैं आराम से सो सकूं। 
 
उसकी पॉजिटिव लाइफ और पॉजिटिव थॉट्स मुझ पर जादू कर गए। अब मुझे वो 'रियल हीरो' लग रहा था। जैसे जैसे रात गहरा रही थी उसकी बातों से मेरे मन में इत्मीनान का उजाला फैल रहा था। हॉस्पिटल में था। उसे 'बिग बॉस हाउस' बोल कर मजे ले रहा था। बीच में तो उसके अंदाज से मुझे लगा कहीं मुझसे मजाक तो नहीं कर रहा? दिन भर की बातें बताते जा रहा था। बिना किसी विचलन के, पूरी स्वीकारोक्ति के साथ। अपनी पूरी ताकत और बुद्धि- शुद्धि के साथ इसे मात देने की तैयारी में। 
 
मुझे गर्व है उस पर, उसके गुणों पर, उसकी हिम्मत और जीवन के प्रति उसके विजयी भाव लिए सकारात्मक सोच पर। उसकी खिलखिलाती हंसी, उसका अंदाज, उसकी आवाज, उसका प्रेम यही सब मिलकर ही तो उसे "हृदय" बनाता है। जिसके बिना स्वागत-सत्कार, शुभकामनाएं और बधाई हमेशा आधी अधूरी हैं।
 
 ऐसा हृदय जो निडर है, सारी दुनिया जिससे खौफ खाए बैठी है उसे वो अपनी निराली अदाओं से परास्त कर रहा है। उसे जिद है और आदत भी जो सोचा है वो कर दिखाया है। यहां भी उसने ठान ली है इस कोरोना को शिकस्त देने की। और वो ही बाजी जीतेगा, मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास। वो होगा कामयाब देखना।
 
उसका वादा है हमसे और खुद से। क्योंकि वो बहुत समझदार है, सब जानकारी है, ऐहतियात बरतने के साथ सावधानी से अमल कर रहा है। पूरी शिद्दत से लगा है। इलाज जानता है। उसका मुझे खूब समझाने के बाद सोने के लिए ये कहना कि - अच्छी और पूरी नींद इम्युनिटी पॉवर बढ़ाने में मदद करती है। मेरे चेहरे पर मुस्कान ले आया। छोटी छोटी बातों को बड़ी बड़ी बातें बनाने में माहिर ये शैतान आज मुझे बड़ी बड़ी बातें छोटी छोटी बातों में समझा रहा है।
 
 हमारी “लेट नाइट चैटिंग” खत्म होने को आई इस वादे के साथ कि सुबह बातें होंगी वो भी बिना किसी विचलन के। यहां मैं बताती चलूं कि इस चौबीस बरस के नटखट से हमेशा मेरी बातचीत पिछले कुछ सालों से केवल मेसेंजर पर होती रही। कल पहली बार उसका फोन नंबर लेने की जरूरत महसूस हुई। और इससे भी ज्यादा गहरी और जरूरी बात आज तक हमारी मुलाकात भी नहीं हुई। 
 
जबकि उसके माता-पिता से अच्छा परिचय रहा है। यदि ऐसी सोच सभी पॉजिटिव की हो जातीं तो शायद आज पूरे भारत का परिदृश्य ही बदला हुआ होता। ऐसी महामारियों का मुंह काला करने के लिए हमें ऐसे ही तो युवा, बहादुर, निडर, समझदार हृदय से व्यक्तित्व वाले नागरिक चाहिए। जो सबके लिए आदर्श बनें।
 
कुछ पिछले जन्मों के नाते होते हैं जो एक दूसरे को ढूंढ लेते हैं। फिर पहचान तो होती ही है उसमें ये आत्मीयतापूर्ण "लेट नाइट चैटिंग" जान डाल देती है। बांध देती है ऐसे ही प्यारे, खुश मिजाज "हृदय" से बने रिश्तों के अटूट बंधन, जो जीने के लिए अनूठे आदर्शों के आयाम रच जाते हैं हमारी तरह...
 
वो जीतेगा, वो आएगा, वो फिर हाथों में जिंदादिली की ट्रॉफी लिए हीरो सी अदा मारता,इतराता हुआ, उसे आना ही होगा अपनी खनकती-खिलखिलाती हंसी के साथ..

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