सावधान! अपनी अपनी कुर्सियों की पेटियां (सेफ्टी बेल्ट) बांध लीजिए। विश्व ओबामा युग से निकालकर ट्रम्प युग में प्रवेश करने वाला है। यात्रा में भीषण झटकों के लगने की भविष्यवाणियां हो चुकी हैं। या यूं कहिए उस युग के आरंभ होने का आगाज़ गर्जना के साथ हो चुका है।
अमेरिकी मीडिया अपने बाल नोचने लगा है। विलाप कर रहा है। हाहाकार मचा है। मीडिया बबूल के वृक्ष को सींच रहा था आम की आशा में। उसे सत्ता का नशा हो चला था। राजनैतिक विश्लेषक मात्र विश्लेषण तक सीमित न रहकर, विशेषज्ञ बन गए थे। यकायक सारे समीकरण चौपट। प्रजातंत्र के प्रहरी को कोतवाल बनने का गुमान हो गया था। वह राष्ट्र के निर्माण में निरीक्षक की भूमिका छोड़कर ठेकेदार बन गया। हिलेरी ने मीडिया पर बेतहाशा खर्च किया। मीडिया ने हिलेरी का कीर्तन किया। ट्रम्प ने मीडिया को ऐसा झटका दिया कि वह औंधे मुंह गिरा।
उधर दुनिया के दूसरे कोने में विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र पर मोदीजी बैठे हैं। झटकों पर झटके दे रहे हैं। खेल के नियम बदल रहे हैं। मीडिया बदहवास। उसे समझ में नहीं आ रहा है कि सरकार की नीतियों पर सहमति के कार्यक्रम दें या आलोचना के। सत्ता पर पकड़ रखनी है तो उससे असहमत होना पड़ेगा तभी तो राजनेता दौड़ कर आएंगे भाई ऐसा वार मत करो। पर मोदीजी को मीडिया की फ़िक्र नहीं। अब क्या करें ? क्रंदन करो, पीछे चलो। जनता के साथ मोदीजी ने सीधा संबंध जोड़ लिया है। उन्हें मीडिया का माध्यम नहीं चाहिए। जब जनता जननेता के पीछे चल पड़ी तो मीडिया के पास जनता के पीछे चलने के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं बचा। जो जुलूस का नेतृत्व करने की सोच रहा था वह सबसे पीछे चल रहा है लहूलुहान। कमाई के साधन बंद। रिपोर्ट बदलने का कोई दबाव नहीं। सनसनी का कोई खरीददार नहीं। मीडिया को ग़लतफ़हमी हो गई थी कि वह लीडर पैदा कर सकता है। उसे लहर पैदा करने का दंभ हो गया था। जो मीडिया बोले वही सत्य, जो करने की बोले वही आदर्श। वह तो सत्ता को अपने सामने नतमस्तक देखना चाहता था।
इधर ट्रम्प ने अपनी टीम बनाने की शुरुआत की तो उसकी टीम के हर आदमी पर रोड़ा। सबकी आलोचना, इतिहास ख़राब, आदमी बकवास। चिल्ला रहे है क़यामत। मिडिया के समर्थन के बिना मंत्री कैसे बन सकते हैं? याद है भारत का राडिया टेप कांड। प्रधानमंत्री द्वारा मंत्रियों की लिस्ट बाद में बनती थी। मीडिया हाउस की सिफारिश पहले ही प्रधानमंत्री की टेबल पर पहुंच जाती थी। मोदीजी ने मीडिया का टेंटुआ दबाया। उधर अमेरिका में ट्रम्प ने वही किया। न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे सर्वशक्तिमान अख़बार को धता दिखा दिया। इंटरव्यू मेरी शर्तों होगा नहीं तो नहीं। घर बैठो। ट्विटर से पूरी दुनिया में सीधे पंहुचा जा सकता है। किसी अख़बार की आवश्यता नहीं।
दोनों ही देशों के नेताओं ने मीडिया को उसकी जगह दिखा दी। आधुनिक युग में मीडिया धंधा है। बड़े-बड़े कॉर्पोरेट संस्थान उससे जुड़े हुए हैं। धंधे में आय हर संभव तरीके से जायज है। ईमानदारी का दम भरने वाला पेशा बदनाम हो गया। अब जनता ने उसे हाशिये में कर दिया जो नकली आदर्शों के ढेर पर बैठा था। मीडिया दहाड़े मार रहा है। हमारी सुनो। कोई सुन नहीं रहा। दो नेताओं ने प्रजातंत्र को मीडिया की कैद से आजाद कर दिया। ठेकेदारी ध्वस्त हो गई। अमेरिका में भी और भारत में भी। नेता को जनता की नब्ज़ की पकड़ होना चाहिए। अनेक नेता गलती कर बैठते है मीडिया की नब्ज पकड़ने की क्योंकि वह शार्ट कट है। अब मीडिया के लिए विकल्प क्या बचा है? अपनी औकात में आओ। हर पेशे की तरह अपने पेशे में भी ईमानदारी लाओ। जनता के सुर से सुर मिलाओ। पक्षपातपूर्ण और नकली रिपोर्टिंग बंद करो। जनता के लीडर को पहचानो अन्यथा अन्य घाटे वाले धंधों की तरह तुम भी बंद हो जाओगे।