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कोई मुझे बताएगा कि मुझे फ़ेसबुक पर क्यों ब्लॉक किया गया?

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सुशोभित सक्तावत

, शनिवार, 15 जुलाई 2017 (19:41 IST)
मेरा नाम सुशोभित सक्‍तावत है और मुझे फ़ेसबुक ने ब्लॉक कर दिया है। 
 
ठीक अभी मैं अपने आपको किसी "जरायमपेशा" की तरह महसूस कर रहा हूं। जैसे कि जरायमपेशा लोग दंभोक्‍त‍ि से कहते हैं ना कि हम चार बार जेल की सज़ा काट चुके हैं, वैसे ही मैं किंचित विडंबना के भाव से आपको यह बता रहा हूं कि फ़ेसबुक ने मुझे चौथी बार ब्‍लॉक किया है!
 
यहीं इसी फ़ेसबुक पर गालियां बकने वाले लुम्‍पेन तत्‍व हैं, यहीं पर भड़काऊ बातें करने वाले जाहिल हैं, यहीं पर औरतों के इनबॉक्‍स में जाकर उन्‍हें तंग करने वाले लम्‍पट हैं, यहीं पर बेबुनियाद अफ़वाहों को शेयर कर एक प्रहसनमूलक प्रवाद-पर्व रचने वाले अधीर भी हैं, फ़ेसबुक इनमें से किसी को ब्‍लॉक नहीं करता। लेकिन फ़ेसबुक ने मुझे चार-चार बार ब्‍लॉक किया है!
 
मुझे नहीं मालूम, ब्‍लॉकिंग की पद्धति क्‍या है। क्‍योंकि फ़ेसबुक कभी आपसे प्रतिप्रश्‍न नहीं करता। आपका पक्ष जानने का प्रयास नहीं करता। वह सीधे आपको सूचित करता है कि आपको ब्‍लॉक कर दिया गया है। यह मध्‍ययुगीन प्रणाली है। केवल मास-रिपोर्टिंग लॉबी के आपके विरुद्ध सक्रिय होने भर की आवश्‍यकता है।
 
देखा जाए तो इसके लिए फ़ेसबुक को दोष देना भी ग़लत है। फ़ेसबुक अपने इतने व्यापक साम्राज्य की मॉनिटरिंग तो ख़ैर नहीं कर सकता ना। उसे वह व्यक्त‍ि-दर-व्यक्त‍ि मॉडरेट नहीं कर सकता। और अगर कोई मास-रिपोर्टिंग लॉबी किसी एक व्यक्ति के विरुद्ध लामबंद होकर रिपोर्टिंग करती है तो फ़ेसबुक की जो यांत्रिक पद्धतियां हैं, उसे फ़ौरन ब्लॉक कर देती हैं। कभी 24 घंटों के लिए, कभी 3 दिनों के लिए, कभी 7 दिनों के लिए, कभी 30 दिनों के लिए। इन चारों ही समयावधियों की सज़ा मैं भुगत चुका हूं। किंतु क्या हो अगर कोई गिरोह या मंडली द्वेषपूर्वक आपकी शिक़ायत करे। वैसी स्थिति में उसकी जांच करने का फ़ेसबुक के पास कोई तरीक़ा नहीं होता, और यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
 
बहरहाल, हाल ही में एक कथित दलित चिंतक को फ़ेसबुक द्वारा ब्‍लॉक किए जाने के बाद "फ्रीडम ऑफ़ एक्‍सप्रेशन" पर सत्‍तातंत्र के "आपातकालीन" प्रहार के संबंध में अनेक तक़रीरें उग आई थीं। मैं उन तमाम लोगों से पूछना चाहूंगा कि 30 दिनों के लिए सुशोभित का मुंह बंद करा देने की कोशिशों पर आपके क्‍या विचार हैं? आप अभिव्‍यक्‍त‍ि की आज़ादी के पैरोकार हैं या अभिव्‍यक्‍त‍ि के एकालाप के? आप फ्री स्‍पीच के निर्बंध प्रवाह के पक्षधर हैं या विचारों की एकतरफ़ा अय्याशियों के? यह आपकी परीक्षा है। और मुझे पूरा विश्‍वास है कि आप अपनी-अपनी परीक्षाओं में पहले ही विफल हो चुके हैं।
 
"हेट स्‍पीच" का आरोप मुझ पर लगाया गया है। क्या है यह हेट स्पीच। इस देश में राजकीय सुरक्षा प्राप्‍त राजनेता अचकन और शेरवानी पहने "हेट स्‍पीच" करते हैं, लेकिन हेट स्पीच के नाम पर पाबंदी लगाई जाती है मुझ पर।
क्‍या मैंने कभी कहा कि अल्‍पसंख्‍यकों का व्‍यापक जनसंहार किया जाए?
 
क्‍या मैंने कभी कहा कि अल्‍पसंख्‍यकों को देशनिकाला दे दिया जाए या डुबो दिए जाएं अरब सागर में पूरे अठारह करोड़?
क्‍या मैंने कभी यह कहा कि पंद्रह मिनट के लिए पुलिस हटा लीजिए और फिर बहुसंख्‍या का बल देखिए?
 
क्‍या मैंने कभी "चीर देंगे खीर देंगे" वाली शैली में बात की है?
 
जब मैं कहता हूं कि देश का अल्‍पसंख्‍यक वर्ग आत्‍ममं‍थन की तैयारी दिखाए तो क्‍या यह घृणा का प्रसार है?
 
जब मैं कहता हूं कि देश का अल्‍पसंख्‍यक वर्ग अपनी मज़हबी किताब के बजाय देश के संविधान में आस्‍था जताए तो क्‍या यह घृणा का प्रसार है?
 
जब मैं कहता हूं कि देश का अल्‍पसंख्‍यक वर्ग आतंकवाद के विरुद्ध उसी तरह से सड़कों पर उतरकर आए जैसे देश का बहुसंख्‍यक वर्ग असहिष्‍णुता के लिए सड़कों पर उतर आता है तो क्‍या यह घृणा का प्रसार है?
 
जब मैं कहता हूं कि देश का अल्‍पसंख्‍यक वर्ग अपने भीतर धार्मिक सामाजिक सुधारों का सूत्रपात करे, औरतों को उनके हक़ दे, तालीम को सबसे बढ़कर माने और नागरिकता को धार्मिकता से अधिक महत्‍व दे तो क्‍या यह घृणा का प्रसार है?
 
जब मैं कहता हूं कि पशुवध की घृणित परंपरा पर रोक लगे तो यह घृणा है या करुणा है?
 
फ़ेसबुक द्वारा मुझे ब्लॉक करने की कार्रवाई हाल ही में हिंदी के एक वरिष्ठ साहित्यकार से हुए मेरे वैचारिक टकराव के बाद की गई है। मेरा अपराध यह है कि मैंने हिंदी साहित्‍य के मठाधीशों से पूछा कि :
 
आप हिंदू धर्म की बुराइयों का जिस आत्‍मप्रेरणा से प्रतिकार करते हैं उस तरह से इस्‍लाम की बुराइयों का क्‍यों नहीं करते?
 
आप हिंदू धर्म में उभर रहे चरमपंथ का जिस स्‍वचेतना से प्रतिकार करते हैं उस तरह से इस्‍लामिक आतंकवाद का क्‍यों नहीं करते?
 
आप पाकिस्‍तान और कश्‍मीर के मज़हबी अलगाववाद का समर्थन क्‍यों करते हैं और उसके बावजूद स्‍वयं को धर्मनिरपेक्ष क्‍यों कहते हैं?
 
शांतिपूर्ण सहअस्‍त‍ित्‍व का दूसरा नाम आंखें मूंदकर बुराइयों पर परदा डालना कब से हो गया? सच को देखना अम्‍नो-चैन की हत्‍या कब से कहलाने लगी?
 
वरिष्ठ साहित्यकार श्री मंगलेश डबराल से जब मैंने इनमें से कुछ सवाल किए तो उन्‍होंने कहा : "तुम और तुम जैसे लाखों लोग, दफ़ा हो जाओ!"
 
साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता इतने महत्वपूर्ण साहित्यकार से इस तरह के उत्तर की अपेक्षा किसी को भी नहीं थी।
मैंने उनके नाम एक पत्र लिखा, उसका मुझे कोई उत्‍तर नहीं मिला।
 
उनके शिष्‍यों ने मुझसे सीधे संवाद करने के बजाय अपनी अपनी वॉल पर मेरे बारे में अनर्गल प्रलाप करना शुरू कर दिया, जिसमें कपोल कल्‍पित झूठ की भरमार!
 
मैंने फिर फिर उस पर सफ़ाई दी, अपनी वॉल पर भी, उनकी वॉल पर भी, किसी के पास कोई उत्‍तर नहीं था, केवल दुर्भावनाएं थीं, केवल घृणा थी, केवल रोष था।
 
मैं साहित्य के मठों में विराजित क्षत्रपों से आग्रह करता हूं सधे हुए तर्कों से मेरा प्रतिकार करें, अन्‍यथा अपनी नैतिक पराजय स्‍वीकार करें। और नहीं तो बंद करें अभिव्‍यक्‍त‍ि की आज़ादी का यह अरण्‍यरोदन!
 
मैं अपनी निर्भीक और स्‍वतंत्र बौद्ध‍िक अभिव्‍यक्‍ति और प्रश्‍नाकुलता पर बलात लादे गए इस "अनुशासन-पर्व" की भूरि-भूरि भर्त्‍सना करता हूं!
 
कोई मुझे बताएगा कि मुझे फ़ेसबुक पर क्यों ब्लॉक किया गया? 
(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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