#मेरा हैशटैग
एक सज्जन के यहां शादी थी। बेटे की बारात निकल ही रही थी कि लाइट उठाने वाली एक औरत दूल्हे के पिता के पास पहुंची और बोली- पहचाना मुझे? दूल्हे का पिता हक्का-बक्का रह गया। बोला- नहीं पहचाना। औरत बोली- मैं एंजेल प्रिया, तुम्हारी फेसबुक फ्रेंड।
खैर, यह तो एक लतीफा है, लेकिन इसके जैसा ही एक वाकया इंदौर में हो चुका है। पुलिस एक अपराधी को पकड़कर थाने लाई। अपराधी से पूछताछ की जा रही थी, तब वह बोला कि तमीज से बात करो, एसपी मेरा दोस्त है। पुलिसकर्मी थोड़े सकुचाए। फिर उन्होंने एसपी से इस बात की पुष्टि करनी चाही कि क्या वास्तव में वह शख्स आपका दोस्त है? एसपी ने कहा- नहीं। मैं ऐसे किसी शख्स को नहीं जानता। जब पुलिसकर्मियों ने हिरासत में लिए गए शख्स से सख्ती से पूछताछ की, तब वह बोला कि एसपी मेरे ‘फेसबुक फ्रेंड’ हैं। फिर उसके बाद उससे क्या 'सलूक' हुआ होगा, यह बताने की जरूरत नहीं।
आपका फ्रेंड, फ्रेंड होता है और फेसबुक फ्रेंड, फेसबुक का फ्रेंड। एक वास्तविक दुनिया है और दूसरी वर्च्युअल। वर्च्युअल दुनिया के फ्रेंड को वास्तविक दुनिया का फ्रेंड समझने की गलती कई लोग कर बैठते हैं। अगर कोई बड़ा अधिकारी या किसी कंपनी का सीईओ फेसबुक पर हो, तो उसके फेसबुक फ्रेंड की संख्या काफी बड़ी हो जाती है। इनमें बहुत से ऐसे लोग होते हैं, जो अधीनस्थ कर्मचारी हो सकते हैं। वास्तविक दुनिया में वह अधिकारी उन लोगों से दोस्ती करने में संकोच करता होगा।
सोशल मीडिया की आचार संहिता में अभी तक इस बारे में कोई स्पष्ट धारणा नहीं बनी है कि क्या वरिष्ठ अधिकारियों का फेसबुक फ्रेंड बनना चाहिए या नहीं। सोशल संहिता की आचार संहिता के एक्सपर्ट मानते है कि इस बारे में वास्तव में कोई आचार संहिता बनाई ही नहीं जा सकती। यह बात व्यक्ति पर भी निर्भर है और कंपनी पर भी। मार्क जकरबर्ग भी कहां अपने सभी कर्मचारियों के फेसबुक फ्रेंड हैं? सोशल मीडिया आपकी निजी जिंदगी की भी कुछ झलकियां दुनिया के सामने रख देता है। हो सकता है कि आप निजी जिंदगी की उन घटनाओं को अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ शेयर नहीं करना चाहते हो।
सोशल मीडिया पर इससे उलटी बात भी हो सकती है। हो सकता है कि आपका बॉस आपका अच्छा दोस्त हो, लेकिन सोशल मीडिया पर भी वह उस बात को स्वीकार करे, जरूरी नहीं। हो सकता है कि वह आपसे दोस्ती रखना तो चाहता हो, पर उसे जगजाहिर करना नहीं चाहता। ऐसे में बॉस से दोस्ती का ढिंढोरा पीटने की कोशिश करना फिजूल है। कई अधिकारियों को लगता है कि अगर वे सोशल मीडिया पर अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के दोस्त के रूप में देखे गए, तो इससे उनकी प्रतिष्ठा को धक्का लग सकता है।
सोशल मीडिया एक्सपर्ट मानते हैं कि वरिष्ठ अधिकारियों से दोस्ती जताना सोशल मीडिया पर फायदेमंद नहीं होता। हो सकता है किसी महिला कर्मचारी ने अपने वरिष्ठ पुरुष अधिकारी की सोशल मीडिया पर प्रशंसा कर दी हो और वह उसे किसी अन्य रूप में लेने लगे। इससे विपरीत स्थिति भी हो सकती है। हो सकता है कि वरिष्ठ अधिकारी अपने अधीनस्थ महिला कर्मचारी के काम की तारीफ करे और उसे कुछ और समझ लिया जाए। हो सकता है कि सोशल मीडिया पर वरिष्ठ अधिकारी अपने परिवार और नितांत निजी मित्रों के साथ बिताए क्षणों को शेयर कर रहा हो। उसे देखकर मातहत कर्मचारी कुछ और भी सोच सकता है।
कई लोग निजी जीवन में बेहद विनम्र होते हैं। सोशल मीडिया पर जब भी कोई उन्हें फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजता है, तो उनके लिए ऐसी रिक्वेस्ट को नकारना मुश्किल हो जाता है। फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करने के बाद भी वरिष्ठ अधिकारी की पोस्ट पर लाइक और कमेंट करने में सावधानी बरतने की जरूरत होती है। कई लोग यह सावधानी नहीं बरत पाते। परेशानी से बचने के लिए कई लोग अलग-अलग अकाउंट खोल लेते है जिसमें उनकी पर्सनल लाइफ और दोस्तों के लिए अलग जगह होती है।
सोशल मीडिया विशेषज्ञों का मानना है कि आप अपने वरिष्ठ अधिकारी के साथ सोशल मीडिया पर संपर्क में हों, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस तरह के व्यवसाय एवं ओहदे पर हैं। अगर आप मीडिया, फिल्म, विज्ञापन, इवेंट कंपनी, कला जगत जैसे क्षेत्रों में हैं, तो हो सकता है कि आपके वरिष्ठ अधिकारी सोशल मीडिया पर आपकी उपस्थिति और सपोर्ट को तवज्जो दें, लेकिन अगर आप लोक प्रशासन, वित्तीय सेवा, पुलिस, न्यायपालिका जैसे विभाग में कार्यरत हैं, तब आपके मातहतों से सोशल मीडिया पर जीवंत संपर्क रखना शायद उतना सार्थक नहीं है।