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फीलिंग्स का क्या अचार डालें ...!

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प्रीति सोनी

प्रीति सोनी 
फीलिंग्स, फीलिंग्स, फीलिंग्स.....अरे फीलिंग्स का क्या अचार डाला जाए...। फीलिंग्स यानि भावनाओं के साथ कुछ भी पकाया नहीं जा सकता। पका भी लोगे तो ना तो आजकल किसी को फीलिंग्स का स्वाद समझ में आता है, और ना ही फीलिंग्स की कोई खुशबू उड़ती हुई नाक तक पहुंचती है, जो किसी का दिल चुरा ले। भई जितनी भावनाओं के साथ खाना पकेगा नहीं, उससे ज्यादा तो लोग उसपर नमक और काली मिर्च का पाउडर छिड़ककर खाते हैं स्वाद के लिए। 
 
फीलिंग्स को लेकर कई तरह के वाक्य तो आपने जरूर सुने होंगे..। अरे फिल्मों में नहीं, असल जिंदगी में भी भावनाएं भले ही असर न डालती हों, लेकिन भावनाओं से भरे शब्द जरूर असर डालते हैं। फट्ट से चिपक जाते हैं...इंसान के दिमाग पर। सुना तो होगा ही आपने कहीं न कहीं - 
 
इस चीज से मेरी फीलिंग्स जुड़ी हैं... फीलिंग्स की कोई कीमत नहीं है क्या...फीलिंग्स नाम की भी कोई चीज होती है....तुम्हारे अंदर जरा भी फीलिंग्स नहीं है.....मेरी फीलिंग्स तुमसे जुड़ गई हैं.....तुम मेरी फीलिंग्स नहीं समझते....फीलिंग्स की तो कोई वैल्यु ही नहीं...हर इंसान में फीलिंग्स होती हैं... जहां फीलिंग्स की कीमत नहीं और फलां-फलां...
 
सारा का सारा खेल ही फीलिंग्स पर आकर अटक जाता है। कभी बचपन के गलियारों से फीलिंग्स जुड़ी होती है, तो कभी स्कूल के डांटने और मारने वाले वाले शि‍क्षकों तक से। कभी नालायक और कमीने दोस्तों के ग्रुप के लिए फीलिंग्स उभर आती हैं तो कभी कॉलेज की यादों से फीलिंग्स जुड़ी होती है।
 
साथ रहने वाले उस, दोस्त से ज्यादा मायने रखने वाले स्पेशल वन से तो रेडीमेड फीलिंग्स जुड़ी होती है। और हां प्यार मोहब्बत के बाद करियर की बात करो, तो कभी काम से फीलिंग्स जुड़ जाती है, कभी साथि‍यों से...। कभी-कभी तो कंपनी से इतनी फीलिंग्स जुड़ जाती है, कि करियर दांव पर भी हो तो फीलिंग्स कम नहीं होती। इन सबके बाद जिंदगी में शादी-वादी, बीवी बच्चे और पति-पत्नी के रिश्ते तो अपने साथ फीलिंग्स का लाईफटाइम स्टॉक लेकर आते हैं। ये बात अलग है, कि सभी को लगता है, कोई हमारे लिए फील नहीं करता। 
 
इन सब से थोड़ा बाहर निकलें तो पड़ोसी, मोहल्ला, शहर, क्षेत्र, गांव, देश भाषा के अलावा ....इसके हाथ का बना खाना, उसके हाथ की चाय....ये मौसम और वो कपड़े....। यहां तक कि टीवी पर आने वाले सीरियल की रोती हुई लड़की या फिर लड़के के लिए जान दांव पर लगा देने वाले हीरो के चेहरे की मासूमियत...हाय, उससे तक फीलिंग्स जुड़ जाती है। समझ नहीं आता कि इतनी सारी फीलिंग्स आती कहां से है, और जाती कहां है, दिखाई तो नहीं देती
 
अरे, अरे अभी पहला गुलाब और शेरो शायरी की वो पंक्तियां तो बाकी ही रह गईं, जिससे पहले प्यार का इकरार हुआ था। और वो तोहफा जो आपको पहली बार मिला था.....। और हां, वह रेस्तरां या काॅफी शॉप तो रह ही गई, जहां आप अक्सर कॉफी पीने जाते हैं, साथ ही उसके मालिक का वो कुत्ता भी, जो आपको देखते ही पूछ हिलाना शुरू कर देता है हे भगवान, लंबी फेहरिस्त है, ये फीलिंग्स के बाजार में छोटी-छोटी चीजों की। वो भी तब, जब लोग न तो फील करते हैं, न ही फीलिंग्स जताते हैं, ना ही समझते हैं। बताओ, है न कमाल की बात....फीलिंग्स दिखाई दे या न दे, मार्केट में डिमांड जरूर है बॉस।

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