Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

आज़ादी…स्वतंत्रता…मतलब खुली हवा में सांस लेना

हमें फॉलो करें आज़ादी…स्वतंत्रता…मतलब खुली हवा में सांस लेना
webdunia

स्वरांगी साने

, बुधवार, 16 अगस्त 2017 (18:43 IST)
मुक्ति की कामना!
 
यहां तक तो हर बात ठीक है, लेकिन यदि खुली हवा में सांस लेने की इच्छा से कोई चौदह मंज़िली इमारत से कूद पड़े तो, क्या वह भी आज़ादी है? और यदि उसे ऐसा करने से रोका गया तो क्या उसकी आज़ादी का हनन करना हुआ?
 
जब तक इतनी आसान बात समझ नहीं आएगी, हम बहुत बड़े शब्द आज़ादी को कैसे समझेंगे?
 
हम, जो आज़ाद मुल्क़ में पैदा हुए, उनके लिए तो आज़ादी को समझना और भी मुश्किल है। अंग्रेजों ने शासन किया, मुगलों ने साम्राज्य का विस्तार किया, सम्राट अशोक और चंद्रगुप्त मौर्य ने देश को स्वर्ण युग दिलवाया, भरत के नाम से इस देश का नाम भारत पड़ा, आर्य कहीं से आए थे और उन्हें यहां के सब लोग अनार्य लगे, सिंधु नदी के किनारे से हिन्दी नाम पड़ गया…शिवाजी महाराज ने हिंदवी साम्राज्य की स्थापना की…वे मुगलों से लड़े थे…मुगल आक्रामक थे…मुगलों को आक्रामक कहने से हो सकता है कुछ लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचे…मुगलों में एक बादशाह अकबर भी था…शिवाजी तो औरंगजेब से लड़े थे...भगवा रंग अपनाना किसी पार्टी में शामिल होने जैसा…आदि-इत्यादि।
 
तो यूं, इतिहास पढ़कर जो युवा बाहरी दुनिया में कदम रखता है वह पूरी तरह कन्फ्यूज़ हो जाता है…फिर मोटे-मोटे तौर पर वह समझता है कि 200 साल की गुलामी के बाद यह 71वीं वर्षगांठ थी आज़ादी की…हुश्श।
 
आज़ादी मतलब दिन भर शोर-शराबा, सफेद परिधान, तीन रंगों को फ़ैशन में शामिल करना, मॉल जाना, शॉपिंग और सेल का आनंद लेना…लैट्स सेलिब्रेट द हॉलिडे…ओह दैन अगेन वर्किंग डे। 
 
काम करना गुलामी…पर मोटा वेतन पाने का लालच उस गुलामी को ‘हैव टू वर्क’ में बदल देता है…स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, केवल एक नारा…किसी एक दिन लिया जाने वाला…बाकी दिन देश को गालियां देना…देश जो कहने को सबका…कहने को किसी की बपौती नहीं…सो देश के नाम पर गरियाने से किसी की भावनाएं आहत नहीं होतीं… 
 
इस देश में, कहना…पान के पीक थूकने जैसा कुछ…सिगरेट के कश में उड़ा देने जैसा कुछ….काश कि हम कहीं और पैदा हुए होते…दिस कंट्री हैज़ नो फ्यूचर…यैस यू आर राइट… और… और…और… उन सब लोगों का एक हो जाना जो अपने देश को गाली देते हैं, अपने प्रतीकों को उलाहना देते हैं…जिस घर में वे पैदा हुए उस घर में पैदा होने को अपना सबसे बड़ा दुर्भाग्य मानते हैं और अपने मां-बाप को अपनी उन्नति का सबसे बड़ा रोड़ा….वे सब आज़ाद होना चाहते हैं।
 
वे सब इस देश से आज़ाद होना चाहते हैं। तब यदि मुझ जैसी किसी का ख़ून खौले कि अमां यार जिस देश का खाते हो उसे गाली मत दो…तो कहते हैं ओह जिस हिन्दू का खून न खौले की बात कर रही हो..तुम तो संघी लगती हो…दक्षिणपंथी लगती हो….क्या खूब..इस देश में रहकर इस देश की बात करना मतलब अपने माथे पर किसी पार्टी, संगठन का टैग लगा लेना है….और उस पर ब्राह्मण होना मतलब और भी करेला ऊपर से नीम चढ़ा…वे सब एक…मैं निपट अकेली…
 
केवल अशोक लौट रहा था और सब कलिंग का रास्ता पूछ रहे थे।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

मुंबई की 'कंकाल' मां के बहाने बात रिश्तों की