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नयेपन की डिमांड और अलग तरह की राजनीति

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अमित शर्मा

हर कोई सबसे अलग और नया दिखना चाहता है, क्योंकि जो दिखता है जरूरी नहीं वह बिकता भी है। बिकने के लिए बिकनी की तरह एक्सपोज करना जरूरी होता है, मतलब माल ग्राहक को वाकई "माल" लगेगा तभी उसे वो सड्डेनाल रखेगा। मार्किट में नया और अलग माल ही सबकी नजरो में अटकता और खटकता है और अगर ग्राहक को माल पसंद आ जाए तो वो उसको बड़े हक से जल्दी ले सटकता है। यहां तक की वाट्सएप मैसेज भी लोग तभी आगे फॉरवर्ड करते है जब तक  उन्हें "मार्केट में नया है" कहकर बरगलाया ना जाए।
 
बाजार में वही व्यापारी सफल हो पाता है जो ग्राहक की नब्ज और जेब पकड़ना जानता है। और केवल पकड़ना महत्वपूर्ण नहीं होता है पकड़ने के बाद ग्राहक को लगना भी चाहिए की सही पकड़े हैं।
 
इंसान हमेशा से नयापन और कुछ अलग ढूंढता आया है क्योंकि बोरियत उस बिन बुलाए मेहमान की तरह होती है, जो घर आ जाने पर और कुछ ना सही (10 बार मना करते-करते) भी चाय और खून पीकर तो जाती ही है। नयापन और कुछ अलग दिखने की चाहत विशिष्ट हो जाने की उस भूख से उपजता है, जो केवल अहम की संतुष्टीरूपी डकार से तृप्त होती है। 
 
नएपन की भूख, नए बाजारों और व्यापारियों को जन्म और अवसर देती है। हर बाजार मांग और पूर्ति के सनातन नियम से संचालित होता है। राजनैतिक बाजार भी इससे अछूता नहीं है। राजनैतिक बाजार में चाहे कितनी भी वादाखिलाफी क्यों ना हो, फिर भी वो इस नियम का ईमानदारी से पालन और पोषण करते हुए अपना मुख्य कार्य शोषण जारी रखता है। मतदाताओं के टेस्ट का ध्यान रखते हुए, उन्हें बोरियत और भ्रष्टाचार से बचाने के लिए कुछ वर्ष पूर्व जनआंदोलन की कोख से एक पार्टी ने अवतार लिया था और इस अवतार से पहले आकाशवाणी और भविष्यवाणी (जिसमे बिजलियों के बदले टीवी कैमरे के फ्लेश चमके थे।) के जरिए जनता को बताया गया था कि पार्टी का अवतार जनता को जीते जी मोक्ष की अनुभूति करवाने के अति आवश्यक जीवनदायी तत्वों लोकपाल और स्वराज की स्थापना और स्थापना के बाद तोहफा कबूल करो जहांपनाह कहने के लिए हो रहा है।
 
पार्टी की स्थापना अलग तरह की राजनीति करने के वादे से हुई थी, इसलिए जनता से किए गए अपने वादे को निभाते हुए बिलकुल अलग और नए तरीके से जनता को वही पुरानी दवा दी जा रही है, ताकि जनता अपने नएपन की खुजली मिटाते हुए अपनी पुरानी आदतें बनाए रख सके। दरअसल जनता को भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता से समस्या नहीं है, वो तो उसे अपना भाग्य मानकर स्वीकार कर चुकी है लेकिन जनता आहत तब होती है जब नेतागण उन्हीं पुराने रास्तों पर अपनी भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता की गाड़ी दौड़ाकर लोकतंत्र की बाधादौड़ पूरी करते है। आम आदमी जलपान छोड़कर पहले मतदान करता है, इसलिए उसे पूरा हक है अपने वोट की एंटरटेनमेंट वैल्यू वसूलने का।
 
आम आदमी के नाम पर बनी पार्टी ने मतदाता के एंटरटेनमेंट का पूरा ख्याल रखा है। आम आदमी पार्टी ("आप") ने लोकतंत्र की नीरसता को ना केवल दूर करने का काम किया है, बल्कि दूरदर्शी राजनैतिक मूल्यों की स्थापना करने में भी महती भूमिका निभाई है। आप पर कोई भ्रष्टाचार का आरोप लगाए, उससे पहले ही आप सबको भ्रष्टाचारी घोषित कर स्वयं को ईमानदारी का एकमात्र मसीहा घोषित कर दो। इससे ना तो आप की ईमानदारी साबित होती है और ना ही दूसरे की बेईमानी। लेकिन टाइमपास अच्छा हो जाता है और मुंह बाए खड़ी सैकड़ों समस्याओं के बावजूद सबका मूड फ्रेश रहता है। अगर कोई गलती से या दुर्भावना से आप पर कोई भ्रष्टाचार का आरोप लगा भी दे, तो घबराए नहीं बल्कि अपनी पार्टी के नेता से बयान देने को कहें कि‍,"आप को खरीदने वाला अभी कोई पैदा ही नहीं हुआ है।" ऐसा करके आप ना केवल आरोपों का खंडन करेंगे, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से खरीददारों को ललकार कर उनका मन भी टटोल लेंगे।
 
अलग तरह की राजनीति में कोई आप पर काम ना करने का आरोप लगा ही नहीं सकता है। अगर आप रोज सुबह उठते ही आरोप लगा दें कि आपको काम नहीं करने दिया जा रहा है, इससे आप को काम करने की चिंता और तनाव से भी मुक्ति मिलेगी और आप इतना पर्याप्त समय निकाल पाएंगे की दूसरे राज्यो में चुनाव प्रचार करते हुए भी हर मूवी फर्स्ट डे-फर्स्ट शो देखकर उसका रिव्यु दे सकें। विरोधी चाहे कुछ भी कहे लेकिन इस अलग तरह की राजनीति ने सत्ता को जवाबदेही से मुक्त कर लोगों की आशाओं को टूटने से बचाया है, जो लोकतंत्र की दीर्घजीविता के लिए शुभ संकेत है।
 
इस तरह की राजनीति में इंसान सदैव विजयी रहता है, क्योंकि या तो वो जीतता है या फिर इवीएम में गड़बड़ द्वारा लोकतंत्र की हत्या होती है। ऐसा होने से इंसान हार जाने की गिल्ट से पार पा लेता है और हार की जिम्मेदारी लेने, इस्तीफा देने और आत्मचिंतन करने जैसी झंझटो से भी मुक्त हो जाता है। 
 
इस नई और अलग किस्म की राजनीति ने बहुत कम समय में सफलता के नए शिखर छुए हैं। शिखर पर पहुंचना आसान होता है, लेकिन वहां बने रहना मुश्किल है। इसलिए आवश्यक है कि जनता और नेता हमेशा अपने नयेपन की डिमांड और सप्लाई में संतुलन बनाए रखे ताकि लोकतंत्र को नीरस होने से बचाया सके।

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