किसी भी क्षेत्र में चले जाइए, सब जगह गधे मौज करते मिलेंगे और घोड़े थककर-चूर मिलना है। सरकारी महकमे में एक जुमला आम है 'योग्यता नहीं दिखाना, दिखाई कि मरे'! मरे मतलब कि घोड़े बने! घोड़े बनने की देर है कि ऑफिस के गधों की लॉटरी लग जाएगी। उनके हिस्से का काम आपको ही करना है । साहब भी बोल देंगे , ' भाई ! रहने दो तुम ही कर लो, उस गधे से नहीं होगा'। अब करते रहो डबल-ट्रिपल शिफ्ट में काम। कम से कम उतनी शिफ्ट तो करना ही है जितने कि आपके यहां गधे हैं।
गधे अपना काम शिफ्ट करते जाएंगे और आपकी शिफ्ट बढ़ती जाएगी। आपका जीवन अब नौकरी और ऑफिस बन जाएगा। घर-परिवार सिर्फ देखने और हैलो-हाय के लिए रह जाएंगे। खाने और सोने के लिए धर्मशाला का अहसास कराता आपका अपना घर, बीच-बीच में आने वाले संडे को काटने दौड़ेगा। बच्चों की चिल्ल-पों , मस्ती, चुलबुलाहट पर क्रोध छूटेगा। कारण कि ऑफिस में कटती-खटती जिंदगी में न बच्चे होते है न ही बचपन। उधर तो जवानी भी नहीं होती सीधे बुढापा आता है । सरकार हमारी और हम सरकार के, इस जुमले को चरितार्थ करती जिंदगी के दिल और दिमाग में ऑफिस घुस जाता है। घर में घुसते वक्त भी ऑफिस साथ आता है। ऑफिस में बने रहने से बच्चों की आवाज से अजनबी-पन हो जाना और शोर सुनते ही सिर चकराने लगना जैसे चिन्ह दिखने लगे, तो समझिए कि बंदा नौकरी में तीसरा दशक पूरा करने के नजदीक ही है। घबराकर इलाज के लिए न दौड़िए, बल्कि घर में ही ऑफिस का सेटअप बना दीजिए। सबकुछ ठीक हो जाएगा।
ऑफिस के बाहर भी ऑफिस जैसे अहसास से भरते ही रौनक लौट आएगी। हो सकता है इसमें नुक्सान यह हो कि पूर्व आज्ञाकारी पति, प्रत्येक काम में हिहुल्लत, आनाकानी, अड़ंगेबाजी करने लगे। पर घबराइएगा बिलकुल नहीं, थोड़ा डिले होगा पर काम होगा। यह ग्यारंटी है। बस चाय-पकौड़े का खर्च बढ़ जाएगा। किचिन में अखंड अग्नि प्रज्वलित होने के योग मामूली नहीं होते। इसके लिए पहले राज-परिवार में जन्म लेना पड़ता था, तब जाकर रात-दिन खाने-पीने के योग प्राप्त होते थे ।
अब तो राजसी खाने-खजाने के योग वाले या बोले तो सरकारी करम करने वालों को चरते रहने के योग घर-ऑफिस दोनों जगह उपलब्ध है। देख कर लगता है कि भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं। महलों को देखकर आहें भरने के दिन गए, अब तो घर-घर राजा और राज-परिवार पैदा होने लगे हैं। चांदी की चम्मच के साथ पैदा होना किसी किस्मत वाले के लिए ही माना जाता था, पर अब तो चम्मच क्या झूलने के लिए पालने भी साथ लेकर पैदा होने लगे हैं। अकेली चम्मच क्या दम भरेगी, तो पालने की जुगाड़ भी निकाल ली गई है। वो ऐसे कि ऑफिस के बाहर भी ऑफिस जैसे अहसास के लिए धीरे-धीरे ऑफिस के पुराने फर्नीचर, स्टेशनरी घर में सुसज्जित हो जाती है और साथ में दास रूपी सरकारी नोकर-चाकर भी आ-जाते है। जिनकी जिम्मेदारी यही कि दिनभर बच्चों को उठाना और उनका झूला रूपी पालना बने रहना। तो, जय हो गधों की! सदा विजय हो! अथ श्री गधा पुराण पंचम अध्याय समाप्त !