Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

बेवकूफी का तमाशा

हमें फॉलो करें बेवकूफी का तमाशा
webdunia

आरिफा एविस

अप्रैल आने वाला था। बेवकूफ बनाने वाले, लोगों को बेवकूफ बनाने की फि‍राक में थे। वैसे अब कोई महीना निश्चित नहीं है, अप्रैल का महीना भी अपमानित हो रहा है कि आखिर बेवकूफ बनाने का दर्जा हमसे क्यों छीन लिया है। अब तो हर दिन बेवकूफ बनाया जा रहा है अवाम को। ये लोग भी कहते नजर आ जाते हैं कि फलां व्यक्ति लोगों को फूल बना रहा है। भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में बेवकूफ बनाने वाले नए-नए जमूरे और उस्ताद पैदा हो रहे हैं। इस बार जमूरे और उस्ताद लोगों को बड़ा वाला अप्रैल फूल देने की फि‍राक में है। आइ देखते हैं दोनों की यह जुगलबंदी क्या है? आओ चले जमूरे और उस्ताद के पास -
'उस्ताद आज पहली अप्रैल है लोग आज के दिन एक दूसरे को बेवकूफ बनाने के लिए नई नई तरकीब खोजते हैं और बेवकूफ बनाते हैं...चलो हम भी लोगों को अप्रैल फूल बनाएं।'
'क्या कहा अप्रैल फूल ? यूं तो अप्रैल फूल दिवस पश्चिमी देशों में पहली अप्रैल को मनाया जाता है। अरे भाई जिन्हें हमारे द्वारा हर रोज ही बेवकूफ बनाया जाता है उन्हें हम क्या बेवकूफ बनाएं।'
'छोड़िए न उस्ताद आप भी ! इतनी समझदार अवाम को बेवकूफ कहते हैं। '
 
' मैं इन्हें बेवकूफ नहीं कहता। जमूरे, ये लोग इतने सीधे हैं कि कोई भी बेवकूफ बना लेता है। कमाल की बात देखो, हमारे ही लोग इनके बीच में खड़े रहते हैं जो हमारे कहने पर इनको बेवकूफ बनाते हैं। शायद इसलिए ये उस्ताद की चालाकी को पहचानने में असफल हो जाते हैं।'
'वो कैसे उस्ताद ?'
 
'जैसे आजादी मिले इतने साल हो गए। जो भी चुनाव में खड़ा होता है वो नए प्रेमी जोड़े की तरह अवाम से ढेर से वादे कर जाता है। और अंत में वो आते हैं अपना उल्लू सीधा करके चले जाते हैं। '
'बात कुछ समझ नहीं आई'।
'समझ में कैसे आएगी, क्योंकि कानून की पट्टी भी तो बांध रखी है।'
'उस्ताद अब आप बातें न बनाओ मंत्रियों की तरह। साफ-साफ कह भी दो।'
' अंग्रेजो ने फूट डाला और शासन किया उसी तरह तुम भी बेवकूफ बनाओ और मुनाफा कमा के काम जमूरे से अभिनेता बन जाओ।'
'देख टीवी ऑन करते कुछ ही मिनटों में पतला होने का फार्मूला आता है। अगर कोई एक हफ्ते में गोरा हो जाता तो दक्षिण भारत के लोग काले ही क्यों रहते। चंदरोज में काले घने बाल, चुटकी में कद लंबा। एक लोकेट खरीद लेने से सारी समस्याओं का निदान तक करने की गारंटी। यह सब अवाम को बेवकूफ बनाने की मशीन नहीं तो क्या समाज कल्याण है।
'हां उस्ताद बात में तो दम है।'
 
'ये तो नमूना है। इसी फार्मूले पर सारे उत्पाद विक्रेता उत्पाद के गुण बताकर अवाम को बेवकूफ बनाते है और अवाम झांसे में आ जाती है, जैसे पांच साल के बाद आने वाली नई सरकार।'
'उस्ताद ये लोकतंत्र है।'
'नहीं जमूरे ये 'बेवकूफतंत्र' है। बेवकुफों द्वारा बेवकूफ बनाने के लिए बेवकूफों का शासन।'
'उस्ताद आप तो गुरु हो, आपको तो प्रवचन देना चाहिए आप तो महा ज्ञानी हो।'
'नामाकूल, हमको गुरु बनने को कहते हो, अरे ये जो प्रवचन देते हैं, अरे ये गुरु नहीं बिजनेसमैन हैं। गुरुगिरी करना इनका बिजनेस है। आजकल गुरु और बिजनेसमैन का पर्याय एक ही है। लोगों के दिमाग से तार्किकता को खत्म करना और अतार्किकता को बढ़ावा देकर असली मकसद मुनाफा कमाना है। '
 
'उस्ताद आप तो अच्छे वक्ता हैं। आप तो जुमलेबाजी भी खूब कर लेते हो, तो आप नेता क्यों नहीं बन जाते।'
'देश में जुमलेबाजी करने वाले कम लोग हैं, जो हम भी उनकी गिनती में शामिल हो जाएं।
'अच्छा ! फिर तो खबरनवीस ही बन जाओ आप, अच्छी जांच पड़ताल कर लेते हैं।'
'अरे हटो! लगता है तुम आजकल टीवी नहीं देखते! खबरनवीसी का मतलब है टीवी पर ऐसी खबरें दिखाओ, जो गैरजरूरी हों और इन्हें तोड़ मरोड़ कर पेश करना भी एक कला है। खबर को खबर नहीं मसाला बनाओ, टीआरपी बढ़ाओ और मालिक का मुनाफा दिलाओ। खबरनवीस न हों खानसामा हों। '
 
'अरे उस्ताद जब आपकी इतनी परखी नजर है तो आप लेखक क्यों नहीं बन जाते।'
'अरे जमूरे ! आजकल के बुद्धिजीवी और लेखक भी तो लोगों का अप्रैल फूल बनाते हैं। ऐसे मुद्दों पर लिखते और ऐसे विषयों पर चर्चा करते हैं जिसका अवाम से कुछ भी लेना देना नहीं होता। लेकिन अपना स्वार्थ सिद्ध जरूर पूरा हो जाए अवाम पर लिखकर। अरे भाई अगर उनको अवाम के बारे में सोचना ही होता तो वो बुद्धिजीवी ही क्यों कहलाते, बुद्धिजीवी सिर्फ विमर्श करते, फर्श पर कुछ नहीं करते।'
'उस्ताद आप नजुमियत खूब कर लेते हैं। आप नजूमी बन जाइए।'
 
'क्या कहा नजूमी ? नजूमी तो अपनी नजुमियत को छोड़ कर जम्हूरियत में मुब्तिला हैं।'
'कहा न उस्ताद, लोकतंत्र है। संविधान में सब बराबर हैं।'
'हां जमूरे संविधान के कारण ही तो हमारा तमाशा जारी है।
 
'उस्ताद अब यह बताइए, अवाम कब तक तमाशा दिखाकर बेवकूफ बनाते रहेंगे।
'लगता है जमूरे तू इतिहास से वाकिफ नहीं है, इन्हीं अवाम ने अच्छे अच्छो का तख्ता पलट किया है। इसलिए अवाम को जबतक बेवकूफ बना सकते हो बनाओ। नहीं तो किसी दिन ये अवाम हम जैसे उस्ताद और जमूरे को अप्रैल फूल बना देगी बिना अप्रैल महीने के। तो चलो नई जगह मजमा लगाते हैं, डुगडुगी बजाते हैं और अप्रैल फूल बनाते हैं।'

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

साप्ताहिक राशिफल (2 से 8 अप्रैल 2017)