स्कूली बच्चों ने अपनी-अपनी कक्षा की अंतिम और निर्णायक परिक्षाओं के लिए उल्टी गिनती गिननी शुरू कर दी है। कक्षा एक, अध्यापक एक, किताबें एक सी, परन्तु समझ सभी विद्यार्धियों की अलग-अलग...। अधिकतर स्कूलों में एक कक्षा में 40 से 50 विद्यार्थियों की संख्या होती ही है। अध्यापक द्वारा पढ़ाया गया किसी बच्चे को एकदम से ही आ जाता है, किसी को थोड़ा-थोड़ा और किसी को बिलकुल ही समझ नहीं आता। हरेक बच्चे के किसी बात को समझने की क्षमता एक-सी नहीं होती।
मस्तिष्क की कार्यप्रणाली हर किसी में पृथक होती है। यह आनुवंशिक भी हो सकता है, परंतु आनुवंशिक होना अनिवार्य भी नहीं। एक डॉक्टर का बच्चा अच्छा पढ़ा हो, यह कतई आवश्यक नहीं। और एक अनपढ़ का बच्चा अनपढ़ और नासमझ ही हो,यह भी नहीं हो सकता। तो ऐसा क्या है, जो सभी को एक दूसरे से पृथक करता है?
मस्तिष्क को हम अपने शरीर का प्रधानमंत्री बुला सकते हैं। इसकी मर्ज़ी के बिना शरीर का कोई भी अंग काम नहीं कर सकता। एक बच्चे की सोच समझ उसकी परवरिश पर निर्भर करती है। घर का या उसके आसपास का माहौल कैसा है? उसके संगी साथी कैसे हैं? घर में यदि तनाव का वातावरण हो, तो भी बच्चा एकाग्रचित होकर अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाता।
कई बच्चों में आत्मशक्ति और मनोबल बहुत ऊंचा होता है, वे किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्यों को पा लेने में सक्षम होते हैं। कहा जाता है कि शरीर की भांति मानव मस्तिष्क भी 75 प्रतिशत पानी से बना होता है। यदि पानी की कमी हो जाए, तो इसकी कार्यक्षमता भी कम हो जाती है, यानि शरीर के बाकी अंगों पर भी इसका असर देखा जा सकता है ।
मस्तिष्क को और अधिक सक्षम या तेज बनाने के लिए कुछ घरेलु उपाए अपनाए जा सकते हैं। जैसे बादाम की 5 या 6 गिरी पानी में रातभर भिगोकर रखें, सुबह उनका छिलका उतारकर उन्हें पीस लें। गर्म दूध में यह पेस्ट और एक चम्मच शहद मिलाकर बच्चे को पिला दें। एक और उपाए है, कि हरी सौंफ को मिश्री संग पीसकर पाउडर बनाकर रख लें, उसका एक चम्मच रात को गर्म दूध संग खाने को दें।
परीक्षा के इन दिनों में बच्चों के आसपास ही रहें। उन्हें पढ़ाएं, उनसे सुनें, समझाएं, अच्छा पौष्टिक खाना और प्यार दुलार दें।