Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

'रिज़ोल्यूशन लें मानवीयता के आजीवन निर्वाह का'

हमें फॉलो करें 'रिज़ोल्यूशन लें मानवीयता के आजीवन निर्वाह का'
webdunia

प्रज्ञा पाठक

नए साल में रिज़ोल्यूशन की बहुत चर्चा है। रिज़ोल्यूशन अर्थात् संकल्प। कई लोग नए वर्ष के आरंभ पर कई प्रकार के संकल्प लेते हैं, जिनका उद्देश्य कहीं निजी, तो कहीं सामूहिक होता है। स्वयं में कोई सुधार अपेक्षित हो अथवा सामाजिक हित की बात हो, रिज़ोल्यूशन कुछ बेहतर ही परिणाम देते हैं, यदि उनका यथोचित निर्वाह किया जाए।
 
रिज़ोल्यूशन की इस हवा में क्या ही अच्छा हो कि हम सभी मिलकर सिर्फ एक रिज़ोल्यूशन लें - 'मानवीयता के निर्वाह का।'  जो हमें ईश्वर ने बनाया, बस वो ठीक से हो लें। यदि देवता न बन सकें, तो दानव भी ना बनें। 
जो मानवीयता कल/कलियुग के प्रभाव से क्षीण हो चली है, उसे फिर से ऊर्जावान बना लें। 
 
केवल चोर, डाकू, जमाखोर, बलात्कारी और पूंजीपति ही अमानवीय नहीं हैं बल्कि कहीं ना कहीं हममें से अधिकांश ऐसे हैं। यदि हम सड़क पर कराह रहे किसी दुर्घटनाग्रस्त की मदद नहीं करते, तो भी हम अमानवीय हैं। यदि पड़ोस में कोई महिला पति या सास के मौखिक अथवा शारीरिक अत्याचार का निरंतर शिकार हो रही हो और हम मन में दुखी होते हुए भी उन लोगों का 'घरेलू मामला' कह कर मौन रहते हैं, तब भी यह हमारी मनुष्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।

किसी बाल श्रमिक को कहीं काम करते देखने के बावजूद उसके मालिक की सक्षम अधिकारी को शिकायत कर उसके हक में आवाज बुलंद न करना भी अमानवीयता का ही एक प्रकार है। इसी प्रकार अपनी कामवाली की तय छुट्टियों से 1 दिन भी ऊपर होने पर उस गरीब के पैसे काटना भी हममें इंसानियत की कमी को इंगित करता है।

महंगी होटलों में शानो-शौकत से विवाह आदि करना बुरा नहीं है लेकिन साथ-साथ किसी गरीब या अनाथ बच्चे के इलाज में असमर्थता व्यक्त करना क्रूरता है। अस्पतालों में एक अदद बिस्तर या स्ट्रेचर की कमी को झेलते मरीज और एंबुलेंस या चिकित्सक के समय पर ना पहुंचने के कारण दम तोड़ते रोगी अमानवीयता की पराकाष्ठा को दर्शाते हैं, जहां एक या कुछ व्यक्तियों की लापरवाही से किसी का जीवन संकट में पड़ जाता है अथवा समाप्त हो जाता है। बीमार पशुओं को लावारिस मरने के लिए छोड़ देना भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है।
 
ऐसे सैकड़ों और उदाहरण दिए जा सकते हैं, जिनमें हम अपने दैनंदिन जीवन में निरंतर मानवीयता के विरुद्ध आचरण करते हैं, लेकिन स्वयं की इस बहुत बड़ी कमी को महसूस तक नहीं कर पाते हैं।
 
कारण, ऐसा व्यवहार हमारी सोच से आगे बढ़कर हमारे संस्कारों का हिस्सा बन चुका है और यही सबसे अधिक चिंताजनक है। मनुष्यता की इस जड़ता को हम 'व्यावहारिकता', 'बुद्धिमत्ता' या आजकल की भाषा में कह लें, तो 'स्मार्टनेस' समझते हैं। 
 
कितनी विडंबना है कि मनुष्य अपने होने का अर्थ ही भूल चला है। तनिक सोचकर देखिए कि ईश्वर ने हमें हर प्रकार से कितना योग्य और सक्षम बनाया है। हर कार्य को करने के लिए शरीर के साथ बुद्धि की ताकत भी हमें उपलब्ध है। शिक्षा के माध्यम से हमारी समझ और शक्ति में और अधिक वृद्धि हो जाती है।
 
पृथ्वी ग्रह के इतने क्षमतासंपन्न प्राणी एकमात्र हम ही हैं। फिर क्यों नहीं स्वयं को अपनी मूलभूत पहचान से संपृक्त करते? क्यों इस ओर दृष्टि नहीं जाती कि हमारी सभी उपलब्धियां अर्थहीन सिद्ध होंगी जबकि हम नित नई अमानवीयता गढ़ रहे हैं? क्यों इस कलंक से मुक्ति का जज़्बा पैदा नहीं होता है? क्यों मनुष्यता के विरुद्ध आचरण करना हमने इतना सहज मान लिया है कि वही स्मार्टनेस माना जाने लगा है। 
 
वस्तुतः यह गंभीर चिंता का विषय है कि मानवीयता कैसे हमारे संपूर्ण समाज में उसी तरह व्याप्त है जैसे वातावरण में हवा है। हम जो बोएंगे, वही काटना भी पड़ेगा। आज नहीं तो कल इस अमानवीयता के दुष्परिणाम हम या हमारी आने वाली पीढ़ियां भोगेंगी। 
 
बेहतर होगा कि आज से, अभी से संभल जाएं। मन, वचन कर्म से वही सोचें, कहें और करें जो मानवोचित हो ,जिससे किसी का अहित न हो और जो आपको अनुकरणीय बनाता हो।
 
'स्वयं की प्रतिष्ठा का ख्याल स्वयं में 'मानवीयता' की प्रतिष्ठा कर भी रखा जा सकता है'- इस रिज़ोल्यूशन को नए वर्ष में मन की समग्र श्रद्धा से लें और उसका निर्वाह आजीवन करें ताकि जिस मनुष्य रूप में आपने जन्म लिया है, उसी मानव रूप को सही व सार्थक करते हुए आप मृत्यु को प्राप्त हों।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

10 फरवरी 2019 को है सरस्वती पूजन का महापर्व वसंत पंचमी, जानिए क्या करें इस दिन