कल हिंदी पत्रकारिता दिवस था. बधाई लेने और देने के बीच आज जेहन में आया कि हिंदी पत्रकारिता कितनी दरिद्र हो गई है. आज लोकसभा का चुनाव प्रचार थम गया है, और न्यूज चैनल्स पर सन्नाटा पसरा पड़ा है. कल तक तमाम बयानबाजी थी. तू चोर मैं सिपाही था. लेकिन आज कुछ भी नहीं है. ज्यादातर जगह सास बहू चल रहा है. खबरों का टोटा है.
वेबसाइट्स में हम ऑफ बीट समेत और भी दूसरे विषयों पर खबरें कर रहे हैं, स्टोरीज कर रहे हैं, सोशल मीडिया पर ट्वीट् से खबरें जनरेट कर रहे हैं. अखबार भी अपना गंभीर चरित्र बनाए हुए हैं. लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पूरी तरह से भूखी और नंगी हो चुकी है. बहुत आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मीडिया (न्यूज चैनल) के पास लोकसभा चुनाव के अलावा कोई ख़बर नहीं है. टीवी चैनल्स के पास नेताओं की लफ्फासी दिखाने सुनाने के अलावा कुछ नहीं बचा है. जबकि पत्रकारिता की धौंस जमाने में सबसे आगे यही स्टूडियो वीर होते हैं.
दुनिया गर्मी से हलाकान है. जूनागढ़ में गिर के जंगलों में शेर गीली मिट्टी चाट कर प्यार बुझा रहे हैं. कई तरह के पक्षी पेड़ों से गिरकर मर रहे हैं. टेंपरेचर की वजह से हिमाचल में धमाकों के साथ सड़कें फट रही हैं. यूपी में ऐसी में धमाके हो रहे हैं, रेफ्रिजरेटर के कंप्रेसरों में ब्लास्ट हो रहे हैं. बिहार में बच्चे बेहोश होकर गिर रहे हैं. दावा किया जा रहा है कि देशभर में पिछले 24 घंटों गर्मी से 270 मौतें हो चुकी हैं. देश के कई शहरों में जल के लिए त्राहिमाम है. देश की राजधानी झुलस और जूझ रही है.
कहीं नदियों की बात नहीं है. पहाड़ों की बात नहीं है. पेड़ों और बगीचों की बात नहीं है. कोई इन्वेस्टिगेश नहीं, कहीं घोटालों की बात नहीं.
मीडिया जगत में हिंदी पत्रकारिता दिवस की बधाई का तांता लगा हुआ है. बुद्धिजीवी लेखक पत्रकारिता पर अपने लेख लिखकर प्रकाशन के लिए भेज रहे हैं.
सोच रहा हूं भूखी और नंगी होती पत्रकारिता की एक कड़वी बधाई मैं भी दे दूं.