Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

जाने कितनी पीढ़ियां गवाह होंगी इस होली की….

हमें फॉलो करें जाने कितनी पीढ़ियां गवाह होंगी इस होली की….
, शनिवार, 27 मार्च 2021 (13:44 IST)
ऋतु मिश्र, 
बसंत मनाने को लेकर मन जितना झूम रहा था पिछले कुछ दिनों से फागुन पर छाया पतझ़ड़ उतना ही उदास कर रहा था। बच्चों में फागुन को लेकर अलग ही उत्साह था कि पिछले साल तो होली डर में मनी। नाप तौल के खेली। कम से कम इस साल तो आसमान का नीलापन छुपाते सतंरंगी गुबार को सुकून से देख पाएंगे। इस बार साल का आगाज़ तो अच्छा हुआ, लेकिन धीरे- धीरे जो स्थितियां बदलीं वो बदलती ही चली गईं।

जनता और प्रशासन का द्वंद्व, बयानबाजी और कुछ रवायतों को देखने और महसूस करने का तरीका। यानी मन स्थिर होने का नाम ही नहीं ले रहा। बहुत कुछ ऐसा जो बस घट रहा है और हम मूक गवाह बने जा रहे हैं उन सभी चीजों के। हिरण्यकश्यप और प्रहलाद प्रसंग ने जिस होलिका दहन की शुरुआत की वहां हम प्रसंग को भुलाकर सिर्फ रिवाज़ की दुहाई दे रहे हैं। वहीं राधा के रंग को लेकर कन्हैया ने यशोदा मां से जो शिकायत की थी कि राधा इतनी गोरी और मैं काला क्यों हूं के जवाब में यशोदा मां ने कहा था जो मन करे उस रंग का कर दो राधा को और कन्हाई ने सारे रंग मल दिए थे राधा के चेहरे पर। यह एक चिरौरी थी अपनी सखी के साथ। बस प्रश्‍न यही उठता है कि उल्लास के इस पर्व को प्रतिष्‍ठा का प्रश्न क्यों बनाया जाए?

सालभर पहले जिस बीमारी ने हमारे आसपास के परिवारों, रिश्तेदारों के जीवन में जो रिक्त स्थान किया क्या वे अपना दु-ख भुलाकर रंगों की मस्ती में झूमने को तैयार हो पाए होंगे। क्या वे परिवार जिनकी रोजी– रोटी फिर से जमने को ही हुई थी कि उन्हें अपना तामझाम समेटना पड़ा वे त्योहार की रंगीनियत को जज्ब कर पाएंगे? और इस बार सबसे दु:खद जो बात है वो ये कि कोरोना से पीड़ित मरीजों में छोटे बच्चों के संक्रमित होने के मामले सबसे ज्यादा हैं। और एक 10 साल के छोटे बच्चे की कोरोना संक्रमण से मृत्यु के समाचार ने ऐसे ही कई सवालो से परेशान कर दिया।

क्या वे परिवार जिनके यहां अब भी 12-12 सदस्य कोरोना संक्रमित हैं वे कैसे होली मना पाएंगे। और हम ऐसे लोगों की संख्या और क्यों बढ़ाना चाहते हैं जिनके यहां अगले साल फिर पहली होली मने। यही मनहूस बीमारी इसका कारण बने। क्या हम इतना संवेदना विहीन हो गए हैं कि पड़ोस में परिवार का कोई सदस्य जीवन-मृत्यु के संघर्ष से जूझता रहे और हम रंगों से गलबहियां करें।

अचानक बेटे ने टीवी ऑन कर वागले की दुनिया लगा दिया। मैं अपने काम में लगी थी, लेकिन कानों मे कुछ डायलॉग्स सुनाई दे रहे थे। और अंतिम सीन आते आते मैं टीवी के सामने थी। जहां हर कोई अपनी पसंद के रंग के फूलों के पौधे चुन रहा था। गरज़ ये थी कि इन्हें सोसायटी में लगाना है। और इसका मकसद भी साफ। कुछ ऐसा करना जो इस दौर में तो किसी को परेशान करे ना बल्कि आने वाली कई पीढ़ियां इन्हें देखकर इस सोच पर गर्व कर सकें।

एक विचार था। एक रचनात्मक विचार। ठीक है हम आपस में होली भले ही ना खेल पाएं, लेकिन इस बार की होली हमारी धरती मां के साथ। जो हमें खुश होने के, हमारे सपने रंगीन होने की मूक गवाह बनती है हमेशा। इस बार उसके साथ होली। पलाश के केसरिया, हरश्रृंगार के सफेद और नारंगी तो चमेली-चंपा के धवल रंगों के साथ मदमस्त खुशबू लिए खूबसूरती।

एक बार सोच के देखिए जब लाल, पीला, गुलाबी, कामिनी, सफेद रंगों का बोगनबेलिया एक साथ इठला इठला कर दूर तक चटख रंगों से आंखों में सुकून देगा। जब –जब भी ये फूल खिलेंगे पिछले 12 महीनों की उदासी और दु:ख पर थोड़ा मरहम लगाएंगी। आने वाली की पीढ़ियां इनकी गवाह होंगी। और हम भी कहीं दूर आसमान में बैठे चंपा के चटखने और हर सिंगार के झरने पर एक मुस्कुराहट तो दे ही दिया करेंगे।

(इस आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक की निजी अभिव्‍यक्‍ति और राय है, बेवदुनिया डॉट कॉम से इससे कोई संबंध नहीं है)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Holi 2021: होली पर जमेगा रंग बस इन 10 बातों का रखें ख्‍याल