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इस अशोभनीय स्थिति का अंत हो तो कैसे?

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अवधेश कुमार

, शुक्रवार, 22 अगस्त 2025 (11:27 IST)
यह अभूतपूर्व अशोभनीय और अनेक अर्थों में अस्वीकार्य व आपत्तिजनक स्थिति है। देश के कुछ नेता और राजनीतिक दल चुनाव आयोग के विरुद्ध संसद से सड़क तक अभियान चलाएं इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी।

अगर आईएनडीआईए सांसदों की बैठक में चुनाव आयोग के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव जैसा प्रस्ताव लाने की बात उठी तो एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में इससे डरावनी स्थिति कुछ हो ही नहीं सकती। हालांकि इस सत्र का अवसान हो रहा है और इसमें प्रस्ताव आ नहीं सकता। 
 
दूसरे, प्रस्ताव आया भी तो सदस्य संख्या के हिसाब से यह गिर जाएगा। किंतु इस पर विचार होना ही अंदर से हिला देने वाला है। चुनाव आयोग ने पत्रकार वार्ता में स्पष्ट बोला है कि या तो जो आरोप लगा रहे हैं उसका प्रमाण दें नहीं तो क्षमा मांगे। दूसरी ओर बिहार में वोट अधिकार यात्रा के नाम से यात्रा कर रहे राहुल गांधी ने सासाराम में यात्रा आरंभ करते हुए कहा कि न हम चुनाव आयोग से डरने वाले हैं और न तेजस्वी यादव। 
 
राहुल गांधी और उनके रणनीतिकारों- सलाहकारों तथा इनके पिछले लंबे समय से चुनाव आयोग और संपूर्ण चुनाव प्रणाली की साख पर चोट करने के लगातार अभियानों पर दृष्टि रखने वाले जानते हैं कि उनकी ऐसी ही प्रतिक्रिया आती रहेगी। चुनाव आयोग द्वारा पहले अपने आरोपों पर शपथ पत्र मांगने के विरुद्ध उनकी प्रतिक्रिया थी कि मुझे शपथ पत्र देने की आवश्यकता नहीं। 
 
उन्होंने यह तर्क दे दिया कि मैंने संविधान की शपथ लिया है तो उससे बड़ा शपथ क्या हो सकता है। साफ है कि जब वह बार-बार चुनाव आयोग को भाजपा का एजेंट बता रहे हो और आईएनडीआईए के घटकों से उन्हें समर्थन भी मिल रहा हो तो वे क्यों पीछे हटेंगे? भारतीय राजनीति में संवैधानिक संस्थाओं के प्रति गरिमा और मर्यादा का भाव होता तो चुनाव आयोग के विरुद्ध इस तरह की भाषा प्रयोग नहीं की जाती।
 
राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर सबसे बडा हमला करते हुए अपने 1 घंटे 11 मिनट के वक्तव्य में 21 पृष्ठों के पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन से साबित करने की कोशिश की कि चुनाव आयोग भाजपा की मदद करने के लिए मतदाता सूची में जबरदस्त गड़बड़ी करता है और जहां भाजपा को चुनाव में पराजित होना चाहिए वहां मतदाताओं की फर्जी संख्या के आधार पर जीत दिला देता है। 
 
चुनाव आयोग के विरुद्ध नई लड़ाई का आरंभ उन्होंने बिहार में 17 अगस्त से 2 सितंबर तक की वोट अधिकार यात्रा से कर दिया। इसका फोकस ही चुनाव आयोग और उसके द्वारा आरंभ एसाईआर यानी विशेष मतदाता पुनरीक्षण अभियान है। राहुल गांधी का पूरा अभियान सुनियोजित है।

कांग्रेस पार्टी द्वारा एक वेब पोर्टल बनाकर लोगों से कहा गया है कि कि चोरी के विरुद्ध जवाब दें तथा डिजिटल मतदाता सूची के मांग का समर्थन करें। कहने का तात्पर्य कि लंबी तैयारी से कांग्रेस पार्टी ने इसे आरंभ किया है। चूंकि इस तरह कभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को चुनाव आयोग के विरुद्ध आरोप लगाते और अभियान छेड़ते नहीं देखा गया इसलिए यह निष्कर्ष निकालना कठिन है कि आखिर इसका परिणाम क्या आएगा? इसका अंत कैसे होगा? इसका अंत होगा या नहीं?
 
आखिर चुनाव आयोग क्या करे? राहुल गांधी ने कर्नाटक के मध्य बेंगलुरु संसदीय क्षेत्र के महादेवपूरा विधानसभा का अपने दृष्टि से आंकड़ा दिया उस पर पहले ही कर्नाटक चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण आ चुका है। उन्होंने पांच विधानसभा में जीतने और एक में भाजपा के वोट बढ़ जाने से पराजय को चुनाव आयोग की चोरी बता दिया। 
 
उनके अनुसार दोनों पार्टियों को मिले वोटों का अंतर 32,707 था लेकिन महादेवपुरा की गणना में अंतर 1,14,046 का रहा। तो 1 लाख से ज्यादा वोटों की चोरी हुई। उन्होंने महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों जगह भाजपा की बढ़त के लिए चुनाव आयोग को ही जिम्मेदार ठहरा दिया। पहले कर्नाटक चुनाव आयोग ने एक महिला मतदाता शकुन रानी द्वारा दो बार वोट डालने के आरोपों का खंडन करते हुए बताया कि आपने जो दस्तावेज दिए उसको मतदान अधिकारी के हस्ताक्षर वाले नहीं थे, आपको कहां से यह जानकारी मिली बताएं? 
 
अन्य मतदाता भी सामने आए तथा बताया कि वह उन्होंने एक ही जगह वोट डाला है। राहुल गांधी ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया। उनको उत्तर देना भी नहीं है। उनको पता है कि महाराष्ट्र के धुले लोकसभा सीट पर। भाजपा भी पांच विधानसभा में आगे थी लेकिन मालेगांव सेंट्रल में कांग्रेस को 1 लाख 94000 वोट आ गए और वह जीत गई। राहुल गांधी इन तथ्यों से अप्रभावित होकर चुनाव आयोग के विरुद्ध अपने अभियान पर कायम हैं। उनके पहले के आरोपों पर भी चुनाव आयोग ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर उत्तर दिया।
 
एक संवैधानिक संस्था की सीमाएं होती है और वह यही कर सकता था। चुनाव आयोग ने वक्तव्य जारी किया कि आप फर्जी मतदाताओं का आरोप लग रहे हैं तो नियम के अनुसार शपथ पत्र दीजिए ताकि निर्धारित प्रक्रिया से जांच की जाए। आयोग ने नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया तो राहुल गांधी सारे विपक्षी सांसदों को लेकर जाने लगे। यह क्या है? 
 
चुनाव आयोग के पास कोई विकल्प बचा नहीं था तभी उसे पत्रकार वार्ता आयोजित कर उत्तर देना पड़ा। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने एक-एक प्रश्न का उत्तर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि किसी मतदाता का नाम दो जगह  होने का अर्थ नहीं है कि उसने दोनों जगह मतदान किया ही। इसका अर्थ था कि मतदाता सूची बनाने वालों से कई बार गलतियां हो सकती हैं। यह सच है। अपवादस्वरूप पूरे देश में ऐसे मतदाता होंगे जिनके नाम दो स्थानों पर हो सकते हैं। 
 
एक जगह पहले नाम रहा हो और उन्होंने वह जगह छोड़ने के बाद दूसरी जगह भी मतदाता के नाते पंजीकरण कराया हो और पहले वाले को रद्द नहीं कराया हो। कुछ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जो अवसर मिलने पर दोनों जगह मतदान कर दें। किंतु चुनाव आयोग जानबूझकर योजनापूर्वक ऐसा कर रहा है और वह भी केवल भाजपा का वोट बढ़ाने के लिए यह आरोप भयानक है।

अगर चुनाव आयोग किसी पार्टी के पक्ष में है तो हमारी पूरी चुनाव प्रणाली ही पतित है और इसका अंत होना चाहिए। बिना जन आधार के भाजपा चुनाव आयोग द्वारा भ्रष्ट प्रणाली से सत्ता प्राप्त कर रही है तो शासन पर उसकी नैतिक अधिकारही समाप्त हो जाता है। इस तरह यह जघन्य आरोप है। इससे हमारी पूरी लोकतांत्रिक प्रणाली है की साख ही प्रश्नों के घेरे में आ जाती है। 
 
इस दृष्टि से देखें तो राहुल गांधी और उनके सुर में ताल मिलाते विपक्ष के इस अभियान की भयानक गंभीरता समझ में आती है। कहा जा रहा है कि आरोप चुनाव आयोग पर है और जवाब भाजपा दे रही है। चुनाव आयोग भी जवाब दे रहा है।

गहराई से देखें तो केंद्रीय सत्ता में होने के कारण आरोप भाजपा पर ही है। आखिर चुनाव आयोग ऐसा कर रहा है तो उसके पीछे कुछ लालच या फिर सत्ता का दबाव ही हो सकता है। यानी भाजपा सत्ता पर कब्जा करने के लिए चुनाव आयोग में शीर्ष से नीचे तक ऐसे लोगों की नियुक्तियां करता है जो उनके लिए ही काम करे और न करने वालों के विरुद्ध परोक्ष तरीके से कदम उठाता है। 
 
किसी पार्टी पर यह आरोप लगाए कि उसकी सत्ता तो केवल चुनाव आयोग द्वारा वोट चोरी करने या लूटने के कारण है तो वह उत्तर देगा या नहीं? दूसरे, सरकार मानती है कि सारे आरोप आधारहीन एवं गलत इरादे से लगाए जा रहे हैं तो उसका स्वाभाविक दायित्व संवैधानिक संस्थाओं पर लगने वाले आरोपों के विरुद्ध खड़ा होना तथा इसका अंतिम सीमा तक खंडन करना है। सत्तासीन पार्टी या घटक द्वारा ऐसा न करने का अर्थ सारे आरोपों को मौन रहकर स्वीकार करना माना जाएगा। 
 
चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट नहीं है कि वह अपनी ओर से संज्ञान लेकर मुकदमा शुरू कर दे और सजा भी दे दे। लेकिन आरोप लगाना और खंडन करना भी अंतहीन नहीं हो सकता। प्रश्न यही है कि आखिर इस अशोभनीय स्थिति का अंत कैसे हो? उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियां भी राहुल गांधी एवं विपक्ष को नहीं रोक पा रही। इसलिए स्थिति ज्यादा विकट है।

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