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इन भारत विरोधियों को सजा अवश्य मिले

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अवधेश कुमार

अगर यह कहें कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे, तो शायद कई लोग इसे समुचित तुलना नहीं मानेंगे। लेकिन अलगाववादी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस द्वारा पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा से धन लेने का खुलासा होने के बाद हुर्रियत नेताओं के चेहरे से उड़ती हवाइयां यही बता रहीं हैं। चूंकि यह खुलासा हुर्रियत के ही सैयद अली शाह अली गिलानी धड़े के प्रांतीय अध्यक्ष नईम खान द्वारा एक स्टिंग में किया गया, इसलिए कोई इसे केवल आरोप कहकर नहीं टाल सकता। खान रिपोर्टर से यह कहते नजर आए थे कि पाकिस्तान से आने वाला पैसा सैकड़ों करोड़ से ज्यादा है, लेकिन हम और ज्यादा की उम्मीद करते हैं। तमतमाए गिलानी ने नईम खान को हुर्रियत संगठन से निलंबित कर दिया। लेकिन क्या इतने भर से मामला निपट जाता है? 
 
नईम खान नेशनल फ्रंट के अध्यक्ष हैं। उन्होंने एक पत्रकार वार्ता में कहा कि भारतीय मीडिया का एजेंडा कश्मीर की आजादी की लड़ाई को बदनाम करना है। वाह भाई क्या बात है! क्या मीडिया आपकी देश तोड़ने की लड़ाई में मदद करे और आतंकवाद को मदद करने के लिए आतंकवादी संगठन से धन लेते हैं, इसे छिपा दे? नईम खान कहते हैं कि हम इस संघर्ष के पीड़ितों की मदद के लिए स्थानीय स्तर पर फंड जुटाते हैं। कश्मीर विवाद में पाकिस्तान एक बुनियादी पक्ष है और पड़ोसी देश कश्मीर आंदोलन का समर्थन करता है। कोई भी उनके इस कथन का अपने अनुसार अर्थ लगा सकता है? क्या नईम यह कहना चाहते हैं कि पाकिस्तान उनका समर्थन करता है, और वह समर्थन धन के रूप में भी आता है? अगर यह भी सच है तो इसे भयानक अपराध माना जाएगा। धन वैध तरीके से नहीं आता होगा। वह हवाला या अन्य तरीके से ही आता होगा और उसका उपयोग समाजसेवा में नहीं बल्कि भारत विरोधी गतिविधयों में होता होगा। 
 
हालांकि हुर्रियत के ज्यादातर नेता पाकिस्तान के पारिश्रमिक पर काम करते हैं। वे उसके इशारे पर आवाज करने वाले हैं यह तथ्य आम भारतीय के लिए कोई रहस्य नहीं रहा है। कुछ ही दिनों पहले एक चैनल ने छानबीन करके बताया था कि किस नेता को पाकिस्तान से कितना धन आया है, हुर्रियत कार्यालय के लिए कितना धन मिला है। इसमें शब्बीर शाह के नाम 70 लाख धन एकमुश्त आने की बात थी। केन्द्र सरकार तभी से गंभीर हो गई थी। स्टिंग आने के बाद केन्द्र सरकार पूरी तरह गंभीर हो गई है और आतंकवादी गतिविधियों की जांच करने वाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी या एनआईए को इसकी जांच सौंप दिया है। विदेश से धन आने का मामला है तो यह प्रवर्तन निदेशालय का भी विषय हो जाता है। वह भी जांच करेगी। 
 
तो पहले और आज के सरकारी आचरण में यह एक मौलिक अंतर है। एक समय था जब हुर्रियत के भारत तोड़ो एजेंडे को जानते हुए, उनकी पाकिस्तान परस्ती भारत विरोधी व्यवहार को देखते हुए भी पता नहीं किस नीति के तहत उनका सत्ता द्वारा महत्व मिलता था। प्रदेश की सत्ता को तो इनके प्रति नरम कोना रहता ही था, केन्द्र सरकारें भी समय-समय पर इनका आवभगत करती थी। नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक एवं रॉ तक में उनसे सहानुभूति प्रकट करने वाले रहे हैं। कश्मीर मामले के समाधान के लिए इनको एक पक्ष मानकर इनसे बातचीत भी हुई। हालांकि ये पाकिस्तानपरस्त अपने एजेंडे से कभी हटे नहीं, बावजूद इसके आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो इनसे बातचीत की वकालत कर रहे हैं। इनमें जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती भी हैं। फारुख अब्दुल्ला तो पिछले कुछ समय से हुर्रियत की अर्धभाषा ही बोलने लगे हैं। वे तो पाक अधिकृत कश्मीर के बारे में यहां तक हमें कह गए कि यह आपके बाप का है क्या?
 
लेकिन यह ऐसा मामला है जिसमें चाहते हुए भी मेहबूबा मुफ्ती या फारुख अब्दुल्ला जैसे कश्मीर की मुख्यधारा के माने जाने वाले नेता, हुर्रियत के पक्ष में खड़े नहीं हो सकते। यह आतंकवाद का मामला है। वैसे भी हाफिज सईद लश्कर ए तैयबा का संस्थापक है। जब पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने इसे प्रतिबंधित किया, तो उसने जमात उद दावा नाम से काम करना आरंभ किया। हाफिज सईद से हुर्रियत नेताओं के संबंध बिल्कुल साफ रहे हैं। वह कश्मीर के संघर्ष को मदद करने की बात खुलेआम करता रहा है। इसलिए वह इन्हें धन भी प्रदान करता होगा, इसमें आश्चर्य की कोई बात होनी नहीं चाहिए। लश्कर ए तैयबा यदि हुर्रियत को धन दे रहा है तो फिर अपनी आतंकवादी गतिविधियों में मदद करने के लिए ही। कई तरीकों से ये उनकी मदद करते होंगे। उन्हें आश्रय देकर, उनको हमले की जगह का रास्ता बताकर, आवश्यकता होने पर उन्हे संसाधन उपलब्ध कराकर,अगर सुरक्षा बलों ने उन्हें घेर लिया तो उन्हें बचाकर बाहर निकालने के लिए जनता की भीड़ की दीवार खड़ा करके, उन पर पत्थर से वार करवाकर और वे मार डाले गए तो उसके जनाजे में भारी भीड़ एकत्रित करके ताकि दूसरे को भी लड़ने की प्रेरणा मिलती रहे....।  
 
यह सब हमारी आंखों के सामने दिखाई देता रहा है। लेकिन ये पाकिस्तान के दलाल इस बार जिस तरह से नंगे हुए हैं वैसा पहले कभी नहीं हुए। इनके पास कोई जवाब ही नहीं है सिवाय इसके, कि पहले भी ये हमारे खिलाफ जांच कर चुके हैं लेकिन कुछ नहीं मिला। एनआईए अगर पूछताछ करेगी तो वह कश्मीर पुलिस नहीं है कि आपके साथ नरमी बरतेगी। शुरुआती पूछताछ तो नईम से लेकर कुछ अन्य नेताओं से होंगी, लेकिन उसके बाद गिलानी, गाजी जावेद बाबा और फारुख अहमद डार ऊर्फ बिट्टा कराटे से भी सवाल-जवाब करेगी। अगर इनसे कुछ निकला तो फिर यासिन मलिक सहित पूछताछ की चपेट में आएंगे। प्रवर्तन निदेशायल अपनी अलग जांच करेगा। पिछले साल आठ जुलाई को सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद स्कूलों को जलाए जाने की घटनाओं के सिलसिले में एकत्रित सबूतों की भी एनआईए की टीम समीक्षा करेगी। एनआईए की प्राथमिक जांच में सामने आया है कि अलगाववादियों को कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों पर पथराव करने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और स्कूलों तथा अन्य सरकारी प्रतिष्ठानों को जलाने समेत विध्वंसक गतिविधियों के लिए पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख हाफिज सईद से धन मिल रहा है।
 
एनआईए क्या करेगी यह समय बताएगा, लेकिन केन्द्र सरकार के कठोर रुख को देखते हुए इनके लिए आसार अच्छे नहीं हैं। केन्द्र ने बाजाब्ता उच्चतम न्यायालय में शपथ पत्र देकर साफ कर दिया कि वह भारतीय संविधान में विश्वास न करने वाले किसी समूह या नेता से बातचीत नहीं करेगी। तो सरकार हुर्रियत को वैसे ही महत्वहीन बना चुकी है। अब बारी है उन पर करारा वार करने की। यह वार तरीके से होना चाहिए। तरीका यही है कि उनको सबूत सहित पाकिस्तान से धन लेकर कश्मीर में अशांति, हिंसा और अस्थिरता फैलाने वाला खलनायक साबित कर दिया जाए। उसके बाद उनको सजा देना आसान हो जाएगा। वैसे भी इस समय सेना के लेफ्टिनेंट 23 वषीर्य उमर फयाज की आतंकवादियों द्वारा हत्या से माहौल थोड़ा इनके खिलाफ हुआ है। हुर्रियत नेताओं द्वारा अपने परिवार के सदस्यों को सुरिक्षत बाहर रखने या उच्च शिक्षा दिलाने तथा आम कश्मीरी जवानों के हाथों में पत्थर या पाकिस्तान झंडा देने के खुलासे के बाद इनकी छवि पहले से ज्यादा खराब हुई है। 
 
सरकार से सुविधा लेने के मीडिया के खुलासे ने भी देश भर में इनकी छवि को कमजोर किया है। अगर सरकार ने ऐसे में दृढ़ता दिखाई तो इनको आज तक के किए अपराधों की सजा दी जा सकती है। देश तो यही चाहता है। ज्यादा से ज्यादा दक्षिण कश्मीर के चार-पांच जिलों में अभी भी इनके बचे हुए जो समर्थक हैं वे थोड़ी अशांति फैलाएंगे जिसको नियंत्रित किया जा सकता है। किंतु एक बार ये निपट गए तो कश्मीर समस्या का समाधान आसान हो जाएगा।

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