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Hyderabad Encounter : इंसाफ का एनकाउंटर या 'प्‍लेजर ऑफ पनिशमेंट'

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नवीन रांगियाल

क्या यही न्याय की नई परिभाषा है? क्या इसे न्याय कहा जाना चाहिए? कहीं यह पाशविकता के बदले की गई पाशविकता तो नहीं? सच क्या है? अंधेरे में सवाल तैर रहे हैं...उत्तर के बिना हम जश्न में मशगूल हैं... 
 
दिल्‍ली की सड़कों पर प्रदर्शन और राजनीतिक जुलूस के स्‍वागत के दृश्‍यों के अलावा शुक्रवार की सुबह टीवी चैनल्‍स पर देश एक नई उभरती हुई तस्‍वीर देख रहा है। हैदराबाद पुलिस के गले में हार-मालाएं पहनाए जा रही हैं और उनके ऊपर अबीर-गुलाल उड़ाया जा रहा है। स्‍कूल जाती हुई लड़कियां अपनी बसों की खिडकियों से पुलिस का स्‍वागत कर उन्‍हें धन्‍यवाद दे रही हैं। 
 
भावुकता से भरे इस पूरे गुबार के बीच जो सबसे बड़ा सवाल है, वो यह है कि हैदराबाद में हुए पुलिस एनकाउंटर का यह दृश्‍य न्‍याय का नया प्रतीक बनकर सामने आया है। जिसे कहा जा सकता है 'इंसाफ का एनकाउंटर'...
 
गोली मार दी… अच्‍छा हुआ… क्‍या देश में अब न्‍याय का यह नया नारा होगा। कानून-व्‍यवस्‍था की एक नई पंचलाइन। एनकाउंटर। 
 
दुष्‍कर्म के आरोपियों के एनकाउंटर के बाद हैदराबाद पुलिस चर्चा के केंद्र में है। वो फेसबुक और ट्विटर पर ट्रेंड कर रही है। पुलिस अभी हीरो है, प्रजा उसे सलाम कर रही है, लेकिन इस तस्‍वीर के गर्भ में पीछे कहीं बेहद चुपचाप तरीके से एक नई खतरनाक भावुकता ट्रेंड कर रही है, जो फिलहाल किसी को नजर नहीं आ रही है। लेकिन एक खुफिया तरीके से उसने अपनी भावुक जगह बना ली है। 
 
एक नंगी और छीछालेदर भावुकता। जो सिर्फ सोशल मीडिया के इर्द-गिर्द मंडरा रही है। यह भावुकता वहीं उठी है, उसका गुबार वहीं पसर रहा है और कुछ वक्‍त के बाद वहीं विलुप्‍त हो जाएगी, लेकिन इस नए भारत के भविष्‍य में एक तालिबानी बीज को बो जाएगी, जिसकी फसलें काटते-काटते हमारी धार कुंद हो जाएगी। न्‍याय-व्‍यवस्था से बाहर आकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके इस ट्रेंड को इस उदाहरण से समझिए।

बलात्‍कार एक पाशविक कृत्‍य है, जो दिल्‍ली में निर्भया के साथ हुआ वो भी और जो हैदराबाद में दिशा के साथ हुआ वो भी। और वो तमाम दुष्‍कर्म जो छोटी बच्‍चियों के साथ किसी गली, मोहल्‍ले और अंधेरे में किसी रेल की पटरी पर हुए वो भी। इन कृत्‍यों के लिए उन्‍हें किसी भी कीमत पर क्षमा नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन जिस तरह से बलात्‍कारी अपनी पा‍शविकता का शिकार हुए कुछ वैसे ही शिकार होने की शुरुआत हमारे साथ भी हो चुकी है।
 
दुष्‍कर्म के चार आरोपी अपनी ही आंखों के सामने अंधे हुए, हवस की एक क्षणिक चरम का शिकार हुए और अंजाम हुआ एक लड़की से बलात्‍कार के बाद उसकी जघन्य हत्या। हम भी कुछ इसी तरह मौत का क्षणिक सुख भोगना चाहते हैं, जो अब तक के तमाम बलात्‍कारियों ने आवेश में आकर भोगा। उन्‍होंने सेक्‍स का सुख भोगना चाहा था, हमने एक त्‍वरित मौत का। मृत्यु का क्षणिक सुख जो एनकांउटर की शक्‍ल में हमने एंजॉय किया। 
 
प्‍लेजर ऑफ सेक्‍स और प्‍लेजर ऑफ पनिशमेंट एक ही समाज के पहलू। और दोनों ही कानूनी दायरे से बाहर है। अगर किसी लड़की के साथ गैंग रेप कर उसे जिंदा जला देना पाशविक और कानूनी दायरे से बाहर है, तो उसके आरोपियों को अदालत भेजे बगैर उनके एनकाउंटर और पनिशमेंट को एंजॉय करना सोशल आर्गेज्‍म ही है। इंसाफ का यह एनकाउंटर दरअसल पब्‍लिक ऑर्गज्‍म है।  

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