सऊदी अरब इस्लामिक देश है,फिर भी भारत में भारी निवेश करता है और पाकिस्तान की हैसियत उसके लिए कुछ नहीं है। दरअसल भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बहुत गहरा है और पाकिस्तान इस बात को बखूबी जान चुका है कि जिन इस्लामिक देशों के बूते वह भारत को परेशान करने का ख्वाब देखता था,वह धूल-धूसरित हो चुका है।
यह यथार्थवादी दुनिया है जहां आर्थिक फायदों से दोस्ती के रास्ते तय किए जाते हैं और पाकिस्तान यह भी बखूबी जानता है कि जब अरबों डॉलर के व्यापार,तेल,निवेश,हथियार या टेक्नोलॉजी की बात आती है तो धर्म पीछे छूट जाता है। यह भी दिलचस्प है कि भारतीय मुसलमानों को खाड़ी के देशों में ज्यादा तरजीह मिलती है क्योंकि वे अपेक्षाकृत शांत और आधुनिक शिक्षा प्राप्त होकर बेहतर अंग्रेजी और तकनीक का ज्ञान रखते हैं।
भारत मुस्लिम आबादी के लिहाज से शीर्ष तीन देशों में होने के बावजूद ओआईसी का सदस्य नहीं है लेकिन इसके बाद भी इस्लामिक देश भारत को एक भरोसेमंद और व्यावहारिक पार्टनर मानते हैं। अरब के ताकतवर मुस्लिम देश भारत के सबसे अहम साझेदार हैं। 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सऊदी अरब का सर्वोच्च नागरिक सम्मान अब्दुल अजीज़ सैश दिया गया था।
वहीं 2017 में ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक कॉर्पोरेशन यानी ओआईसी के पूर्ण अधिवेशन में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया और पाकिस्तान ने विरोध किया तो ओआईसी ने उसे दरकिनार कर दिया। उस समय पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने आपत्ति जताई थी और कहा था कि अगर भारत इस अधिवेशन में आएगा तो वह इसमें शामिल नहीं होंगे। इस धमकी के बावजूद ओसीआई ने अपना न्योता वापस नहीं लिया और हुआ ये कि इस अधिवेशन में पाकिस्तान शामिल नहीं हुआ लेकिन सुषमा स्वराज ने अधिवेशन को संबोधित किया था।
2021 में तो इस्लामिक देशों ने पाकिस्तान को ऐसा झटका दिया जिसकी उसने कल्पना तक नहीं की होगी। पाकिस्तान एवं सऊदी अरब द्वारा आयोजित इस्लामिक सहयोग संगठन के सदस्य देशों के विदेश मंत्री परिषद की 17वीं विशेष बैठक इस्लामाबाद में हो रही थी। उसी दिन भारत में अफ़ग़ानिस्तान में संकट एवं क्षेत्रीय संबंधों के मुद्दे पर बातचीत होना प्रस्तावित थी। इस्लाम बाहुल्य मध्य एशियाई देशों किर्गिस्तान,ताजिकिस्तान,कजाकिस्तान,तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान के विदेश मंत्री पाकिस्तान को झटका देकर और इस्लामाबाद को छोड़कर भारत की बैठक में शामिल हुए।
25 सितंबर 1969 को ओआईसी की स्थापना हुई थी। शुरुआत में पाकिस्तान इस्लामिक देशों के सबसे बड़े संगठन का इस्तेमाल भारत विरोध के लिए करता था। लेकिन वैश्वीकरण और उदारीकरण के बाद सबकुछ बदल गया है। सऊदी अरब और खाड़ी के ज़्यादातर देशों के लिए विकास और व्यापार मायने रखता है और भारत इस लिहाज से दुनिया के तमाम देशों की पसंदीदा लिस्ट में शुमार है।
भारत के डेढ़ करोड़ अनिवासी भारतीयों में से तकरीबन 66 फीसदी से अधिक संयुक्त अरब अमीरात,सऊदी अरब,कुवैत,कतर,ओमान और बहरीन में रहते हैं। 2021 में भारत और सऊदी अरब ने अल-मोहद अल-हिंदी अभ्यास नामक अपना पहला नौसेना संयुक्त अभ्यास शुरू किया। सऊदी अरब में भारतीय निवेश लगभग 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर है जो आईटी, दूरसंचार, फार्मा और निर्माण जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित है। 2023-24 में सऊदी अरब भारत का तीसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का स्रोत था जो भारत के कुल कच्चे तेल आयात का साढ़े चौदह फीसदी के करीब था।
2017 में खेल गतिविधि के रूप में मान्यता मिलने के बाद योग ने सऊदी अरब में लोकप्रियता हासिल की। 2018 में सुश्री नौफ अल-मरवाई को सऊदी अरब में योग को बढ़ावा देने के लिए भारत के द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। सऊदी अरब में ढाई मिलियन की संख्या वाला भारतीय समुदाय सऊदी अरब में सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है और यह सबसे पसंदीदा समुदाय है। सऊदी अरब के विजन 2030 में विविधीकरण का लक्ष्य रखा गया है तथा सौर और हरित हाइड्रोजन में भारत की विशेषज्ञता संयुक्त नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए द्वार खोलती है।
इस्लामिक देशो में संयुक्त अरब अमीरात का बड़ा रुतबा है। आइए, इस शक्तिशाली देश से भारत के संबंधों के बारे में भी आपको बताते हैं। अरब विश्व का पहला परमाणु ऊर्जा संयंत्र बराका अबू धाबी अमीरात के भीतर अल धफरा में स्थित है। बराका परमाणु ऊर्जा संयंत्र का संचालन और रखरखाव भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड करता है। यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। यूएई भारत के लिए एक प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ता है और भारत के सामरिक पेट्रोलियम रिज़र्व में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है।
दोनों देश सीमा पार लेनदेन के लिए भारतीय रुपए और दिरहम के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए एक स्थानीय मुद्रा निपटान प्रणाली प्रणाली पर सहमत हो चुके हैं। यूएई और भारत ने आतंकवादरोधी, खुफिया जानकारी साझा करने तथा संयुक्त सैन्य अभ्यासों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपने रक्षा और सुरक्षा सहयोग को मज़बूत किया है। यूएई ने भारत निर्मित मिसाइलों और विमानों को खरीदने में भी दिलचस्पी दिखाई है। एक मुस्लिम देश होने के बाद भी अबूधाबी में हिंदू मंदिर बनाकर संयुक्त अरब अमीरात ने भारत के प्रति सम्मान दिखाया है।
1965 और 1971 के युद्द में ईरान पाकिस्तान के साथ खड़ा था। उसने पाकिस्तान को हथियार और गोला-बारूद भी दिए थे। तब ऐसा अमेरिका के प्रभाव के कारण हुआ था। उस दौरान ईरान में अमेरिकी समर्थित सरकार हुआ करती थी। अब ईरान और पाकिस्तान के संबंध खराब दौर में पहुंच चुके हैं। वहीं ईरान और भारत के संबंध बहुत मजबूत हैं। मई 2024 में भारत और ईरान ने बंदरगाह के संचालन के लिए 10 वर्ष के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं जो इसके रणनीतिक महत्व को रेखांकित करता है।
वहीं ब्रिक्स में ईरान को शामिल करने के लिए भारत ने समर्थन देकर इस इस्लामिक देश के विश्वास को जीता है। एक और इस्लामिक देश मिस्र से भी भारत के मजबूत संबंध हैं। मिस्र के सर्वोच्च राजकीय सम्मान ऑर्डर ऑफ द नाइल से प्रधानमंत्री मोदी को सम्मानित किया गया है। भारत और मिस्र के बीच रणनीतिक साझेदारी बढ़ी है तथा इस देश ने भारतीय मिसाइलों को खरीदने में रुचि व्यक्त की है जो मध्य-पूर्व और विशेष रूप से मिस्र को रणनीतिक रूप से सुरक्षित बनाने में सकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं। ओआईसी इस्लामिक या मुस्लिम बहुल देशों का संगठन है। इसके कुल 57 देश सदस्य हैं। ओआईसी में सऊदी अरब का दबदबा है। सऊदी अरब का पाकिस्तान पर बड़ा कर्ज है और इसके वापस मिलने की संभावना बिल्कुल नहीं है।
जाहिर है पाकिस्तान इस्लामिक देशों के बीच खुद की हैसियत को बखूबी जानता है। भारत से युद्द करने के लिए पाकिस्तान पास न तो पैसा है, न ही साहस और न ही किसी इस्लामिक देश के समर्थन की उम्मीद। इस्लामिक देश पाकिस्तान को एक अस्थिर और नाकाम राष्ट्र मानते हैं जहां उन्हें निवेश की कोई भी संभावना नजर नहीं आती। वहीं शक्तिशाली इस्लामिक देशों की आर्थिक,सामरिक और सांस्कृतिक भागीदारी तथा निवेश और आपसी सहयोग के लिए भारत पहली पसंद बन गया है।
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)