सितंबर माह अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के लिए बहुत महत्वपूर्ण महीना होता है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा की बैठक इसी महीने के अंत में होती है। अभी तक के प्रोग्राम के अनुसार मोदीजी महासभा को 28 सितंबर को सम्बोधित करेंगे। भारत के लिए यह वर्ष और भी महत्वपूर्ण इसलिए हो जाता है क्योंकि सुरक्षा परिषद् में मुंह की खाने के पश्चात् भी पाकिस्तान सरकार ने कश्मीर का मुद्दा हर मंच पर उठाने का फैसला लिया है।
निश्चित ही महासभा के इस मंच से भी वह हमेशा की तरह अनर्गल बकेगा। किन्तु महासभा से पहले जिनेवा में 9 सितम्बर से 27 सितम्बर तक संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की बैठक भी होनी है जिसमें पाकिस्तान ने अपने वरिष्ठ राजनयिकों को भारत के विरुद्ध जहर उगलने के लिए भेजा है।
इन दोनों महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को पाकिस्तान के तथ्यहीन प्रोपोगंडा का प्रतिकार करना है। प्रतिकार आसान तब होता है जब किसी विषय पर तथ्यों के आधार पर वाद विवाद हो। किन्तु हम जानते हैं की भारत की लड़ाई किसी इज्जतदार देश से तो है नहीं कि वह तथ्यों और तर्कों की लड़ाई लड़ेगा। हमारी लड़ाई तो एक नंगे के साथ है जिसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है। न इज्जत और न ही धन। उसने तो हर मंच से भौंकना है। पाकिस्तान में झूठ बोलना कोई गुनाह नहीं है। जिनके मंत्री जिहाद के नाम पर जनता को बेवकूफ बना रहे हों। कहते हैं उनके पास पॉकेट के साइज़ का परमाणु बम है। दुनिया का एक मात्र यही एक देश है जो सुबह से शाम तक चिल्लाता है कि मेरे पास परमाणु बम है।
अब भारत सरकार द्वारा इस जाहिल देश से निपटने की रणनीति पर आने से पहले पाकिस्तान की इस बौखलाहट का कारण समझते हैं। ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान को मुसलमानो से प्रेम है। यदि ऐसा होता तो चाहे फिर रोहिंग्या हों, सीरिया के मुसलमान हों, अफगानिस्तान के पश्तून हों या फिर पश्चिमी एशिया के मुसलमान हों, जहां कई मुस्लिम देशों में तबाही मची है, उनके नागरिकों को शरण देने के लिए वह अपने दरवाज़े खोल देता। किन्तु उसने ऐसा नहीं किया।
ऐसा भी नहीं है कि उसे मानवाधिकारों से कुछ लेना देना है अन्यथा वह चीन में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों पर अपनी आवाज़ उठाता। तो फिर क्या प्रजातंत्र या मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज़ उठा रहा है? नहीं। क्योंकि हांगकांग में हो रही ज्यादतियों के विरुद्ध तो उसे गला चोक हुआ पड़ा है। चलिए दूसरे देशों की छोड़ें। अपने देश में ही बलूचिस्तान, गिलगित और बल्टिस्तान में मुसलमानों का कत्लेआम कर रहा है? बांग्लादेश में पाकिस्तानी सेना द्वारा किए नरसंहार में मुसलमान नहीं थे क्या? जाहिर है पाकिस्तान का मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं है।
तो फिर कश्मीर में ऐसा क्या मीठा है जो उसके मुँह से निकल नहीं रहा? वहां क्यों वह स्वयंभू रहनुमा बना हुआ है? सीधा जवाब है, कश्मीर कोई मुद्दा नहीं है वह तो उसके लिए एक सोने के अंडे देने वाली मुर्गी है जिसकी वजह से पाकिस्तान के राजनेता और उसकी सेना के अधिकारी अय्याशी कर रहे हैं। यही एक वजह है जिसके कारण अभिजात्य वर्ग और सेना महलों में हैं और आम नागरिक सड़कों पर है।
नेताओं द्वारा आम नागरिकों की भावनाएं अपने मुस्लिम होने को लेकर और राष्ट्र को लेकर भड़काई जाती हैं ताकि धनपतियों की जिंदगी सुकून से चलती रहे। यदि कश्मीर का मुद्दा हाथ से चला जाता है तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को लेकर गृह युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। सेना के सामने जनता खड़ी हो सकती है। धारा 370 हटाकर जिस तरह भारत सरकार ने पाकिस्तान के अभिजात्य वर्ग की रोजी रोटी छीन ली है उससे उसका बौखलाना स्वाभाविक है।
अब दुनिया इतनी बेवकूफ तो नहीं कि वह पाकिस्तान की नीयत को समझ न सके। इसके बावजूद भारत उसकी शरारतों को गंभीरता से ले रहा है। इसकी गंभीरता को इसी बात से समझा जा सकता है कि विदेश मंत्री शिवशंकर अगस्त महीने में थाईलैंड, नेपाल, बांग्ला देश, चीन और रूस की यात्रा कर आये हैं और मानवाधिकार परिषद् के सदस्यों से निरंतर संपर्क में हैं।
दूसरी ओर प्रधानमंत्री भी लगातार अपनी यात्राओं के जरिये भारत के लिए समर्थन को पुख्ता कर रहे हैं। ध्यान रहे पिछले सप्ताह ही उन्होंने बहरीन की यात्रा की थी जो मानवाधिकार आयोग का महत्वपूर्ण सदस्य है। इसी सप्ताह रूस की हुई उनकी यात्रा में पुतिन के साथ पाकिस्तान के सन्दर्भ में क्या बातें हुईं होंगी उसे प्रचारित करने की आवश्यकता भी नहीं। किसी भी मंच पर उठी आवाज़ को रूस दबाने में सक्षम है।
दुनिया भर के अधिकांश देश भारत के समर्थन में हैं। इसके दो कारण हैं। एक तो भारत की अपनी साख जिसे उसने अपने आचरण से बनाई है। दूसरे, ज़रूरत पड़ने पर भारत किसी भी देश की सहायता के लिए तत्पर रहता है। अब भारत को पाकिस्तान के विरुद्ध थोड़ा आक्रामक होकर सिख और हिन्दू लड़कियों के जबरन धर्मान्तरण की ख़बरों की उछालना पड़ेगा।
पाक अधिकृत कश्मीर, गिलगित, बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान में मानवाधिकारों का उल्लंघन और आतंकवाद पर अपनी आवाज़ को और अधिक बुलंद करना पड़ेगा। पहले भी जिस तरह भारत, पाकिस्तान को आतंकवाद का केंद्र बताता रहा है, उसे दुनिया के सामने बार बार दोहराना पड़ेगा। भौंकते कुत्ते की तरफ आप दो कदम भी चले तो वह दुम दबाकर भाग जाता है और भारत को यही करना है।