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अंधविश्वास, तंत्र-मंत्र, टोने-टोटके और पूजा-पाठ नहीं कर्म ही बचाएगा कुर्सी

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संजय कुमार रोकड़े

जिस तरह से भारतीय समाज में अनेक तरह के अंधविश्वास और कुरुतियां फैली हैं, ठीक वैसे ही राजनेताओं के बीच भी यह गहरे तक समाई है। असल में हम राजनेताओं को जितना सुलझा हुआ और व्यावहारिकता के धरातल पर चलने वाला इंसान मानते हैं, वह उतना ही ईश्वर आश्रित और पंगु व्यवहार का पक्षधर रहा है। हाल ही में अंधविश्वास का एक मामला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मध्यप्रदेश यात्रा को लेकर सामने आया है। 
 
दरअसल पीएम मोदी को नमामी देवी नर्मदे यात्रा के समापन अवसर पर मध्यप्रदेश के अमरकंटक पहुंचना था। भारतीय राजनीति में अमरकंटक को लेकर कई तरह की शंका-कुशंका और मान्यताएं हैं। माना जाता है कि जिस भी राजनेता ने नर्मदा नदी को लांघा है, उसे अपनी सत्ता गंवानी पड़ी है। भारतीय राजनीति के इतिहास पर नजर डालें तो पांच बड़े नेताओं के ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जिन्हें नर्मदा लांघने के बाद सत्ता से हाथ धोना पड़ा था। अमरकंटक जाने के लिए नर्मदा लांघने और उसके बाद सत्ता गंवाने वालों में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के अलावा मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा, उमा भारती, सुंदरलाल पटवा, श्यामाचरण शुक्ल, केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, पूर्व उप राष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत शामिल हैं। 
 
इन सबको लेकर राजनीतिक समाज में ऐसा अंधविश्वास प्रचलित है कि जिस किसी नेता ने हवाई यात्रा के जरिए नर्मदा को लांधा है उसे कुर्सी गंवानी पड़ी थी। ऐसा अंधविश्वास प्रचलित है कि सन् 1982 में जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हेलीकॉप्टर से अमरकंटक आई थीं उसके बाद ही उनकी 1984 में हत्या हो गई थी और इस तरह से उनके हाथों से सत्ता चली गई थी। कुछ इसी तरह से पूर्व उप राष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत के संबंध में भी अंधविश्वास है। वे राष्ट्रपति चुनाव से पहले अमरकंटक हेलीकॉप्टर से आए थे लेकिन उसके बाद उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी। एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा बाबरी मस्जिद ध्वंस से पहले हेलीकॉप्टर से अमरकंटक पहुंचे थे उनको भी कुर्सी गंवानी पड़ी।
 
एमपी के ही पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय अर्जुनसिंह मुख्यमंत्री रहते हुए हेलीकॉप्टर से अमरकंटक गए थे, लेकिन इसके बाद ही उन्हें कांग्रेस पार्टी से अलग होकर नई पार्टी बनानी पड़ी। प्रदेश की फायर ब्रांड नेता व पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के संबंध में भी कुछ इसी तरह की धारणाएं प्रचलन में हैं। उमा सीएम रहते हुए 2004 में हेलीकॉप्टर से अमरकंटक गई थीं उसके बाद से उन्हें भी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। इसके बाद से तो उमा हमेशा सड़क मार्ग से ही अमरकंटक जाती रहीं। आपको जोरदार बात बताएं कि इन सबमें एक ही समानता है। जितने भी नेताओं का जिक्र किया गया है वे सभी हेलीकॉप्टर से ही अमरकंटक पहुंचे थे। हालांकि तमाम उदाहरण सामने आने के बाद अमरकंटक जाने वाले नेताओं ने हेलीकॉप्टर की यात्रा से परहेज किया था। मजेदार बात तो ये भी है कि यूपी के नोएडा से भी नेताओं को अमरकंटक की तरह ही डर लगा रहता है। बताया जाता है कि आज तक जो भी मुख्यमंत्री नोएडा गया, उसे यूपी की सत्ता से हाथ धोना पड़ा है। पिछली सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इसी डर के चलते अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में कभी नोएडा नहीं गए। हम इसे यूं कहे कि 'हदें नहीं होतीं अंधविश्वासों की' तो अतिश्योक्ति नहीं होगा।
 
हालांकि अमरकंटक पहुंचने वाले सभी नेताओं को ये नहीं मालूम था कि नर्मदा के ऊपर से हवाई यात्रा करने से वह इस हद तक कुपित हो जाती है कि कुर्सी से हाथ धोना पड़ जाता है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जरूर यह जानकारी थी कि अगर हवाई यात्रा करके नर्मदा के ऊपर से गए तो कुर्सी से हाथ धोना तय है। इसी के चलते उन्‍होंने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में कभी नर्मदा नदी हवाई यात्रा के जरिए पार नहीं  की। आज तक उनकी कुर्सी की सलामती का एक कारण यह भी बताया जाता है। जन चर्चा है कि उन्‍होंने इसी के चलते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी हवाई यात्रा से नर्मदा को लांघने नहीं दिया। शिवराज सिंह नहीं चाहते थे कि मोदी को भी कुर्सी छोड़ने का श्राप लगे इसलिए उन्‍होंने अलग स्थान पर हेलीपेड बनवा दिया, जबकि अभी तक जितने भी राजनेता अमरकंटक पहुंचे उनका उड़न खटोला यहां के लालपुर हेलीपेड पर लैंड करता था। 
 
ये कृत्य न केवल अंधविश्वास की हद को साबित करता है बल्कि धार्मिक अंधता व पंडावाद को भी बढ़ावा देता है। शिवराज सिंह विकट के अंधविश्वासी हैं। इस अंधविश्वास के कारण वे प्रदेश अशोक नगर में भी जाने से कतराते हैं। अशोक नगर को लेकर ये भ्रम या अंधविश्वास है कि यहां जो भी सीएम जाता है उसे कुर्सी गंवानी पड़ती है। मतलब साफ है कि कुर्सी पर काबिज रहने के लिए काम-धाम और काबिलियत को साबित नहीं करना होता है बल्कि टोटके, अंधविश्वास और किंवदंतियों को ढोने की जरूरत होती है। जैसे-जैसे प्रदेश के चुनाव पास आते जा रह हैं वैसे-वैसे वे अंधविश्वास और टोने-टोटकों की ओर खींचे चले जा रहे हैं। 
 
हम सब इस बात से भली तरह से अवगत हैं कि नर्मदा नदी न कभी इतनी क्रूर रही है और न ही पूर्वाग्रही, जिसका कहर उसके ऊपर से उड़न खटोलों से जाने वाले नेताओं पर बरपे। नर्मदा अगर इतनी ही निर्दयी होती तो नियमित उड़ानों को वह जाने क्यों बख्श देती जिनमें नेता भी सवार होते हैं। हकीकत तो यह है कि शिवराज सिंह अब धार्मिक अंधता में अंधे हो गए हैं। या इसे ऐसा भी माना जा सकता है कि नर्मदा यात्रा की लंबी और महंगी नौटंकी से जो प्रगतिशील लोग नाराज हो चले हैं उनकी नाराजी को दूर करने के लिए इस तरह का प्रपंच रचा गया हो। वैसे भी भारतीय समाज में खासकर अगड़ी जातियों में धर्म का गहरे तक असर है। इस धार्मिकता की आड़ में अंधविश्वास को बढ़ावा देकर भी शिवराज सिंह फिर से सत्ता हथियाना चाहते हैं। 
 
धार्मिक अंधता भारतीयों की सनातनी कमजोरी रही है। वैसे भी कहा गया है कि धर्म वो अफीम है जिसका नशा एक बार किसी को हो जाए तो वह जिंदगीभर उस नशे से बाहर नहीं निकल सकता है। इस तरह की अंधता का सबसे बड़ा लाभ तो ये है कि लोग मुद्दे की बात भूलकर चमत्कारों और अंधविश्वासों के रहस्य रोमांच में डूब जाते हैं। मतलब साफ है कि इस तरह के कृत्यों से सांप भी मर जाता है और लाठी भी टूटती नहीं है। धर्म के सहारे अपनी नैया को पार लगाने की कोशिश करने वाले शिवराज सिंह ये बता दें कि कौनसी किताब में लिखा है कि नर्मदा के ऊपर से हवाई यात्रा करने पर वह नाराज हो जाती हैं और नेताओं को श्राप देती हैं। असल में सच तो ये है कि जब से शिवराज सिंह पर व्यापम घोटाले और डंपर कांड के दाग लगे हैं, तब से वे इस तरह के असुरक्षा के कवच में घिर गए हैं। 
 
सच कहूं तो वे कुंभ के मेले के बाद से ईमानदारी से जनता की सेवा कर ही नहीं रहे हैं। वे धरम-करम और धार्मिक यात्राओं के नशे में ही मशगूल हैं। जनता ने जिस प्रशासनिक कामकाज व सेवा के लिए उनको चुना है, इतना बड़ा ओहदा दिया है कि वे उसकी कीमत ही नहीं जान रहे हैं। अगर जानबूझकर भी अंजान बनने या नदियों के संरक्षण के बहाने धार्मिक अंधता फैलाने में लगे हैं तो यह लापरवाही जरूर उन्हें डुबो सकती है क्योंकि जनता सब देखती है और बहुत बारीकी से समझ-परखकर ही वोट करती है। शिवराज सिंह को यह जान लेना चाहिए कि जनता पद के अनुरूप काम नहीं करने वालों को रास्ते लगा देती है। फिर वैसे भी पद को ढोने वालों के लिए कहां स्थान होता है। जनता को धोखे में रखकर अगर वे यह सोचे कि मैं जो भी कर रहा हूं, अच्छा कर रहा हूं, इससे बड़ी भूल कुछ और नहीं हो सकती है। इस तरह के बेइमान कृत्य से तो उन्हें कोई देवी- देवता, नदी पहाड़ या राजनीतिक आका भी नहीं बचा सकता है। 
 
धर्म की आड़ में जनता की खरी कमाई को जो भी नेता यूं ही बरबाद करेगा उसकी बद्दुआ से कोई नहीं बचेगा। जिस नर्मदा यात्रा के नाम पर शिवराज सिंह ने जनता के टैक्स की करोड़ों अरबों रुपए की राशि को पानी में बहाया है, उससे नर्मदा भी खुश नहीं होगी। शिवराज ने नर्मदा यात्रा में शामिल होने वाली जिन बड़ी-बड़ी हस्तियों का लाखों-करोड़ों रुपया यूं ही लूटा दिया, उससे नर्मदा कभी प्रसन्‍न नहीं होगी, बल्कि कुपित होकर यही श्राप देगी कि गरीबों को बरबाद कर अमीरों को आबाद करने वाले की कुर्सी अब बचने वाली नहीं है, फिर चाहे वे कितने भी जतन कर लें, तंत्र-मंत्र, पूजा-पाठ कर लें, सब धरा का धरा रह जाएगा। रही बात नरेन्द्र मोदी की तो जब उनके नसीब में सत्ता का सुख ही नहीं लिखा होगा, तब नर्मदा भी उनको सत्ता सुख देने में असमर्थ होगी तो फिर शिवराज कौन होते हैं उनको सत्ता का सुख देने वाले। सवाल तो यहां लाख टके का यही है कि जो नेता जनता की सेवा के नाम पर नौटंकी करेगा, वह जनता की नजरों से बच नहीं पाएगा, फिर चाहे कितने ही अंधविश्वास में जीएं।

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