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कहानी समर्पण की... ‘कोरोना काल’ में दुबई से ऐसे ‘घर’ लौटे साढ़े 4 लाख भारतीय

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नूपुर दीक्षित दुबे

कोरोनाकाल ने हमसे बहुत कुछ छीना और बहुत कुछ सिखाया भी। बीमारी, डर, अकेलापन और अपनों को खो देने का गम यह तमाम एहसास इस दौर में अपने चरम पर रहे।

जब घरों में कैद लोगों के दिलों से लेकर मोबाइल की स्क्रीन पर भावनाओं का तूफान हिलोरे ले रहा था, तब भी कुछ लोग बिना रूके, बिना थके काम कर रहे थे।

डॉक्टर, पुलिस और फ्रंटलाईन वर्कर्स की तरह यहां भी 24 घंटे पूरी मुस्तैदी से काम हुआ। अंतर पर बस इतना था कि इनके लिए ना तालियां बजी ना थालियां, ना ही कहीं जिक्र भी हुआ। होता भी कैसे, इस काम के जरिए जिनकी परेशानियों को कम किया गया, उन्हें किस्मत ने कुछ बड़ी चुनौतियां पहले ही दे दी थी। लिहाजा परदेस की जमीं पर कुछ सायलेंट सोल्जर्स रात-दिन काम करते रहे।

हम बात कर रहे हैं, दुबई स्थित भारत के प्रधान कौंसलावास की। कोरोनाकाल में उपजी परेशानियों से अपने देशवासियों को निजात दिलाने के लिए यहां भी पुरजोर कोशिशें की गईं।

जब दुनियाभर में वर्क फ्रॉम होम की बात चल रही थी, इस कार्यालय में 24 घंटे बिना साप्ताहिक अवकाश के काम हुआ। नतीजतन विदेशी धरती पर अलग-अलग परिस्थितियों में फंसे हुए साढ़े 4 लाख लोगों की वतन वापसी संभव हो सकी।

कोरोना के बढ़ते मामलों में देखते हुए भारत ने मार्च के अंतिम सप्ताह से इंटरनेशनल फ्लाइट्स पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस दौरान जिन लोगों को भारत जाना था, उनकी यात्रा कैंसल हुईं।

इस समय तक बड़ी संख्या में टूरिस्ट और अपने परिजनों के यहां घूमने के मकसद से विजिट वीजा पर आए लोग दुबई में मौजूद थे। कई युवा भी थे, जो नौकरी की तलाश में यहां पहुंच गए थे। लॉकडाउन का सबसे बुरा असर इसी तबके पर पड़ा। जो लोग अपने परिजनों के यहां रहने आए थे कम से कम उनके पास एक घर था। असली परेशानी उनको आई, जो काम की तलाश में यहां पहुंच गए थे, वीजा खत्म हो रहे थे, ऐसे में ना सर पर छत, ना जेब में पैसा।

इसके अलावा महामारी से उपजे आर्थिक संकट के चलते कई लोगों का काम छीन गया, हर रोज ऐसे लोगों का आंकड़ा बढ़ता गया। परेशान लोगों ने मदद के लिए कौंसलावास में फोन लगाना शुरू कर दिया। इनकमिंग कॉल्स इतने बढ़ गए कि कौंसलावास को 24 एक्स्ट्रा फोन लाईन्‍स शुरू करना पड़ी। हर कोई अपनी तकलीफ बता रहा था।
जीवन का एक सत्य मृत्यु भी है, कोरोना के काल में कोरोना के अतिरिक्त अन्य कारणों से भी लोगों के जीवन का अंत हो रहा था और उनके परिजन मृत देह को भारत लाने के लिए गुहार लगा रहे थे। जिन लोगों की मृत्यु कोरोना के चलते हुई उनकी देह को भारत भेजना संभव नहीं था, लेकिन अन्य कारणों से जिन लोगों ने जीवन खोया उनकी देह को भारत भेजने के लिए भी लगातार लोग मांग कर रहे थे और विमान सेवा बंद थी।

इस बीच अप्रैल में यूएई में लॉकडाउन घोषित हुआ। लॉकडाउन के कुछ दिनों के भीतर टूरिज्म इंडस्ट्री में बड़े स्तर पर कर्मचारियों की छंटनी हो गई। छोटी होटल्स, रेस्टोरेंट, कैफेटेरिया, सुपर मॉर्केट, गिफ्टशॉप बंद होने लगी। जिसका सीधा असर यहां काम करने वाले कर्मचारियों पर पड़ा। अब तक कुछ लोगों की हालत इतनी खराब हो गई कि घर वापसी तो दूर उनके सामने खाने और पानी का संकट आन पड़ा। परदेस में पानी भी मुफ्त में नहीं मिलता इसका एहसास खाड़ी देश में रहने वालों को अच्छी तरह है। माल बंद होने के साथ ही प्रोडक्ट प्रमोशन, डेमोन्स्ट्रेशन जैसे काम से दैनिक आय कमाने वालों के सामने में मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो गया।

तकलीफ की हद तो उस समय पर पार होने लगी, जब बिना वीजा, बिना इंश्‍योरेंस के लोगों को कोरोना के लक्षण नजर आने लगे। एक ओर संक्रामक बीमारी का खतरा, जेब खाली और घर वापस जाने के रास्ते बंद।

काउंसलर जनरल ऑफ इंडिया ने ऐसे लोगों के लिए एक फूड हैल्पलाईन शुरू कर दी। जिसमें परिवारों को राशन के पैकेट्स बांटे गए, जिन लोगों के पास खाना पकाने का इंतजाम भी नहीं था, उन्हें पका हुआ भोजन दिया गया। दुबई हैल्थ अथॉरिटी, एस्टर हॉस्पिटल और काउंसलर जनरल ऑफ इंडिया की टीम ने मिलकर एक अस्थाई हेल्थ क्लिनिक खोला, जिसमें उन लोगों को इलाज और दवाएं दी गईं, जिनके पास खुद का इलाज करवाने का सामर्थ्य नहीं था।

इस बीच भारत सरकार ने वंदे भारत मिशन की घोषणा कर दी। इस मिशन के तहत घर वापस जाने के लिए अकेले दुबई सीजीआई ऑफिस में साढ़े 6 लाख लोगों ने आवेदन दे दिया। बड़ी संख्या में आवेदन अबुधाबी स्थित दूतावास में भी पहुंचे।

अब चुनौती थी प्राथमिकताओं के आधार पर यात्रियों का चुनाव। दिन-रात एक कर के बीमार, बुजुर्ग, गर्भवती महिलाओं, छोटे बच्चों को प्राथमिकता के आधार पर चुना गया और 2500 फ्लाईटस से 4 लाख 60 हजार 818 लोगों को वापस भारत भेजा गया। 65 हजार लोग अबूधाबी से भारत के लिए रवाना हुए।

एक फ्लाईट ऐसी भी
21 मई को दुबई से कोच्ची के लिए एक ऐसी फ्लाईट रवाना हुई, जिसमें सिर्फ गर्भवती महिलाओं को ही भेजा गया। 75 गर्भवती सवारियों को दुबई से रवाना करने के पहले दो डॉक्‍टर्स और तीन नर्सेस को नियुक्‍त किया गया। उसके बाद इन महिलाओं को स्वदेश भेजा गया। सवार महिलाओं की अपनी समस्याएं थी, कई विजिट वीजा पर अपने पतियों से मिलने आई थीं, तो किसी के पति की नौकरी जा चुकी थी। उड़ान के इतिहास में संभवत: ये पहली ऐसी फ्लाईट थी, जिसमें केवल गर्भवती महिलाओं ने यात्रा की।

तसल्ली है कि कुछ किया
महामारी के दौरान दुबई और उत्तरी अमीरात के क्षेत्रों से 4 लाख से अधिक लोग वापस स्वदेश रवाना हुए। कई लोग ऐसे भी थे, जिनके पास वापसी के लिए टिकट खरीदने का पैसा भी नहीं था। ऐसे लोगों की टिकट हमने इंडियन कम्युनिटी वेलफेयर फंड की मदद से दी, कई लोगों ने निजी स्तर पर भी उन लोगों की मदद की, जिनके पास टिकट के लिए पैसा नहीं था। राशन बांटने से लेकर लोगों को टिकट देने तक में दुबई में बसे भारतीयों ने बहुत अच्छी भूमिका निभाई।

मार्च से जुलाई तक हमारी पूरी टीम में किसी ने कोई वीकली ऑफ नहीं लिया। हमें तसल्ली है कि हमने अपनी जिम्मेदारी निभाई। 2500 फ्लाईट में से हर फ्लाईट के लिए हम 7 से 8 अतिरिक्‍त लोगों को एयरपोर्ट बुलाते थे, यदि किसी भी कारण से एक व्यक्ति की उडान भी रद्द होती है तो दूसरे को मौका मिल जाए। इन चंद महीनों में जिंदगी की कठिनाईयों की इतनी परतें  खुलती हुई देख ली, जिसे शब्दों में बयां कर पाना बहुत मुष्किल है। इस मिषन में दुबई गवर्नमेंट ने भी सहयोग किया और डेढ़ लाख लोगों का निशुल्‍क कोविड टेस्ट किया, ताकि वे उड़ान भर सके।- नीरज अग्रवाल, काउंसल प्रेस, सूचना और संस्कृति

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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