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'धनुष' के तीरों से निकले कुछ सवाल

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डॉ. नीलम महेंद्र

'भ्रष्टाचार वो बीमारी है जिसकी शुरुआत एक व्यक्ति के नैतिक पतन से होती और अन्त उस राष्ट्र के पतन पर होता है, एक कटु सत्य।' जब सम्पूर्ण राष्ट्र की समृद्धि उस देश के हर नागरिक की समृद्धि का कारण बने तो वो राष्ट्र सम्पूर्ण विश्व के लिए एक उदाहरण बन जाता है।
 
जब भ्रष्टाचार एक व्यक्ति की समृद्धि का कारण बने तो कालांतर में वो राष्ट्र विश्व के लिए एक आसान लक्ष्य बन जाता है। भ्रष्ट आचरण के बीज एक व्यक्ति से परिवार में परिवार से समाज में और समाज से सम्पूर्ण  राष्ट्र में फैल जाते हैं। यह वो पोधा है जो बहुत ही आसानी  और शीघ्रता से न सिर्फ स्वयं फलने फूलने लगता है अपितु अपने पालनहार के लिए भी उतनी ही आसानी से समृद्धि के द्वार खोल देता है।
 
लेकिन इसके बीज की एक खासियत यह होती है कि यह एक बार जिस स्थान पर पनप जाता है, उसे  हमेशा के लिए ऐसा बंजर कर देता है कि फिर उस पर मेहनत ईमानदारी स्वाभिमान जैसे फूल खिलने बंद हो जाते हैं और इस बीज के सहारे एक व्यक्ति जितना समृद्ध होता जाता है, परिवार के संस्कार उतने ही कमजोर होते जाते हैं। परिवार में संस्कारों के ह्रास से समाज की नींव कमजोर पड़ने लगती है। समाज के कमजोर पड़ते ही राष्ट्र पिछड़ने लगता है। 
 
कुछ खबरें ऐसी होती हैं जो हमें यह सब सोचने के लिए मजबूर कर देती हैं। जब देश की सुरक्षा और देश की सुरक्षा करने वाले जांबाजों की सुरक्षा के साथ ही खिलवाड़ किया जा रहा हो तो क्या अब समय नहीं आ गया कि हम इस बात की गंभीरता को समझें कि इस देश में भ्रष्टाचार की जो जड़े अभी तक सरकारी कार्यालयों नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स तक फैली हुई थीं अब सेना के भीतर भी पहुँच गई हैं?
 
जिस भ्रष्टाचार ने अब तक इस देश के आम आदमी के जीवन को दुश्वार बनाया हुआ था वो आज सेना के जवान के जीवन को दाँव पर लगा रहा है? जो भ्रष्टाचार इस देश की जड़े खोद रहा था आज देश की सीमाओं और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने से भी नहीं चूक रहा?
 
बात केवल इतनी नहीं है कि 'मेक इन इंडिया' के तहत बनने वाली देश की पहली स्वदेशी तोप में लगने वाले कलपुर्जे चीनी निकले जिसका पता तब चला, जब परीक्षण के दौरान एक बार बैरल बर्स्ट हो गया और दो बार तोप का मजल फट गया। मुद्दा इससे कहीं गंभीर है। 
 
बात यह है कि गन कैरिज फैक्टरी, जीसीएफ का एक महत्वपूर्ण एवं महत्त्वकांशी प्रोजेक्ट है, स्वदेशी बोफोर्स 'धनुष' का निर्माण। वो बोफेर्स जिसने कारगिल युद्ध में भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना से टक्कर लेने एवं युद्ध जीतने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वो धनुष जो दुनिया की शीर्ष पांच तोपों में शामिल है, बोफोर्स बीओ5 (स्वीडन), एम 46 एस(इजरायल), जीसी 45 (कनाडा), नेक्सटर (फ्रांस), धनुष (भारत)।
 
लेकिन जब देश की सुरक्षा से जुड़े ऐसा कोई संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट विवाद के कारण जांच की सीमा में आ जाता है तो न सिर्फ पूरे तंत्र की विश्वसनीयता शक के दायरे में आ जाती है, बल्कि पूरी निर्माण प्रक्रिया जो अब तक तोपों को बनाने में लगी थी और तेजी से आगे बढ़ रही थी, अब अचानक सभी कागजातों के सील होने के कारण थम जाती है और पूरा प्रोजेक्ट पीछे चला जाता है।
 
दरअसल जीसीएफ ने दिल्ली की जिस कम्पनी 'सिद्ध सेल्स' को इन कलपुर्जों को बनाने का ठेका दिया था, उसने एक सर्टिफ़िकेट दिया था कि यह कलपुर्जे  'सीआरबी' नामक जर्मनी कम्पनी में निर्मित हैं। इतना ही नहीं उन पर 'सीआरबी मेड इन जर्मनी' की सील भी लगी थी।
 
लेकिन अब सीबीआई की जांच में जो भी तथ्य सामने आ रहे हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाले हैं बल्कि बेहद गंभीर एवं चिंताजनक भी है। पता चला है कि जब यह पुर्जे जीसएफ ने टेस्ट किए थे, तब भी इनके डायमेन्शन में गड़बड़ के बावजूद इन्हें स्वीकार कर लिया गया था।
 
जैसे-जैसे जांच की परतें खुलती जा रही है इस मामले की जड़ों की गहराई भी बढ़ती जा रही है क्योंकि जो सर्टिफ़िकेट सिद्ध सेल्स ने जीसीएफ को दिया था वो फर्जी था, जर्मनी की उक्त कम्पनी ऐसे कलपुर्जों  निर्माण ही नहीं करती, लेकिन इससे भी अधिक चिंता का विषय यह है कि सिद्ध सेल्स ने पूरी दुनिया में से चीन को ही क्यों चुना अपने ही देश की सेना को नकली माल सप्लाई करने के लिए?
 
इन नकली पुर्जों का निर्माण चीन के हेनान में स्थित 'साइनो यूनाइटेड इन्डस्ट्री लूयांग चाइना' में हुआ था। इसके अलावा सीबीआई को चीन और सिद्ध सेल्स के बीच कई ई-मेल के आदान प्रदान का रिकॉर्ड भी मिला है। तो दिल्ली की जिस कम्पनी ने इस पूरे फर्जीवाड़े को अंजाम दिया उसका यह आचरण किस दायरे में है? चार सौ बीसी के या फिर देशद्रोह के?
 
सेना के जिन अफसरों की निगरानी में यह प्रोजेक्ट था उनसे यह नादानी में हुआ था फिर जानबूझकर? उन्हें कम्पनी द्वारा धोखा दिया गया या फिर उन्होंने देश को धोखा दिया? जिस सेना पर पूरा देश गर्व करता है उस सेना के ऐसे महत्वपूर्ण पदों पर न तो नादानी की गुंजाइश होती है और न ही विश्वासघात की। दोनों के ही अंजाम घातक होते हैं।
 
हमारा सैनिक अगर मातृभूमि की रक्षा में दुश्मन से लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हो तो उसे अपनी शहादत पर गर्व होता है लेकिन जब एक देशभक्त सैनिक अपने ही किसी साथी की गद्दारी के कारण अपने प्राणों की बलि देता है तो उसे अपने प्राणों का नहीं, दु:ख इस बात का होता है कि अब मेरा देश असुरक्षित हाथों में है।
 
वो सैनिक जो अपनी जवानी देश की सीमाओं की रक्षा में लगा देता है, वो पत्नी जो अपनी जिंदगी सरहद की निगरानी करते पति पर गर्व करते हुए बिता देती है, वो बच्चे जो अपने पिता के इंतजार में बड़े हो जाते हैं और वो बूढ़ी आँखें जो अपने बेटे के इंतजार में दम तोड़ देती हैं...क्या इस देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे नेता और कठिन से कठिन प्रतियोगी परीक्षाओं को पास करके इन पदों पर आसीन अधिकारी कभी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े ऐसे ही किसी सैनिक के परिवार से मिलकर उनके कुछ बेहद मासूम और सरल से सवालों के जवाब दे पाएंगे?

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