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इंटरनेट की अंधेरी गलियां

हमें फॉलो करें इंटरनेट की अंधेरी गलियां
- प्रोफेसर भावना पाठक
 
सूनसान अंधेरी गलियों में खौफ का साया मंडराता है, ये अंधेरी गलियां कई आपराधिक गतिविधियों की पनाहगार हैं। यही वजह है की इन गलियों से गुज़रते हुए हमारी धड़कनें सामान्य से ज़्यादा तेज़ रफ़्तार से धड़कने लगती हैं। एक अनजाना सा डर हमारा पीछा करता रहता है और आशंकाओं के काले बादल तब तक नहीं छटते जब तक कि अंधेरा रोशनी और चहल-पहल में तब्दील न हो जाए। इससे कहीं ज़्यादा खतरनाक हैं इंटरनेट की अंधेरी गलियां, जिनका अंधेरा हमें दिखता ही नहीं और हम अनजाने में इन गलियों में पनप रहे अपराधों का शिकार बन जाते हैं। 
मज़ेदार बात तो यह है कि इन गलियों के शिकार केवल भोले-भाले अशिक्षित ग्रामीण लोग ही नहीं बनते, बल्कि उच्च शिक्षित वर्ग भी अपने को असहाय पाता है। मुश्किल तब और बढ़ जाती है जब हम यह पाते हैं कि जहां हम मदद की गुहार लगाने जाते हैं वो खुद भी हमारी तरह असहाय हैं। वजह है हमारी साइबर सेल के पास प्रशिक्षित स्टाफ और नवीनतम उपकरणों की कमी, जिसकी वजह से कई सायबर अपराधियों को सजा नहीं मिल पाती और उनके हौसले बुलंद हैं। 
 
अगर किसी सूनसान गली में कोई आपको परेशान कर रहा हो तो वहां आप फिर भी शोर मचाकर मदद की गुहार लगा सकते हैं, अगर शारीरिक रूप से सक्षम हों तो उससे लड़ सकते हैं, लेकिन इंटरनेट की अंधेरी गलियों से गुज़रते वक़्त आप ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते क्योंकि यहां अपराध करने वाला अदृश्य होता है। 
 
डिजिटल किडनैपिंग, सायबर बुलीइंग, हैकिंग, फिशिंग, सायबर फ्रॉड, आदि सायबर अपराधों के कुछ नाम हैं और आजकल एक नया नाम सुनने को मिल रहा है सायबर आतंकवाद। फिशिंग के ज़रिए अपराधी आपके गोपनीय दस्तावेजों, यूज़रनेम, पासवर्ड और सिक्योरिटी कोड, क्रेडिट कार्ड आदि से संबंधित जानकारी हैक कर सकते हैं और वो ऐसा करते हैं मेल पर वायरस या मालवेयर भेजकर। बेहतर होगा कि अगर किसी लिंक पर आपको संदेह हो तो उसको ना खोलें क्योंकि वो अनजानी लिंक वायरस हो सकती है जो आपके कंप्यूटर या फ़ोन को हैक कर सकती है और इस तरह सायबर अपराधी आपके फ़ोन या मेल पर मौजूद जानकारी हासिल कर उसका गलत फायदा उठा सकता है। अगर आप फ़ोन और कंप्यूटर पर इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं तो एंटीवायरस ज़रूर डलवाएं और समय-समय पर उसको अपडेट करते रहें। 
 
सायबर अपराधी दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर सात समंदर पार कहीं भी सायबर अपराध को अंजाम दे सकते हैं और इसके लिए वो डार्कनेट का प्रयोग करते हैं। डार्कनेट वो अदृश्य या डीप नेट है जिसका पता आईपी अड्रेस पता होने के बावजूद भी नहीं लगाया जा सकता कि उसका इस्तेमाल आखिर कौन कर रहा है? डार्कनेट का इस्तेमाल करने वाली वेबसाइट टीओआर नेटवर्क का इस्तेमाल करती है जो प्याज की परतों की तरह एक के बाद एक कई लिंक खोलता चला जाता है और ये लिंक्स हमें गुमराह करती हैं, ये पता नहीं चलने देती कि अपराधी कौन है और वो कहां से आपराधिक गतिविधियों को संचालित कर रहा है? डार्कनेट में यह पता लगाना बड़ा कठिन होता है कि डाटा आ और जा कहां से रहा है। इसका इस्तेमाल आजकल ह्त्या, किडनैपिंग, ड्रग्स बेचने, सायबर फ्रॉड जैसे अपराधों को अंजाम देने के लिए किया जा रहा है।
 
डार्कनेट पर रोक फिलहाल असंभव है : डार्कनेट पर रोक लगाना फिलहाल असंभव है क्योंकि जिस टीओआर नेटवर्क का इसमें इस्तेमाल किया जाता है, उसका इस्तेमाल सबसे पहले अमेरिका की मिलेट्री करती थी गोपनीय दस्तावेजों और अपनी पहचान को छुपाने के लिए। आज भी अमेरिका की मिलेट्री कई सरकारी दस्तावेजों की गोपनीयता को बनाए रखने के लिए डार्कनेट का इस्तेमाल करती है और कई सरकारें भी इसलिए ये टीओआर को डार्कनेट पर रोक लगाने के लिए नहीं कह सकती और इसी बात का फायदा उठाकर सायबर अपराधी सायबर अपराध को अंजाम दे रहे हैं डार्कनेट का नकाब पहनकर।
 
तो अब करें क्या : एक पुरानी कहावत है इलाज से एहतियात भला, जितना संभव हो इंटरनेट का इस्तेमाल करते वक़्त एहतियात बरतें। ज़रूरी दस्तावेजों को मेल पर न रखें, अपने एटीएम कार्ड का नंबर और पासवर्ड भी फोन और मेल पर सेव न करें, स्पैम मेल को न खोलें क्योंकि उसमें वायरस हो सकता है जो आपके सिस्टम को हैक कर सकता है, यह आपकी ज़रूरी फाइल को करप्ट कर सकता है। 
 
सिक्योरिटी कोड को मज़बूत बनाएं और उसके लिए किसी तकनीकी विशेषज्ञ की सहायता लें ताकि उसको आसानी से तोड़ा न जा सके। मीडिया लिटरेट बनें। जिस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं उसके बारे में बेहतर ढंग से जानें, इंटरनेट बैंकिंग करते वक़्त खासा एहतियात बरतें और लॉग आउट करना न भूलें। मीडिया की अज्ञानता को मीडिया लिटरेसी के ज़रिए ही दूर किया जा सकता है।

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