मुझे यकीन है कि बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत की मैं ही नहीं कई हजारों-लाखों प्रशंसक होंगे। बॉलीवुड में बिना किसी गॉड फादर के बेहतरीन अभिनेत्री के तीन राष्ट्रीय पुरस्कार जीतना, दम की बात है। बहुत अरसे बाद विद्या बालन और कंगना जैसी अभिनेत्रियां बॉलीवुड को मिली हैं, जो बॉलीवुड में कई लोगों, खानदानों की सत्ता को चुनौती दे रही हैं। ऐसे में पुरुष वर्चस्व को धक्का लगना तो जायज है ही। तभी तो सहिष्णुता, असहिष्णुता, सलमान को जेल होना चाहिए या नहीं, आमिर और शाहरुख कितने देशभक्त हैं, इन सब मामलों पर बयान देने वाले, कंगना और रितिक के विवाद पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं।
मुझे हमेशा से लगता है कि बॉलीवुड की अपनी अलग दुनिया है। वहां धर्म, जाति कोई मायने नहीं रखती। लेकिन लगता है कि जब बात औरत की आती है तो सब एक हो जाते हैं, फिर चाहे बॉलीवुड हो या आम समाज। तभी तो कंगना के बचाव में ना तो किसी पुरुष की आवाज़ आई बॉलीवुड से, ना महिला की।
खैर, कंगना ने विवादों के सारे सवालों का मुंहतोड़ जवाब तब दिया जब वो राष्ट्रीय पुरस्कार लेने आईं। कंगना ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि ‘जिन्हें सफलता से मार सकती हूं उन पर हाथ क्यों उठाना’। पिछले दिनों रितिक रोशन, अध्ययन सुमन और शेखर सुमन ने जिस तरह कंगना पर कई आरोप लगाए, कंगना का ये जवाब, लाजवाब है।
कंगना ने अपने इंटरव्यू में कई बेबाक बातें कीं, जिनमें वेश्या, मनोरोगी जैसी कई बातें हैं। लेकिन एक अहम बात जिसने सबसे सोचने पर मजबूर कर दिया। वो था उनका संघर्ष को लेकर बयान। कंगना ने कहा- ‘जब मैं छोटी थी मुझे डर लगता था, मुझे ऐसा लगता था कि अगर मैं एक औरत के तौर पर फेल हो गई तो मुझे रंडी, डायन, पागल और शायद ड्रग एडिक्ट भी कहा जाएगा।'
कंगना के बयान केवल दो बयान नहीं बल्कि दो मुकाम की तरह नज़र आते हैं एक मुकाम वो जिस पर वो बचपन में खड़ी थी। उस वक्त एक डर था, असफलता का डर। आपको और मुझे भी ये डर अक्सर ही परेशान करता है। मैं कई लड़कियों को जानती हूं जिन्होंने इस डर का सामना किया, घरवालों और समाज की बुरी जरूर बनीं लेकिन आगे बढ़तीं गईं, आज उन सबने अपना मुकाम हासिल किया है।
कंगना की ये बातें अहसास कराती हैं कि उन्होंने आज सफलता का जो मुकाम पाया है उसके लिए कितना संघर्ष किया है। घर और समाज से तो लड़ना ही पड़ा, खुद के डर से लड़ने और उसे हराने में हिम्मत चाहिए, जो कंगना ने दिखाई है। ना वो चांदी की चम्मच मुंह में लेकर पैदा हुईं ना ही सफलता उन्हें थाली में परोसी मिली। ना तो उन्हें किसी गॉडफादर ने मदद की, ना ही वो किसी खान लॉबी का हिस्सा बनीं। कंगना के बहाने ही सही, समाज का वो कोढ़ फिर सामने आया, जहां लड़कियों के लिए हर दो कदम पर बैठा आदमी चरित्र प्रमाण पत्र जारी करने का हक रखता है।
डायन, पागल, रंडी ऐसे शब्द ऐसे हैं जो अकसर सफल होती हर लड़की के दामन पर सिल दिए जाते हैं। अपने आसपास, घर में ही देख लीजिए किसी महिला ने कामयाबी की ओर ज़रा दो कदम बढ़ाए नहीं कि प्रमोशन क्यों मिला, किस तरह मिला, सारे सर्टिफिकेट चाय की चुस्की के साथ बड़े सस्ते में दे दिए जाते हैं। ऐसा नहीं कि सभी ऐसे होते हैं, लेकिन चोट तो ज्यादातर को लगती ही है कोई जाहिर करता है कोई नज़रअंदाज़।
डायन, हमारे छत्तीसगढ़ में इसे टोनही कहते हैं, और इसी टोनही के नाम पर सैकड़ों महिलाओं को समाज के ठेकेदार मिलकर मौत के घाट उतार देते हैं और आज भी ये रुका नहीं है। छत्तीसगढ़ में अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉक्टर दिनेश मिश्र के मुताबिक, पिछले 10 सालों में टोनही के 1253 मामले सामने आए हैं। पता नहीं वही औरतें टोनही या डायन क्यों ठहराई जाती हैं जो या तो किसी के सामने झुकती नहीं, पुरुषों से समझौता नहीं करतीं या किसी का मतलब उससे पूरा नहीं हो पाता। शायद यही कुछ बॉलीवुड में भी हो रहा है।
कंगना रनौत के विवाद को एक तरफ रख दें तो उनका बेफिक्र अंदाज़ और साफगोई की मैं कायल हूं, फिल्म क्वीन में वो उस आदमी को थैंक्यू कहकर आगे बढ गईं जिसने रानी से शादी के लिए मना किया, लेकिन वो रील लाइफ थी और ये रियल लाइफ, जहां कंगना ने तय किया है कि वो थैंक्यू कहकर आगे नहीं बढ़ेगी बल्कि पलटकर जवाब देगी।
क्यों हर बार पुरुष समाज तय करे कि कौन तमीज़दार है, कौन बदतमीज और कौन पागल। इस बार शोर शायद इसलिए भी ज्यादा हो रहा है क्योंकि तमाचा एक महिला ने मारा है। वरना हमने बॉलीवुड में ही देखा है कि एक अभिनेता के एक अभिनेत्री को थप्पड़ मारने की बात केवल खबर बनी थी, इस बार मुंहतोड़ जवाब औरत की तरफ से आया है तो आवाज़ तो झन्नाटेदार होगी ही।
छत्तीसगढ़ में अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉक्टर दिनेश मिश्र के मुताबिक, पिछले 10 सालों में टोनही के 1263 मामले सामने आए हैं। (ये आंकड़े नवभारत टाइम्स में प्रकाशित खबर से लिए गए हैं।)